भारत की इस जगह को कहते हैं 'काजू का शहर', यहां पर आलू-प्याज के दाम बिकता है Dryfruit
punjabkesari.in Thursday, Mar 23, 2023 - 04:12 PM (IST)
काजू स्वास्थ्य के लिए कितने फायदेमंद होते हैं यह तो सब जानते ही हैं। पोषक तत्वों से भरपूर होने के कारण सभी इनका सेवन करना पसंद करते हैं लेकिन बढ़ती मंहगाई के दौर में इन्हें खरीद पाना थोड़ा मुश्किल है। मार्केट में काजू 800-1000 रुपये किलो मिलते हैं। ऐसे में मिडिल क्लास फैमिली के लिए इसे खरीद पाना आसान नहीं है। परंतु आप यह बात जानकर हैरान हो जाएंगे कि भारत के एक जिले में काजू आलू प्याज की तरह बिकता है। तो चलिए आपको बताते हैं आखिर यह शहर भारत की किस जगह स्थित है...
झारखंड के इस गांव में मिलते हैं सस्ते काजू
झारखंड के जामताड़ा शहर से सिर्फ चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित नाला गांव में काजू सिर्फ 30-40 रुपये में मिलता है। आपके मन में यह सवाल उठ रहा होगा कि 800-1000 रुपये किलो मिलने वाला काजू यहां पर इतना सस्ता क्यों मिलता है? इसका जवाब है कि यहां पर हजारों टन के अनुसार काजू उगाया जाता है। इसके परिणामस्वरुप महिलाएं सड़क किनारे पर 20-30 रुपये किलो काजू भी बेचती हैं। इसलिए इस शहर को काजू का शहर भी कहते हैं। माना जाता है कि यहां जो काजू के बगीचे हैं वह झारखंड में कहीं भी नहीं हैं। इस जगह पर काजू के बड़े-बडे़ बागान है इसलिए जहां पर काम करने वाले लोग बहुत ही सस्ते दामों पर ड्राईफ्रूट्स को बेच देते हैं। हालांकि यहां पर किसानों के पास खेती की ज्यादा सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं है फिर भी किसान खेती से खुश हैं।
लंबे समय से चल रही है काजू की खेती
इस शहर की जलवायु और मिट्टी काजू की खेती के लिए एकदम अच्छी है। साल 1990 के आसपास किसानों के अनुसार, उस दौरान डिप्टी कमिश्नर ने उड़ीसा के कृषि वैज्ञानिकों की सहायता से भू परीक्षण करवाया था तो उन्हें पता चला कि यहां की मिट्टी काजू की उपज के लिए एकदम अच्छी है। इसके बाद से ही डिप्टी कमिश्नर ने यहां पर ड्राई फ्रूट् की खेती करनी शुरु कर दी। वन विभाग ने बड़े पैमाने पर काजू के पौधे लगाने शुरु कर दिए। देखते ही देखते यह पौधे बढ़ने लगे और यहां पर हजारों की संख्या में काजू के पेड़ भी दिखाई देने लगे।
कम कीमतों पर बेचते हैं किसान काजू
पहली बार जब यहां पर काजू उगा तो किसान देखकर गदगद हो गए। बगीचों से काजू घर में लाकर वह लोग इकट्ठे करके कम कीमत पर सड़क के किनारे पर कम कीमतों में बेचने लगे, हांलाकि इस इलाके में कोई भी प्रोसेसिंग प्लांट नहीं था। इसलिए फलों से काजू भी निकल पाना मुश्किल था। जैसे ही बंगाल के व्यापारियों को इस बात के बारे में पता चला तो उन्होंने यह थोक के भाव खरीदना शुरु कर दिया। व्यापार तो प्रोसेसिंग के बाद काफी मुनाफा कमा लेते हैं परंतु ग्रामीण इलाकों में काजू की खेती की कोई अच्छी कीमत नहीं मिल पाती।