माता का अनोखा त्याग, सिर काटकर सहेलियों को पिलाया खून, इस मंदिर में पूरी होती है हर मुराद
punjabkesari.in Monday, Sep 22, 2025 - 12:40 PM (IST)

नारी डेस्क: शारदीय नवरात्रि 2025 की धूम पूरे देश में देखने को मिल रही है। इस पावन पर्व पर जहां एक ओर भक्त माता दुर्गा की विभिन्न स्वरूपों की पूजा करते हैं, वहीं झारखंड के रामगढ़ जिले में स्थित रजरप्पा मंदिर में मां छिन्नमस्तिका की आराधना का विशेष महत्व है। यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि देश के प्रमुख सिद्धपीठों में से भी एक माना जाता है।
रजरप्पा मंदिर का महत्व
रांची से करीब 100 किलोमीटर दूर स्थित यह मंदिर तांत्रिक साधना और सिद्धियों का केंद्र माना जाता है। नवरात्रि के दौरान यहां भारी संख्या में साधक, भक्त और तांत्रिक जुटते हैं। मान्यता है कि इस सिद्धपीठ पर सच्चे मन से मां छिन्नमस्तिका की पूजा करने से हर मनोकामना पूरी होती है।
माता छिन्नमस्तिका की अनोखी कथा
मंदिर में स्थापित मां छिन्नमस्तिका की मूर्ति बेहद अद्भुत है। देवी की यह प्रतिमा कटे हुए सिर की है। पुजारियों और स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, इसकी पीछे एक अनोखी कथा जुड़ी है।
कहा जाता है कि एक बार माता की सहेलियों को प्रचंड भूख लगी और वे रक्त पीना चाहती थीं। उस समय माता ने कहा कि किसी और को मारकर भोजन कराना उचित नहीं है। इसके बाद देवी ने अपना ही सिर काट लिया और अपने सहेलियों को अपना रक्त पिलाकर उनकी भूख शांत की।
त्याग और बलिदान का संदेश
माता छिन्नमस्तिका का यह स्वरूप हमें यह सिखाता है कि दूसरों की भलाई के लिए स्वयं का त्याग करना ही सच्ची करुणा और बलिदान है। देवी यह संदेश देती हैं कि जगत कल्याण के लिए अगर खुद का बलिदान भी करना पड़े तो पीछे नहीं हटना चाहिए, लेकिन किसी और को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए।
तांत्रिक साधना का प्रमुख केंद्र
यह सिद्धपीठ विशेष रूप से तांत्रिकों और साधकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। नवरात्रि के नौ दिनों में यहां पूरे देश से तांत्रिक और साधक पहुंचते हैं और मां की साधना कर सिद्धियां प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। इस दौरान पूरे मंदिर परिसर में साधना, मंत्रोच्चारण और जयकारों की गूंज रहती है। नवरात्रि के नौ दिनों में यहां का नजारा देखते ही बनता है। भक्तों का मानना है कि मां छिन्नमस्तिका के दर्शन मात्र से ही हर मुराद पूरी हो जाती है। इन दिनों मंदिर परिसर भक्तों की भीड़, साधकों की साधना और मां के जयकारों से गूंजता रहता है। पूरे साल यहां रौनक रहती है, लेकिन नवरात्रि के दौरान इसका वातावरण दिव्य और अद्भुत हो जाता है।
यह मंदिर सिर्फ आस्था का केंद्र ही नहीं, बल्कि त्याग, करुणा और बलिदान का जीता-जागता प्रतीक है, जहां हर भक्त अपने दिल की मुराद लेकर आता है और मां के चरणों में आस्था अर्पित करता है।