अधर्म के खिलाफ कब उठाना चाहिए शस्त्र? गीता में बताए गए हैं युद्ध के 4 सिद्धांत

punjabkesari.in Friday, May 02, 2025 - 11:34 AM (IST)

नारी डेस्क: हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले ने एक बार फिर से भारत और पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण माहौल बना दिया है। पाकिस्तान की इस कायराना हरकत की न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया में आलोचना हो रही है। भारत अब आतंक का समर्थन करने वाले पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए तैयारियों में जुट गया है। वर्तमान परिस्थितियों को देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि अगर पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आया, तो आने वाले समय में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की स्थिति बन सकती है।

अगर हम इन हालातों को धार्मिक दृष्टिकोण से देखें, तो श्रीमद्भगवद गीता में युद्ध की परिस्थितियों और न्याय के लिए युद्ध करने की बातें बहुत विस्तार से बताई गई हैं। आइए, जानते हैं कि भगवद गीता के अनुसार युद्ध कब करना चाहिए, और इसके क्या सिद्धांत हैं।

गीता में युद्ध को लेकर क्या कहा गया है?

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में स्पष्ट रूप से बताया है कि युद्ध कभी भी पहला विकल्प नहीं होना चाहिए। युद्ध से पहले विनाश होता है और सृजन बाद में आता है। इसलिए युद्ध शुरू में व्यर्थ लगता है क्योंकि उसके उद्देश्य की प्राप्ति में समय लगता है।

युद्ध से पहले संवाद ज़रूरी है

किसी भी युद्ध की स्थिति आने से पहले आपसी बातचीत यानी संवाद का होना बहुत आवश्यक है। संवाद के दौरान दोनों पक्षों को खुले मन से अपनी-अपनी बात कहनी और एक-दूसरे की बात सुननी चाहिए। यदि दोनों पक्ष मिलकर युद्ध की स्थिति टालने का प्रयास करें, तभी शांति की संभावना बनती है।

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कब करना चाहिए युद्ध? – गीता का दृष्टिकोण

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि जब आपसी बातचीत से कोई समाधान ना निकले, तब युद्ध एकमात्र रास्ता बचता है। इसके अलावा जब हर जगह अन्याय, अधर्म और धोखा फैला हो, तब भी परिस्थिति को बदलने के लिए युद्ध जरूरी हो जाता है।

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धर्मयुद्ध क्या है?

गीता में न्याय के लिए लड़े गए युद्ध को धर्मयुद्ध कहा गया है। धर्मयुद्ध का उद्देश्य सिर्फ जीतना नहीं, बल्कि सत्य और न्याय की स्थापना करना होता है। हर इंसान को अन्याय के खिलाफ खड़ा होकर धर्म की रक्षा करनी चाहिए। यही सच्चा युद्ध है।

युद्ध से पहले पूरी तैयारी क्यों ज़रूरी है?

श्रीमद्भगवद गीता में कहा गया है कि किसी भी योद्धा को युद्ध में उतरने से पहले, परिस्थिति का पूरा ज्ञान, शत्रु की ताकत और चालों की समझ, अपनी शक्तियों का सही आकलन बहुत ज़रूरी है। अगर यह जानकारी अधूरी हो, तो परिणाम गंभीर हो सकते हैं। अभिमन्यु के पास चक्रव्यूह में प्रवेश करने का ज्ञान तो था, लेकिन बाहर निकलने का तरीका नहीं पता था। इस आधे-अधूरे ज्ञान का शत्रु पक्ष ने फायदा उठाया और वीर अभिमन्यु युद्ध में हार गए। इसलिए युद्ध में जाने से पहले सम्पूर्ण ज्ञान और तैयारी अनिवार्य है।

अन्याय को चुपचाप सहने से अत्याचार बढ़ता है

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि अगर कोई व्यक्ति अन्याय होते देखता है लेकिन मौन रहता है, तो इससे अत्याचार करने वालों का हौसला बढ़ता है। इसलिए हर अन्यायी के मन में दंड का भय होना चाहिए।

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दंड का भय ही रोक सकता है युद्ध

कई बार युद्ध को टालने के लिए या भविष्य में युद्ध की स्थिति से बचने के लिए भी शत्रु पक्ष के मन में डर बनाए रखना जरूरी होता है। अगर उन्हें यह पता हो कि उनके गलत कामों का जवाब सख्ती से मिलेगा, तो वे दोबारा ऐसा करने की हिम्मत नहीं करेंगे।

भगवद गीता का संदेश है कि युद्ध केवल तभी करना चाहिए जब अन्य कोई रास्ता ना बचे और जब उद्देश्य सिर्फ न्याय की स्थापना हो। युद्ध से पहले संवाद, तैयारी और विवेक का प्रयोग जरूरी है। अगर शांति की कोशिशें असफल हो जाएं और अन्याय सिर चढ़कर बोलने लगे, तब युद्ध अनिवार्य हो जाता है।
 


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Content Editor

PRARTHNA SHARMA

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