क्यों टोका जाता है तीन रोटियां खाने से, क्या ये अंधविश्वास है या स्वस्थ जीवन की समझदारी

punjabkesari.in Sunday, Aug 24, 2025 - 04:42 PM (IST)

नारी डेस्क : भारतीय परिवारों में खाने-पीने को लेकर कई परंपराएं और मान्यताएं पाई जाती हैं। आपने भी शायद अपने घर या रिश्तेदारों के यहां देखा होगा कि जब खाना परोसा जाता है, तो थाली में कभी तीन रोटियां एक साथ नहीं रखी जातीं। मां, नानी या दादी तुरंत कह देती हैं, “तीन मत लो, दो या चार ले लो। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों होता है। क्या यह सिर्फ एक पुरानी आदत है, धार्मिक मान्यता है या फिर इसके पीछे सेहत से जुड़ी कोई वजह भी है। इस लेख में हम बताएंगे कि 3 रोटी थाली में क्यों रखी जाती है।

ज्योतिष और धार्मिक मान्यता के अनुसार 

भारतीय संस्कृति में भोजन केवल पेट भरने का साधन नहीं माना जाता, बल्कि इसे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा और शुभ कार्यों का प्रतीक भी माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र और अंक ज्योतिष में तीन अंक को शुभ नहीं माना जाता और इसे नकारात्मक ऊर्जा से जोड़ा जाता है। इसलिए पूजा-पाठ और अन्य धार्मिक कामों में तीन की संख्या से बचा जाता है। पुरानी मान्यता यह भी है कि जब किसी मृतक के नाम पर भोजन परोसा जाता है, तो थाली में तीन रोटियां रखी जाती हैं। इसे मृत्यु और शोक का प्रतीक माना जाता है। इसलिए किसी जीवित व्यक्ति की थाली में तीन रोटियां रखना अशुभ माना जाता है। यही वजह है कि कई परिवारों में लोग दो या चार रोटियां ही लेते हैं और तीन से बचते हैं। इस तरह यह आदत धीरे-धीरे घर-घर में नियम की तरह बन गई है।

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 बुजुर्गों की सीख या पुरानी आदतें

हमारे घरों में दादी-नानी या मां हमेशा यही सिखाती थीं कि थाली में तीन रोटियां नहीं लेनी चाहिए। यह परंपरा पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही है और घर-घर में इसे नियम की तरह माना जाता है। पहले के समय में लोग धार्मिक और ज्योतिषीय मान्यताओं को ज्यादा महत्व देते थे और इसे शुभ मानते थे। पर धीरे-धीरे यह आदत सिर्फ धार्मिक दृष्टिकोण तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह खाने की सही मात्रा और स्वास्थ्य की समझदारी का भी प्रतीक बन गई। बुजुर्गों की यह सीख यह सिखाती है कि थाली में संतुलित मात्रा में भोजन लेना चाहिए, ताकि पेट हल्का रहे और पाचन ठीक रहे। इस तरह, यह पुरानी आदत हमारे जीवन में एक उपयोगी और स्वास्थ्यवर्धक नियम बन गई है।

स्वास्थ्य के नजरिया से

स्वास्थ्य की दृष्टि से भी तीन रोटियां एक साथ खाना हर किसी के लिए ठीक नहीं माना जाता। हेल्थ एक्सपर्ट्स के अनुसार संतुलित भोजन में दो रोटियां, एक कटोरी दाल, थोड़े चावल और सब्जी पर्याप्त होते हैं। तीन रोटियां खाने से पेट पर ज्यादा दबाव पड़ सकता है, खासकर अगर साथ में चावल या मीठा भी खाया जाए। इससे पाचन की समस्या, भारीपन और वजन बढ़ने का खतरा हो सकता है। इसलिए स्वास्थ्य के लिहाज से दो या चार रोटियां लेना बेहतर माना जाता है।

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 खाने से जुड़ी अन्य मान्यताएं

भारतीय संस्कृति में सिर्फ तीन रोटियों की मान्यता ही नहीं, बल्कि खाने से जुड़ी कई और परंपराएं भी प्रचलित हैं। जैसे, कहा जाता है कि रात को दही नहीं खाना चाहिए, क्योंकि इसे पचाना मुश्किल होता है और यह पेट के लिए भारी हो सकता है। खाना बनाते समय नमक हमेशा चुटकी में डालने की सलाह दी जाती है, ताकि स्वाद और सेहत दोनों संतुलित रहें। इसके अलावा, खाने के बाद कुछ मीठा जरूर लेने की परंपरा भी है, जो भोजन के बाद पेट को हल्का और संतुष्ट महसूस कराती है। यह सारी बातें हम अपने बड़ों से सीखते आए हैं और बिना ज्यादा सवाल किए मानते भी हैं। हालांकि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इनमें से सभी नियम जरूरी नहीं हैं, लेकिन ये परंपराएं हमारे खाने के तरीके और आदतों में अनुशासन और संतुलन बनाए रखने में मदद करती हैं।

इन मान्यताओं में कितनी है सच्चाई

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो थाली में तीन रोटियां न रखने का कोई ठोस कारण नहीं है। यह मुख्य रूप से परंपरा, धार्मिक और ज्योतिषीय मान्यताओं पर आधारित है। इतिहास और संस्कृति ने इसे हमारे खानपान का हिस्सा बना दिया है, लेकिन इसका कोई सीधे तौर पर स्वास्थ्य पर असर साबित नहीं है। फिर भी, स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से यह समझना जरूरी है कि अधिक रोटियां खाने से पेट पर बोझ बढ़ सकता है। इससे पाचन समस्या, भारीपन और वजन बढ़ने जैसी परेशानियां हो सकती हैं। इसलिए, दो या चार रोटियां लेना न केवल परंपरा का पालन करना माना जाता है, बल्कि यह स्वास्थ्य और संतुलित भोजन की समझदारी का भी प्रतीक है।

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इस तरह कहा जा सकता है कि यह आदत हमारी संस्कृति और स्वास्थ्य दोनों से जुड़ी हुई है और इसे एक उपयोगी नियम की तरह अपनाया जा सकता है।
 


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Content Writer

Vandana

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