इस मंदिर में है श्री कृष्ण की जीवित प्रतिमा, भगवान की पल्स से चलती है घड़ी
punjabkesari.in Thursday, Aug 22, 2024 - 06:41 PM (IST)
गुजरात के स्वामीनारायण गोपीनाथ मंदिर में भगवान कृष्ण को घड़ी पहनाई जाती है, जो इस मंदिर की अनोखी और दिलचस्प परंपरा है। गोपीनाथ मंदिर में भगवान कृष्ण को घड़ी पहनाने की यह अनोखी परंपरा हमें समय की महत्ता की याद दिलाती है और बताती है कि किस प्रकार आध्यात्मिकता और आधुनिकता का संगम हो सकता है। यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि गुजरात की सांस्कृतिक धरोहर का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
घड़ी का इतिहास
यह घड़ी एक अंग्रेज ने बांधी थी जब उसे पता चला कि ठाकुर जी की मूर्ति में प्राण है।जब वह एक अंग्रेज भारत आया तो उसने इस मंदिर के बारे में सुना, वह दोबारा अपने देश लौटा और वहां से एक घड़ी लेकर आया। इस घड़ी की खासियत यह थी कि वह सिर्फ व्यक्ति की पल्स से चलती थी। अगर कोई इंसान जिंदा है तो ही वह घड़ी चलेगी और सही समय बताएगी।
यहां खुद प्रकट हुए थे भगवान कृष्ण
अंग्रेज ने उस घड़ी को श्री कृष्ण की कलाई पर बांध दिया, जिसके बाद वह सही समय दिखाते हुए चल पड़ी। कहा जाता है कि ठाकुर जी का श्रृंगार कराते समय जब घड़ी उतारते हैं तो वह बंद हो जाती है और मूर्ति के हाथ में पहनाते ही घड़ी फिर से चलने लगती है। मान्यता है कि गोपीनाथ जी श्री कृष्ण की मूर्ति स्वयं प्रागट्य प्रतिमा है, यह मूर्ति खुद प्रकट हुई थी इसे किसी शिल्पकार ने बनाया नहीं है। इसलिए इस मंदिर को लेकर लोगों में गहरी आस्था है।
मंदिर की खासियत
यह मंदिर स्वामीनारायण संप्रदाय से जुड़ा हुआ है, जो गुजरात में बहुत प्रसिद्ध है। इस संप्रदाय का उद्देश्य धार्मिकता, सत्यता, और सामाजिक सेवा को बढ़ावा देना है। गोपीनाथ मंदिर की वास्तुकला बहुत सुंदर और आकर्षक है। इसे पारंपरिक भारतीय स्थापत्य शैली में बनाया गया है, जिसमें खूबसूरत नक्काशी, शिल्पकला, और भव्यता देखने को मिलती है।
भगवान कृष्ण की सुंदर मूर्ति
इस मंदिर में भगवान कृष्ण की मूर्ति अत्यंत मोहक है। मूर्ति के लिए नियमित रूप से विभिन्न प्रकार के वस्त्र और आभूषण तैयार किए जाते हैं, जिसमें घड़ी भी शामिल है। यह दर्शाता है कि भगवान के प्रति भक्तों की भक्ति और प्रेम कितना गहरा है। मंदिर न केवल वास्तुकला और संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह धार्मिक आस्था का भी केंद्र है। यहां पर बड़ी संख्या में भक्तगण भगवान के दर्शन करने आते हैं और अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं।