कैंसर से जंग: अब हर रोगी के लिए कीमोथेरेपी की जरूरत नहीं
punjabkesari.in Tuesday, Sep 28, 2021 - 01:09 PM (IST)
कैंसर नाम की खौफनाक बीमारी से हर साल सैंकडों लोग जूझ रहे हैं। विशेष रूप से स्तन और फेफड़ों के कैंसर वाले लोगों को खतरनाक उपचार से गुजरना पडता है। अब कीमो एवं रेडिएशन थैरेपी के बगैर भी कैंसर रोग का उपचार संभव है। इस उपचार में कीमो और रेडिएशन थैरेपी की वजह होने वाले साइड इफेक्ट से भी बचा जा सकेगा।
कीमोथेरेपी के दर्द से मिल सकता है छुटकारा
डॉ सीमा दोशी ने अपने स्तन में एक गांठ पाई, इसके बाद उन्हे कैंसर होने की पुष्टि हुई। कैंसर की बात सुनते ही वह डर गई थी। डॉ सीमा ने कहा कि इसने मेरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था,अब मुझे कीमोथेरेपी के दर्द से गुजरना पडेगा। लेकि ह्यूस्टन में एमडी एंडरसन कैंसर सेंटर में स्तन कैंसर विशेषज्ञ डॉ गेब्रियल हॉर्टोबागी ने उन्हे बताया कि दशकों से कीमोथेरेपी को स्तन कैंसर और अन्य कैंसर के इलाज के लिए "नियम, सिद्धांत" माना जाता था लेकिन कई कैंसर रोगियों के लिए यह विधि समाप्त हो रही है।
बालों का झड़ने से भी बच सकते हैं मरीज
डॉ गेब्रियल बताते हैं कि जेनेटिक टेस्टिंग (अनुवांशिक परीक्षण) के परिणाम से शुरुआती उपचार विकल्पों का चयन करने में मदद मिलती है। इससे पता चल जाता है कि कीमोथेरेपी फायदेमंद होगी या नहीं। एस्ट्रोजन ब्लॉकर्स और ड्रग्स भी बिना नॉर्मल और हेल्दी सेल्स को नुकसान पहुंचाए सिर्फ कैंसर वाले सेल्स को टार्गेट करते हैं। यह हर साल खतरनाक कीमोथेरेपी उपचार से हजारों लोगों को बचाता है, इसके साथ-साथ बालों का झड़ना, थकान जैसी समस्याओं को भी रोकता है।
15 साल पहले हुआ परिवर्तन
उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय में एक स्तन कैंसर विशेषज्ञ डॉ लिसा केरी का कहना है कि यह एक पूरी तरह से अलग दुनिया है। राष्ट्रीय कैंसर संस्थान द्वारा जारी दिशानिर्देश के मुताबिक स्तन कैंसर वाले लगभग 95 प्रतिशत रोगियों के लिए कीमोथेरेपी जरूरी है। परिवर्तन 15 साल पहले शुरू हुआ था, जब स्तन कैंसर के लिए पहली लक्षित दवा, हेरसेप्टिन को लगभग 30 प्रतिशत रोगियों पर इस्तेमाल किया गया।
केमोथेरेपी इंस्यूजन दवा है हेरासेप्टिन
हेरासेप्टिन( trastuzumab) एक केमोथेरेपी इंस्यूजन दवा है जो सहायक स्तन कैंसर के इलाज के लिए प्रभावी है। यह अनिवार्य रूप से एक प्रोटीन है जो एचईआर 2 प्रोटीन (मानव एपिडर्मल ग्रोथ फैक्टर रिसेप्टर 2) को लक्षित करता है और बांधता है। स्तन कैंसर वाले 4 में से 1 लोगों में एचईआर 2 पॉजिटिव स्तन कैंसर या प्रोटीन मानव एपिडर्मल ग्रोथ फैक्टर रिसेप्टर 2 होता है।
कैंसर के उपचार को बदलना आसान नहीं
डॉ गेब्रियल का कहना है कि कैंसर के उपचार को बदलना आसान नहीं था।2013 से 2015 तक इलाज की गई लगभग 3,000 महिलाओं के एक अध्ययन में पाया गया कि प्रारंभिक चरण के स्तन कैंसर में कीमोथेरेपी का उपयोग 26 प्रतिशत से घटकर 14 प्रतिशत हो गया है। अब बाजार में कम से कम 14 नई स्तन कैंसर की दवाएं हैं।
सजगता बरतने पर रोका जा सकता है कैंसर
एक रिसर्च के मुताबिक अगर शुरुआत में ही महिलाएं सजगता बरतें और जांच कराएं तो वे कीमोथेरेपी कराने से बच सकती हैं.। इसके अनुसार, ब्रेस्ट कैंसर पीड़ित क़रीब 70 फ़ीसदी औरतों को तो कीमोथेरेपी की ज़रूरत ही नहीं होती। अगर ब्रेस्ट कैंसर के ख़तरे को शुरुआती वक़्त में ही भांप लिया जाए तो बहुत सी महिलाओं को कीमोथेरेपी के दर्द से बचाया जा सकता है।
क्यों होती है कीमोथेरेपी
कीमोथेरेपी को ख़ासतौर पर सर्जरी के बाद किया जाता है ताकि ब्रेस्ट कैंसर बढ़े नहीं या फिर दोबारा न हो जाए। मौजूदा समय में जिन महिलाओं का कैंसर टेस्ट लो स्कोर होता है उन्हें कीमो की ज़रूरत नहीं होती है लेकिन जिनमें हाई स्कोर होता है, उन्हें निश्चित तौर पर कीमो करवाने के लिए कहा जाता है। श्चिमी देशों में ब्रेस्ट कैंसर के जो ज़्यादातर (लगभग 70 फ़ीसदी मामले) मामले आते हैं वो प्रारंभिक चरण में होते हैं लेकिन भारत में ज़्यादातर मामले एडवांस स्टेज में सामने आते हैं। ऐसे में कीमोथेरेपी करना ज़रूरी हो ही जाता है।
कीमोथेरेपी के बाद ये होती है परेशानी
कीमोथेरेपी के दौरान दी गईं दवाइयों का लंबे समय तक असर बना रहता है. जिससे उल्टियां आना, चक्कर आना, बांझपन और नसों में दर्द जैसी परेशानियां हो जाती हैं। कई मामलों में तो ये दिल का दौरा पड़ने का भी कारण हो सकता है. कुछ महिलाओं में कीमोथेरेपी के बाद ल्यूकोमेनिया की शिकायत हो जाती है।