महाकुंभ पहुंचे साधु से सिर पर उगाया गेहूं, बाजरा और चना, पांच साल से नहीं लेटे अनाज वाले बाबा
punjabkesari.in Saturday, Jan 11, 2025 - 08:12 PM (IST)
नारी डेस्क: जैसे ही प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के पवित्र संगम पर ग्रह पर सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन महाकुंभ शुरू होने वाला है, ऐसे में शहर जीवंत रंगों और उत्साह की भावना से भर गया है। कई अनोखे और आकर्षक नजारों के बीच, एक साधु सबसे अलग दिख रहे है क्योंकि उनके सिर पर पौधे जो उगे हैं। उनके सिर से गेहूं, बाजरा और चने उगते हुए प्रतीत होते हैं, जो भक्तों और आगंतुकों की जिज्ञासा को समान रूप से आकर्षित करते हैं।
इस अनोखे साधु का नाम अमरजीत है, जिन्हें सोनभद्र से आने वाले 'अनाज वाले बाबा' के नाम से जाना जाता है। वे पिछले पांच सालों से अपने सिर पर विभिन्न प्रकार के अनाज उगा रहे हैं। उन्होंने बताया कि उनकी अनोखी प्रतिज्ञा पर्यावरण संरक्षण और विश्व शांति के प्रति गहरी प्रतिबद्धता में निहित है। अमरजीत ने हा- "मैं सोनभद्र से हूं। मेरी प्रतिज्ञा है कि हमारा तिरंगा हमेशा ऊंचा रहे। पिछले 24 दिनों से मेरे सिर पर फसलें उग रही हैं और अगले ढाई महीने तक वे ऐसे ही रहेंगी।यह सुनिश्चित करने का मेरा तरीका है कि महाकुंभ शांतिपूर्ण और बिना किसी व्यवधान के संपन्न हो।"
अनाज वाले बाबा का फसलों की देखभाल के प्रति समर्पण अटूट है। वे नियमित रूप से अपने सिर पर उगने वाले पौधों को पानी देते हैं, ताकि वे स्वस्थ और विकसित हो सकें। उनके पास आने वाले भक्त अक्सर यह नजारा देखकर आश्चर्यचकित हो जाते हैं, फिर भी उन्हें बाबा की सद्भावना के प्रतीक के रूप में चावल के दाने मिलते हैं। अनाज वाले बाबा का अपने सिर पर उगने वाली फसलों के साथ भीड़ के बीच से गुजरते हुए देखना किसी असाधारण से कम नहीं है। कई लोगों के लिए उनकी उपस्थिति आशा, शांति और मानवता और प्रकृति के बीच गहरे संबंध का प्रतीक है।
अनाज वाले बाबा का कहना है कि वह बैठे-बैठे ही सो जाते हैं. वह पिछले 5 सालों से वह लेट कर नहीं सोए हैं. अगर लेट जाएंगे तो उनकी फसल खराब हो जाएगी। 13 जनवरी से शुरू होने वाला महाकुंभ 2025 नदी किनारे 4,000 हेक्टेयर क्षेत्र में आयोजित किया जाएगा और इसमें देश भर से साधु-संतों सहित कम से कम 45 करोड़ लोगों के आने की उम्मीद है। हर 12 साल में आयोजित होने वाला यह धार्मिक आयोजन हिंदू धर्म में सबसे पवित्र धार्मिक समागम माना जाता है, जिसकी शुरुआत तीन पवित्र नदियों के संगम पर पौष पूर्णिमा स्नान से होती है।