यूके में पहली बार तीन लोगों के DNA से पैदा हुआ बच्चा, वैज्ञानिकों ने कर दिखाया कमाल

punjabkesari.in Sunday, May 14, 2023 - 01:48 PM (IST)

आठ साल के कड़े प्रयास के बाद माइटोकॉन्ड्रियल रिप्लेसमेंट थेरेपी (MRT) के रूप में जानी जाने वाली प्रजनन तकनीक को मंजूरी देने वाला ब्रिटेन दुनिया का पहला देश बन गया है। इसके लिए अप्रैल 2023 तक "पांच से कम" बच्चों का जन्म प्रक्रिया का उपयोग हुआ है। मानव निषेचन और भ्रूणविज्ञान प्राधिकरण (HFEA ), यूके फर्टिलिटी रेगुलेटर जो मामले-दर-मामले आधार पर आईवीएफ-आधारित प्रक्रिया को मंजूरी देता है, ने हाल ही में सूचना अनुरोध की स्वतंत्रता के जवाब में इसकी पुष्टि की। फर्टिलिटी रेगुलेटर ने बच्चों के जन्म विवरण के बारे में अधिक जानकारी साझा करने से इंकार कर दिया क्योंकि इससे "उस व्यक्ति की पहचान हो सकती है जिसके लिए एचएफईए की गोपनीयता का कर्तव्य है"।

ब्रिटेन में पहली बार हुआ तीन लोगों के डीएनए से जुड़ा जन्म 

ब्रिटेन में पहली बार ऐसे बच्चे को जन्म दिया गया है जिसमें तीन लोगों का डीएनए मौजूद है। इस थेरेपी को माइटोकॉन्ड्रियल रिप्लेसमेंट थियूरी का नाम दिया गया है। इस थेरेपी की खास बात यह है कि वैसे तो आम तौर पर किसी भी बच्चे में दो ही लोगों का डीएनए होता है उसके माता पिता का लेकिन इस थेरेपी के जरिए बच्चे में किसी तीसरे का डीएनए भी लाया गया है। 

PunjabKesari

आखिर क्या है माइटोकोंड्रिया? 

ब्रिटेन 2015 में दुनिया का पहला ऐसा देश बन गया है जिसने खराब माइटोकोंड्रिया वाली महिलाओं की मदद के तरीकों को विनियमित करने के लिए कानून लागू किया है। माइटोकोंड्रिया किसी कोशिका में ऊर्जा का स्त्रोत होता है और इसी के जरिए आनुवांशिक दोष शिशुओं तक पहुंचते हैं। 

आइवीएफ के जरिए किया ट्रीटमेंट 

ब्रिटेन में वैज्ञानिकों ने मां का एक ऐसा फर्टिलाइज्ड एग लिया इस एग में से खराब माइटोकोंड्रिया निकाल वहीं  वैज्ञानिकों के पास एक ऐसा एग भी था जो बिना पावर हाउस का था। ऐसा ही एक तीसरा माइटोकोंड्रिया डालना ही पड़ेगा। इसके बाद मां का एग और तीसरे शख्स के माइटोकोंड्रिया को आइवीएफ तकनीक के जरिए मिलाकर मां के गर्भाश्य में प्लांट कर दिया गया ऐसे ही बच्चे में तीन डीएनए आ गए। 

PunjabKesari

थ्री पैरैंट् बेबी दिया गया तकनीक को नाम 

बच्चे की इस प्रक्रिया को थ्री पैरेंट बेबी का नाम दिया गया है लेकिन इसमें तीसरे शख्स का डीएनए बहुत ही कम है। तीसरे शख्स का डीएनए सिर्फ 0.2 प्रतिशत था लेकिन माता-पिता का डीएनए 99.8 फीसदी है। इस तकनीक को 2015 में मान्यता दी गई थी। वहीं 2018 में पहले केस के लिए मंजूरी मिली और वह भी सिर्फ एक ही क्लीनिक को। अभी तक 30 केस के लिए इस प्रोसेस को मान्यता मिल चुकी है । 

PunjabKesari

वहीं वैज्ञानिकों का मानना है कि इस तकनीक के जरिए माइटोकॉन्ड्रियल डिसऑर्डर से बचा जा सकता है। यह तकनीक ऐसा इंतजाम कर देगी कि बच्चे में मां की ओर से खराब माइटोकांड्रिया पहुंच ही नहीं पाएगा। 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

palak

Related News

static