वाराणसी में ढोल-नगाड़े और डमरू के बीच खेली गई मुर्दों की राख से होली, यहां देखें अद्भुत तस्वीरें
punjabkesari.in Tuesday, Mar 11, 2025 - 07:39 PM (IST)

नारी डेस्क: काशी के मणिकर्णिका घाट पर मंगलवार को श्रद्धालुओं और नागा साधुओं ने जलती चिताओं के बीच ‘चिता भस्म' की होली खेलने की अनूठी परंपरा मनाई। महाश्मशान में चिता भस्म की होली के व्यवस्थापक गुलशन कपूर ने बताया कि इस दौरान नागा साधुओं ने त्रिशूल और तलवार लिये नृत्य किया और एक नागा साधु ने गले में नर मुंडों की माला डालकर तांडव किया। चिता भस्म की राख और गुलाल से सभी सराबोर रहे।
काफी संख्या में विदेशी पर्यटकों ने भी इस अनोखी होली को देखा। काशी के मणिकर्णिका घाट पर मंगलवार को जलती चिताओं के बीच लगभग एक घंटे चिता भस्म की होली खेली गयी। हालांकि, इस बार काशी विद्वत परिषद सहित कुछ अन्य संगठन महाश्मशान की होली को शास्त्र विरुद्ध बता कर इसका विरोध कर रहे थे। काशी विद्वत परिषद के महामंत्री रामनारायण द्विवेदी ने कह-‘‘हमारे शास्त्रों में गृहस्थों द्वारा महाश्मशान की होली खेलने का कोई प्रमाण नहीं है। लोग भ्रमित होकर इस परंपरा से जुड़ रहे हैं जो कि शास्त्र विरुद्ध है।'' उन्होंने कहा कि कुछ लोग अपने फायदे के लिए इस शास्त्र विरुद्ध आयोजन को परंपरा का नाम दे रहे हैं।
रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन मंगलवार को अपराह्न में बाबा महाश्मशान नाथ की भव्य आरती के बाद 12 से एक बजे के बीच चिता भस्म की होली खेली गयी।पिछले 24 वर्षों से यह परंपरा निभाई जा रही है और महाश्मशान की होली की तैयारी छह माह पहले से शुरू हो जाती है। प्रतिदिन श्मशान से दो से तीन बोरी चिता राख उठाई जाती है।
इस बार महाश्मशान नाथ मंदिर समिति ने भारी भीड़ और हुड़दंग के कारण महिलाओं की सुरक्षा को देखते हुए उनको महाश्मशान के होली उत्सव में न आने का अनुरोध किया था। काशी में मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ माता पार्वती का गौना (विदाई) कराकर अपने धाम काशी लाते हैं जिसे उत्सव के रूप में काशीवाशी मनाते है।'' इस पारंपरिक उत्सव को काशी के मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच मनाया जाता हैं जिसे देखने दुनिया भर से लोग काशी आते हैं।