यहां जयकारों से नहीं फायरिंग से होती है मां शक्ति की आराधना, देश के जवान देते हैं खास सलामी

punjabkesari.in Monday, Sep 22, 2025 - 04:38 PM (IST)

नारी डेस्क:  झारखंड आर्म्ड फोर्स वन (जैप-1) की नवरात्र की पूजा परंपरा पूरे देश में अलग पहचान रखती है। यहां नवरात्र की शुरुआत प्रतिमा स्थापना से नहीं, बल्कि कलश स्थापना और फायरिंग सलामी से होती है। वहीं आज इस अवसर पर जैप-1 के कमांडेंट राकेश रंजन ने पूजा स्थल पर पहुंचकर जवानों और श्रद्धालुओं को शुभकामनाएं दीं। रंजन ने कहा कि गोरखा जवानों की यह परंपरा न केवल आस्था और शौर्य को दर्शाती है बल्कि संस्कृति और अनुशासन की गहराई भी उसमें झलकती है।  
 

महानवमी का दिन होता है बेहद खास

जैप-1 के गोरखा जवान मानते हैं कि शक्ति को दी जाने वाली यह सलामी उनकी वीर परंपरा का प्रतीक है। नौ दिनों तक पूजा स्थल पर लगातार धार्मिक अनुष्ठान चलते हैं। वातावरण में जयकारे और मंत्रोच्चार गूंजते रहते हैं, जबकि श्रद्धालु कलश की परिक्रमा और पूजा में लीन रहते हैं। महानवमी का दिन इस पूजा में सबसे महत्वपूर्ण होता है। इस मौके पर गोरखा जवान अपने शस्त्र मां दुर्गा को अर्पित कर उनका पूजन करते हैं। आस्था है कि पूजा के बाद उनके हथियार कभी धोखा नहीं देंगे और सटीक चलेंगे। नवमी पर 101 बलियों की परंपरा भी आज तक कायम है। इसके बाद विशेष फायरिंग कर मां शक्ति को सलामी दी जाती है। 


1880 में हुई थी इस परंपरा की शुरुआत


 वहीं यह अनूठी परंपरा सन 1880 में गोरखा ब्रिगेड ने शुरू की थी। उसके बाद बिहार मिलिट्री पुलिस (बीएमपी) और झारखंड के गठन के बाद जैप-1 में यह पूजा हर साल अनुशासन और श्रद्धा के साथ निभाई जाती है। महासप्तमी पर यहां 'फूल पाती शोभायात्रा' का आयोजन होता है। इसमें नौ प्रकार के पेड़ों की शाखाएं एकत्र कर पूजा की जाती है। इस परंपरा का उद्देश्य प्रकृति संरक्षण और पर्यावरण संतुलन के लिए प्रार्थना करना है। इस दिन भी गोरखा जवान फायरिंग सलामी देकर पूजा संपन्न करते हैं।  गोरखा महिला श्रद्धालुओं ने भी बताया कि मां शक्ति और शस्त्रों की आराधना से उन्हें आत्मबल और साहस मिलता है। वहीं स्थानीय श्रद्धालुओं का कहना है कि जैप परिसर की यह पूजा रांची की सांस्कृतिक धरोहर है, जिसका इंतजार हर साल बेसब्री से किया जाता है।
 


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Content Writer

vasudha

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