तुलसी विवाह 2024: जानें जलंधर, वृंदा और तुलसी विवाह की पूरी कथा!
punjabkesari.in Wednesday, Nov 13, 2024 - 10:25 AM (IST)
नारी डेस्क: हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे का विशेष महत्व है। तुलसी को पवित्र माना जाता है और इसे घर में रखने से सभी अशुभ शक्तियां दूर रहती हैं। तुलसी के पूजन का महत्व गंगा स्नान के बराबर बताया गया है। तुलसी विवाह कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वादशी के अगले दिन त्रयोदशी को होता है, जिसमें भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप का विवाह तुलसी माता से किया जाता है। इस वर्ष तुलसी विवाह का पर्व 13 नवंबर 2024 को मनाया जा रहा है। इस पावन अवसर पर आइए जानते हैं जलंधर कौन था, वृंदा कैसे बनीं तुलसी, और तुलसी विवाह की पौराणिक कथा।
जलंधर कौन था?
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने एक बार अपने तेज को समुद्र में प्रवाहित किया था, जिससे एक तेजस्वी बालक उत्पन्न हुआ। यह बालक आगे चलकर जलंधर के नाम से एक शक्तिशाली दैत्य राजा बना। जलंधर की राजधानी जलंधर नगरी थी, और उसका विवाह दैत्यराज कालनेमि की कन्या वृंदा से हुआ। जलंधर की शक्ति और अहंकार के कारण उसने माता लक्ष्मी को प्राप्त करने की इच्छा से युद्ध किया, परंतु समुद्र से जन्म लेने के कारण लक्ष्मी ने उसे अपना भाई मान लिया। इसके बाद उसने देवी पार्वती को पाने की कोशिश की, जिसके कारण उसका भगवान शिव से युद्ध हुआ।
वृंदा का पतिव्रता धर्म और जलंधर का शक्ति स्रोत
जलंधर की पत्नी वृंदा अत्यंत पतिव्रता स्त्री थी। उसके सतीत्व और पतिव्रता धर्म की शक्ति से जलंधर अपराजेय था और उसे कोई भी पराजित नहीं कर सकता था। इस कारण जलंधर का वध करना कठिन हो गया था। जलंधर का अंत करने के लिए वृंदा के पतिव्रता धर्म को भंग करना आवश्यक था।
भगवान विष्णु का छल और वृंदा का सतीत्व भंग
भगवान विष्णु ने ऋषि का रूप धारण कर वृंदा के पास पहुंचे, जो उस समय अकेली थीं। ऋषि रूप में विष्णु ने वृंदा को विश्वास में लेकर अपने माया से दो राक्षस प्रकट किए, जिन्हें देखकर वृंदा डर गई। ऋषि ने अपनी शक्ति से उन राक्षसों को भस्म कर दिया, जिससे वृंदा प्रभावित हो गईं और अपने पति जलंधर के बारे में पूछने लगीं।
भगवान विष्णु ने अपने माया जाल से दो वानर उत्पन्न किए, जिनके हाथों में जलंधर का सिर और धड़ था। इसे देख वृंदा मूर्छित हो गईं। होश में आने पर वृंदा ने ऋषि से अपने पति को जीवित करने की प्रार्थना की। विष्णु ने जलंधर का रूप धारण कर लिया और वृंदा को इसका पता नहीं चला। वृंदा का सतीत्व भंग होते ही जलंधर युद्ध में मारा गया।
वृंदा का श्राप और तुलसी रूप में अवतरण
वृंदा को जब इस छल का पता चला तो उन्होंने विष्णु को पत्थर (शालिग्राम) होने का श्राप दे दिया और आत्मदाह कर लिया। जहां वृंदा का देहांत हुआ, वहां तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ। भगवान विष्णु ने वृंदा से कहा कि तुम मेरे लिए लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो, इसलिए तुम तुलसी के रूप में मेरे साथ हमेशा रहोगी।
तुलसी विवाह का महत्व
भगवान विष्णु ने कहा कि जो भी व्यक्ति मेरे शालिग्राम रूप के साथ तुलसी का विवाह करेगा, उसे इस लोक और परलोक में महान पुण्य प्राप्त होगा। इसीलिए, हर साल कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी को तुलसी विवाह का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
जालंधर नगरी और सती वृंदा का मंदिर
कहते हैं कि पंजाब का प्रसिद्ध शहर जालंधर, उसी दैत्य जलंधर के नाम पर है। यहां के मोहल्ला कोट किशनचंद में आज भी सती वृंदा का एक प्राचीन मंदिर है। मान्यता है कि जो व्यक्ति यहां 40 दिन तक सच्चे मन से पूजा करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
इस प्रकार, तुलसी विवाह का पर्व न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि सच्चे प्रेम, भक्ति, और सतीत्व का प्रतीक भी है।