लिव-इन में रहने से पहले और ब्रेकअप के बाद भी देनी पड़ेगी जानकारी, इस राज्य में बदले गए कई नियम
punjabkesari.in Monday, Jan 27, 2025 - 06:47 PM (IST)
नारी डेस्क: उत्तराखंड ने सोमवार को समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू करने वाला भारत का पहला राज्य बनकर इतिहास रच दिया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 27 जनवरी, 2025 को यूसीसी पोर्टल और नियमों का शुभारंभ किया, जो सामाजिक न्याय और समानता की दिशा में राज्य की यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। Uniform Civil Code भारत में एक ऐसा प्रस्तावित कानून है, जो सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून बनाने की बात करता है, चाहे उनका धर्म, जाति, लिंग या समुदाय कोई भी हो। इसका उद्देश्य भारत में मौजूद विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों (Personal Laws) को खत्म कर एकसमान नागरिक कानून लागू करना है।
भारतीय संविधान में समान नागरिक संहिता का उल्लेख्
अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि: "राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता हो।"यह अनुच्छेद नीति निर्देशक सिद्धांतों (Directive Principles of State Policy) का हिस्सा है, जिसका मतलब है कि इसे लागू करना सरकार का कर्तव्य है, लेकिन यह बाध्यकारी नहीं है। कुछ समुदायों का मानना है कि UCC उनके धार्मिक रीति-रिवाजों और परंपराओं को खत्म कर सकता है।
वर्तमान स्थिति
भारत में फिलहाल अलग-अलग धर्मों और समुदायों के लिए अलग-अलग व्यक्तिगत कानून हैं, जो विवाह, तलाक, संपत्ति, गोद लेने और उत्तराधिकार (inheritance) जैसे मामलों में लागू होते हैं। उदाहरण के लिए-हिंदू कानून:हिंदू, जैन, बौद्ध और सिखों पर लागू होता है। मुस्लिम कानून:शरीयत (Sharia) पर आधारित है। ईसाई और पारसी कानून:अपने-अपने धार्मिक प्रथाओं के अनुसार संचालित होते हैं।
क्या है इस कानून का उद्देश्य
उत्तराखंड समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लागू करने वाला भारत का पहला राज्य बन गया है, जिसका उद्देश्य विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और विरासत से संबंधित व्यक्तिगत कानूनों को सरल और मानकीकृत करना है। इसके तहत विवाह केवल उन्हीं पक्षों के बीच सम्पन्न किया जा सकेगा, जिनमें से किसी का कोई जीवित जीवनसाथी न हो, दोनों ही कानूनी अनुमति देने के लिए मानसिक रूप से सक्षम हों, पुरुष की आयु कम से कम 21 वर्ष तथा महिला की आयु 18 वर्ष पूरी हो चुकी हो तथा वे निषिद्ध संबंधों की परिधि में न हों। धार्मिक रीति-रिवाजों अथवा कानूनी प्रावधानों के तहत विवाह की रस्में किसी भी रूप में संपन्न की जा सकेंगी, लेकिन अधिनियम लागू होने के बाद होने वाले विवाहों का 60 दिनों के भीतर पंजीकरण कराना अनिवार्य है।
विवाह को लेकर इन नियमों का करना होगा पालन
यूसीसी के तहत सभी शादियों और लिव-इन रिलेशनशिप्स का रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था की गई है. ऐसे केंद्र बनाए गए हैं, जहाँ पर लोग अपने विवाह को ऑनलाइन रजिस्टर करने के लिए मदद ले सकते हैं ताकि सरकारी दफ़्तरों की भागदौड़ न हो। 26 मार्च 2010 से पहले जो भी विवाह राज्य में या राज्य से बाहर हुआ है उसमें दोनों पक्ष साथ रहे हैं और क़ानूनी पात्रता रखते हैं वो क़ानून लागू होने के छह महीनों के अंदर विवाह का रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। अधिनियम के तहत पंजीकरण के लिए गलत सूचना देने पर दंड का प्रावधान है तथा यह भी स्पष्ट किया गया है कि केवल पंजीकरण न होने के कारण विवाह को अमान्य नहीं माना जाएगा। पंजीकरण ऑनलाइन तथा ऑफलाइन दोनों प्रकार से कराया जा सकता है।
पहली बार लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर कानून
उत्तराखंड के यूसीसी में लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले या इसकी तैयारी करने वालों के लिए भी प्रावधान किया गया है. जो लिव-इन रिलेशनशिप में हैं, उन्हें इसके बारे में ज़िले के रजिस्ट्रार के सामने घोषणा करनी होगी। लिव-इन रिलेशनशिप में पैदा हुए बच्चों को भी वैध बच्चा घोषित किया गया है। 21 साल से कम उम्र के लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले युवक-युवती के परिजनों को इसके बारे में पहले से इसको लेकर सूचित करना ज़रूरी होगा। इसके अलावा उन लोगों का लिव-इन रिलेशनशिप वैध नहीं हो सकता जो अवयस्क हैं, पहले से शादीशुदा हैं या बलपूर्वक या धोखे से ऐसा कर रहे हैं। लिव-इन रिलेशनशिप को ख़त्म करने की स्थिति में भी इसके बारे में घोषणा करनी होगी
समान नागरिक संहिता के लाभ
- महिलाओं को समान अधिकार मिलेंगे, चाहे वे किसी भी धर्म से हों।
- एक समान कानून सभी नागरिकों को जोड़ने का काम करेगा।
-एक ही कानून सभी के लिए लागू होने से न्याय प्रणाली अधिक प्रभावी होगी।
- यह संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को मजबूती देगा।