नहीं रही 50 के दशक की चर्चित एक्ट्रेस, एक गाने के लिए नाची थी असली हाथी- घोड़े के साथ
punjabkesari.in Saturday, Oct 04, 2025 - 05:16 PM (IST)

नारी डेस्क: दिग्गज फिल्म निर्माता वी. शांताराम की पत्नी और दिग्गज अभिनेत्री संध्या शांताराम का 87 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। वह हिंदी और मराठी दोनों सिनेमा की एक प्रसिद्ध कलाकार थी, उन्हें उनके अभिनय और नृत्य कौशल के लिए जाना जाता था, जिसने दर्शकों पर अमिट छाप छोड़ी। संध्या 1950 और 60 के दशक में वी. शांताराम की फिल्मों से प्रसिद्धि में आईं। उनके निधन से फिल्म जगत में शोक की लहर दौड़ गई है।
संध्या शांताराम की सबसे यादगार कृतियों में 1955 में आई "झनक झनक पायल बाजे" शामिल है, जिसने बड़े पर्दे पर शास्त्रीय नृत्य को उजागर किया, इसके बाद 1957 में आई "दो आंखें बारह हाथ", एक राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म जो भारतीय सिनेमा में एक मानक बनी हुई है। उन्होंने 1959 में "नवरंग" में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जहाँ उनका अभिनय अपनी नवीनता, संगीत और दृश्यों के लिए उल्लेखनीय रहा। इन फिल्मों के गीत, "झनक झनक तोरी पायल बाजे पायलिया" और "नैन सो नैन नहीं मिलाओ", व्यापक रूप से लोकप्रिय हुए और अपने समय की सबसे सफल अभिनेत्रियों में से एक के रूप में उनकी स्थिति को मजबूत किया।
होली के त्योहार पर बजने वाले गानों में से एक है ‘अरे जा रे हट नटखट, ना छू मेरा घूंघट…’ . इस गाने में संध्य ने ही अपने खास अंदाज से समा बांध दिया था। इस गाने के लिए उन्होंने असली हाथी और घोड़े के बीच डांस किया था। संध्या ने बीना डरे तरकीब से काम लिया और जानवरों को अपने वश में कर झूम झूम कर नाचीं। रिलीज़ होने के 6 दशक बाद भी यह गाना सुपरहिट ही बना हुआ है। मराठी सिनेमा में, वी. शांताराम द्वारा निर्देशित 1972 की "पिंजरा" में संध्या का अभिनय प्रतिष्ठित बन गया। यह फिल्म सामाजिक विषयों की खोज के लिए प्रसिद्ध थी, और इसके गीत, जैसे "माला लागली कुनाची उचकी", ने दर्शकों के दिलों को छू लिया।
भारतीय राजनेता और क्रिकेट प्रशासक आशीष शेलार ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया। उन्होंने मराठी में ट्वीट किया- "फिल्म पिंजरा में अपनी भूमिका के लिए प्रसिद्ध, प्रसिद्ध अभिनेत्री संध्या शांताराम जी के निधन की खबर बेहद दुखद है। मराठी और हिंदी सिनेमा, दोनों में, उन्होंने अपने असाधारण अभिनय और नृत्य कौशल से दर्शकों पर एक अलग छाप छोड़ी।" संध्या शांताराम को हिंदी और मराठी सिनेमा के बीच सेतु का काम करने के लिए याद किया जाता है और उनका योगदान भारतीय फिल्म इतिहास का हिस्सा बना हुआ है।