नवदुर्गा का दूसरा स्वरूपः देवी ब्रह्मचारिणी की कथा और बीज मंत्र सुनने से पूरी होगी हर इच्छा
punjabkesari.in Wednesday, Oct 02, 2024 - 09:23 PM (IST)
नारी डेस्कः नवरात्रि (Navratri 2024) में देवी दुर्गा के नौ रूप की पूजा होती है और नवदुर्गा का दूसरा स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी (Maa Brahmacharini)हैं। मां के इस रूप की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि के साथ संयम और धैर्य की प्राप्ति होती है क्योंकि मां ब्रह्मचारिणी को तपस्या और संयम की देवी माना जाता है। उनकी पूजा से भक्तों को धैर्य, संयम और मानसिक शक्ति प्राप्त होती है। उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी और इसी कारण वे तपस्या और साधना की देवी मानी जाती हैं। उनके बीज मंत्र का जाप करने से भक्तों की साधना शक्ति और जीवन में संतुलन बढ़ता है। चलिए आपको देवी ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न करने के उपाय बताते हैं।
मां ब्रह्मचारिणी का बीज मंत्र (Mata Brahmacharini ka Beej Mantra)
मां ब्रह्मचारिणी का बीज मंत्र 'ह्रीं श्री अम्बिकायै नमः' है। आप मां ब्रह्मचारिणी की पूजा के लिए कुछ और मंत्र का जाप भी कर सकते हैं।
।।ब्रह्मचारयितुम शीलम यस्या सा ब्रह्मचारिणी। सच्चीदानन्द सुशीला च विश्वरूपा नमोस्तुते।।
।।ओम देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः।।
।।या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।
मंत्रः मां ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न करने के लिए उनके बीज मंत्र 'ह्रीं श्री अम्बिकायै नमः' का 108 बार जाप किया जा सकता है। इससे ध्यान और साधना में शक्ति मिलती है और मनचाही इच्छा पूरी होती है।
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मां ब्रह्मचारिणी जी का प्रिय रंग और भोग (Mata Brahmacharini Ka Bhog)
नवरात्रि के दूसरे स्वरुप देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा में पीले, गुड़हल, कमल और सफेद रंग के फूल इस्तेमाल करें है। यह फूल उन्हें प्रिय हैं और पीले फल भी अर्पित कर सकते हैं। उन्हें दूध से बनी चीज़ें या मिश्री -चीनी का भोग लगाया जाता है। देवी ब्रह्मचारिणी को सफ़ेद रंग के वस्त्र और शक्कर, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर का मिश्रण) , खीर, बर्फी जैसी चीजें पसंद हैं। आप देवी को खीर, बर्फी, चीनी अर्पित कर सकते हैं। सफेद रंग शांति और पवित्रता का प्रतीक है। पूजा में मां ब्रह्मचारिणी को कमल या सफेद रंग के फूल, चंदन, धूप, दीप, अक्षत और शुद्ध घी का दीपक अर्पित करें।
देवी ब्रह्मचारिणी की कथा (Mata Brahmacharini Devi ki Katha)
देवी ब्रह्मचारिणी की कथा देवी दुर्गा के दूसरे स्वरूप का वर्णन करती है, जो तपस्या और संयम की प्रतीक हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, देवी ब्रह्मचारिणी का जन्म राजा हिमालय के घर हुआ था। उनके पहले जन्म में वे सती के रूप में जानी जाती थीं और भगवान शिव की पत्नी थीं। जब उन्होंने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव का अपमान देखा, तो सती ने यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। अगले जन्म में वे शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और उन्होंने भगवान शिव को पुनः अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की।
देवी ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की। पहले हजारों वर्षों तक उन्होंने केवल फल-फूल खाकर तप किया। इसके बाद, कई वर्षों तक वे निर्जल और निराहार रहकर भगवान शिव की साधना में लीन रहीं। उनकी तपस्या इतनी कठिन और लंबी थी कि देवता और ऋषि-मुनि भी उनकी निष्ठा और संकल्प से प्रभावित हुए। अंततः भगवान शिव ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया। उनकी तपस्या और संयम की यह कथा हमें धैर्य, निष्ठा और लक्ष्य के प्रति समर्पण की सीख देती है। देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा नवरात्रि के दूसरे दिन की जाती है, जो भक्तों को कठिनाइयों से जूझने की शक्ति और साधना में सफलता प्रदान करती है।
माँ ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न करने के उपाय (Brahmacharini Mata Ko Prashaan Kaise Kare)
माँ ब्रह्मचारिणी सत्य, संयम और साधना की देवी हैं इसलिए अपने जीवन में सत्य, संयम और साधना का पालन करें। किसी का दिल ना दुखाएं।
सुबह शुभ मुहूर्त में मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करें। मां ब्रह्मचारिणी के मंत्रों का जाप व आरती करें और दुर्गा स्तुति का पाठ पढ़ें। कलश देवता और नवग्रह की पूजा करें।
मां ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न करने से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, और संयम की वृद्धि होती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय मन को संयमित रखें और व्रत का पालन करें। साथ ही साधना और ध्यान में अपने मन को एकाग्रित करें। मां की पूजा करने वाले भक्तों को अपने मन, वचन और कर्मों से शुद्ध रहना चाहिए। पवित्रता से की गई पूजा मां को प्रसन्न करती है।