सर्दियों में संभलकर! स्पैनिश फ्लू की तरह तबाही मचा सकता है कोरोना वायरस
punjabkesari.in Thursday, Nov 05, 2020 - 09:26 AM (IST)
कोरोना वायरस देश-विदेश में दोबारा पैर पसार रहा है, जिसकी वजह से कई देशों में लॉकडाउन कर दिया गया है। वैज्ञानिकों की आशंका है कि कोरोना की दूसरी लहर स्पैनिश फ्लू महामारी की तरह ही घातक हो सकती है क्योंकि इन दोनों में काफी समानताएं है और दोनों एक जैसी ही संक्रामक है।
स्पैनिश फ्लू की तरह घातक हो सकती है कोरोना महामारी
बता दें कि स्पैनिश फ्लू से मई 1918 में पहली मौत हुई थी लेकिन कुछ दिनों में ही बीमारी खत्म हो गई। इसके बाद सरकार और लोग ढीले पड़ गए, जिसके बाद साल के अंत तक फ्लू ने भारी तबाही मचा दी थी। इसकी वजह से 1918 वसंत से 1919 की सर्दियों तक करीब 10 करोड़ लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना महामारी में भी कुछ ऐसे ही हालात बन रहे हैं। अगर समय रहते सावधानी ना की गई तो यह विकराल रूप ले सकती है।
वैज्ञानिकों को डर क्यों?
सर्दियों में ज्यादा संक्रामक
कोरोना वायरस का कहर सर्दियों में सबसे ज्यादा देखने को मिला। यूरोपिय देशों में भी सर्दी के मौसम में इसके सबसे ज्यादा मामले सामने आए। ऐसे में साबित होता है कि फ्लू की तरह कोरोना ने भी सर्दियों में सबसे ज्यादा तबाही मचाई।
हवा में देर तक टिकता वायरस
कोरोना वायरस के स्टेन इतने हल्के है कि वह नमी वाले वातावरण और हवा में काफी देर तक मौजूद रह सकते हैं। ऐसे में ठंड के नमी वाले मौसम में इससे संक्रमण फैलने का ज्यादा खतरा है।
सूख जाती नाक की झिल्ली
ठंड के मौसम में नाक की झिल्ली सूख जाती है और संक्रमण से बचाव करने में असहाय हो जाती है। ऐसे में वायरस का हमला होने पर वो बचाव नहीं कर पाती और आप संक्रमण की चपेट में आ जाते हैं।
वेंटिलेशन की कमी कारण
इस मौसम में ज्यादातर लोग बिना वेंटिलेशन घरों के अंदर ही रहते हैं, जिससे संक्रमण फैलने की संभावना भी बढ़ जाती है।
स्पैनिश फ्लू और कोरोना में क्या है समानताएं?
1. फ्लू की तरह कोरोना भी सांस संबंधी बीमारी है , जिसमें वैज्ञानिकों को उसके प्रसार का सही तरीका नहीं पता चल पा रहा है।
2. स्पैशिन फ्लू के ज्यादातर मामले 20-30 साल की उम्र के लोगों में देखे गए थे। वहीं कोरोना की चपेट में भी ज्यादा मिडल एज और बूढ़े-बुजुर्ग ही हैं।
3. फ्लू की तरह कोरोना भी हाथ मिलाने, खांसी व छींक के स्ट्रेन से फैलता है।
4. 1918 में फैले इन्फ्लूएंजा और निमोनिया का भी इलाज नहीं था, कोरोना की वैक्सीन भी अभी बनकर तैयार नहीं हुई है। हालांकि निमोनिया का इलाज अब ढूंढ लिया गया है।
5. उस समय में भी लोगों को मास्क पहनने, सोशल डिस्टेसिंग जैसे नियमों का पालन करने के लिए कहा जा रहा था, जैसे कि अब किया जा रहा है।
तब और अब में क्या अंतर?
1. स्पैनिश फ्लू की तरह वैज्ञानिक कोरोना के व्यवहार में भी ज्यादा जानकारी इकट्ठी नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि यह वायरस काफी रूप बदल चुका है। वैक्सीन बनाने में भी वैज्ञानिकों को इसलिए दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
2. तब टेस्टिंग के लिए इतने साधन मौजूद नहीं थे। हालांकि अब कोरोना की टेस्टिंग के लिए कई साधन मौजूद है।
3. उस समय कई देशों में तो हॉस्पिटल भी मौजूद नहीं थे लेकिन अब देश में यह सुविधा मौजूद है।
4. पहले लोग बीमारी को हल्के में ले लेते थे लेकिन आज वो ज्यादा सतर्क हैं। वहीं आज के हॉस्पिटल भी काफी आधुनिक हो गए हैं।