अविवाहित महिला को भी मिला अबॉर्शन कराने का कानूनी अधिकार, SC ने सुनाया अहम फैसला
punjabkesari.in Thursday, Sep 29, 2022 - 03:04 PM (IST)
सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने गर्भ का चिकित्सकीय समापन (एमटीपी) अधिनियम के तहत विवाहित या अविवाहित सभी महिलाओं को गर्भावस्था के 24 सप्ताह तक सुरक्षित व कानूनी रूप से गर्भपात कराने का अधिकार दे दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी महिला को 20 हफ्ते से ज्यादा के गर्भ को गिराने से मना इस आधार पर नहीं किया जा सकता कि वह अविवाहित है।
महिलाओं के साथ नहीं होना चाहिए पक्षपात: कोर्ट
न्यायमूर्ति डी. वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना की एक पीठ ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट में संशोधन करते हुए कहा- चाहे महिला विवाहित हो या अविवाहित, वह गर्भावस्था के 24 सप्ताह तक वह गर्भपात करा सकती हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि गर्भपात कानून के तहत विवाहित या अविवाहित महिला के बीच पक्षपात करना ‘‘प्राकृतिक नहीं है व संवैधानिक रूप से भी सही नहीं है’’ और यह उस रूढ़िवादी सोच को कायम रखता है कि केवल विवाहित महिलाएं ही यौन संबंध बनाती हैं।
क्या है MTP ऐक्ट
जैसा कि इस एक्ट के नाम से ही स्पष्ट हो रहा है कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट गर्भपात से जुड़ा एक कानून है। यह प्रेग्नेंसी के मेडिकल टर्मिनेशन यानी प्रेग्नेंसी को खत्म करने की इजाजत देता है। MTP ऐक्ट के अनुसार- केवल बलात्कार पीड़िताओं, नाबालिगों, महिलाएं जिनकी वैवाहिक स्थिति गर्भावस्था के दौरान बदल गई हो, मानसिक रूप से बीमार महिलाओं या फिर फीटल मॉलफॉर्मेशन वाली महिलाओं को ही 24 हफ्ते तक का गर्भ गिराने की अनुमति है।
कानून में हो चुका है संशोधन
दुनिया के केवल 41 देशों में महिलाओं के लिए अबॉर्शन को संवैधानिक अधिकार दिया गया है। भारत भी इनमें से एक है, यहां पहली बार 1971 में गर्भपात कानून पास किया गया था, जिसे मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी यानी एमटीपी अधिनियम 1971 नाम दिया गया था। देश में पहले कुछ मामलों में 20 हफ्ते तक गर्भपात की अनुमति थी, लेकिन 2021 में इस कानून में संशोधन हुआ और यह समय सीमा बढ़ाकर 24 हफ्ते कर दी गई. हालांकि कुछ विशेष परिस्थिति में 24 हफ्ते के बाद भी गर्भपात की इजाजत दी जाती है।
क्या है पूरा मामला
दरअसल एक महिला ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 2003 के नियम-3 बी को चुनौती दी थी, जो कि केवल कुछ श्रेणियों की महिलाओं को 20 से 24 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति देता है। मणिपुर की रहने वाली इस महिला ने गर्भावस्था का पता चलने पर दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया था। हाई कोर्ट ने कानून का हवाला देते हुए 20 हफ्तों से ज्यादा के गर्भ को गिराने की इजाजत से इनकार कर दिया था। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि कानून अविवाहित महिलाओं को मेडिकल प्रक्रिया के जरिए गर्भपात के लिए समय देता है। इसके बाद महिला ने सुप्रीम कोर्ट मे अपील दाखिल की।