Liver का रखवाला और Malaria का दुश्मन है ये कड़वा पत्ता, तेज से तेज बुखार भी कर देता है छूमंतर

punjabkesari.in Monday, Jul 21, 2025 - 06:29 PM (IST)

कालमेघ (Andrographis paniculata), जिसे हिंदी में "कालमेघ" और संस्कृत में "भूनिंबा" कहा जाता है, एक कड़वी लेकिन अत्यंत प्रभावशाली आयुर्वेदिक औषधीय जड़ी-बूटी है।  इसका उपयोग सदियों से विभिन्न रोगों के उपचार में किया जाता रहा है।मलेरिया, टाइफाइड, काला बुखार और लंबे समय से बुखार के लिए किया जाता है। इससे तीन दिन में बुखार बेअसर हो जाता है। 
 

बेहद फायदेमंद है ये पत्ता

कालमेघ को पारंपरिक रूप से मलेरिया बुखार के उपचार में इस्तेमाल किया जाता है।  सुबह-सुबह कालमेघ पौधे के पत्ते को सबसे पहले पीसा जाता है, इसके बाद रोगी को खाली पेट पिला दिया जाता है।  इसमें एंटी-पायरेटिक गुण होते हैं, जो बुखार को कम करने में सहायक हैं।लगातार तीन दिनों तक इसका इस्तेमाल करने से किसी भी तरह का बुखार ठीक हो जाता है। दावा तो यह भी है कि  इसके पत्ते में इतने गुण होते हैं जो वर्षों पुराने बुखार को भी ठीक कर देते हैं। 


कालमेघ के औषधीय उपयोग 


कालमेघ का उपयोग ब्लड शुगर लेवल नियंत्रित करने में भी सहायक होता है। इसके नियमित सेवन से इंसुलिन की क्रियाशीलता बेहतर होती है। कालमेघ एक शक्तिशाली हैपेटोप्रोटेक्टिव (liver-protecting) जड़ी-बूटी है, यह लिवर की सूजन, वायरल हेपेटाइटिस, और जॉन्डिस में राहत देता है। यह रक्त वाहिनियों को रिलैक्स करता है जिससे ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है। इसका काढ़ा या अर्क हाई बीपी के मरीजों के लिए उपयोगी है (डॉक्टर की सलाह आवश्यक लें)।


गैस्ट्रिक अल्सर

कालमेघ में एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सिडेंट गुण होते हैं जो पेट के घावों और अल्सर को ठीक करने में मदद करते हैं। यह पाचन को दुरुस्त करता है और पेट की जलन को भी शांत करता है। आयुर्वेद के साथ-साथ आधुनिक चिकित्सा में भी कालमेघ पर अध्ययन हुए हैं और इसके एंटी-डायबेटिक, एंटी-वायरल, एंटी-इंफ्लेमेटरी प्रभावों को प्रमाणित किया गया है।


इसके उपयोग में सावधानियां

-गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को बिना सलाह के इसका उपयोग नहीं करना चाहिए।

-लंबे समय तक उच्च मात्रा में उपयोग से दस्त या भूख में कमी हो सकती है।


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Content Writer

vasudha

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