अब भारत पर PFAS का खतरा, Cancer, Kindey फेल और बांझपन का संकट, चुपचाप फैला रहा बीमारियां
punjabkesari.in Tuesday, Dec 23, 2025 - 03:31 PM (IST)
नारी डेस्क: भारत में PFAS (पर- और पॉलीफ्लोरोएल्काइल पदार्थ) संकट बढ़ रहा है, जो औद्योगीकरण और शहरीकरण से पैदा हुआ है। भारत के तेजी से औद्योगीकरण के कारण, PFAS का उपयोग कपड़ा, व्यक्तिगत देखभाल उत्पाद, नॉन-स्टिक कुकवेयर और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में बढ़ रहा है, जिससे प्रदूषण का खतरा बढ़ रहा है। हालांकि इस संकट को कम करने की बजाय भारत केमिकल की बड़ी फैक्ट्रियां लगाने की इजाज़त दे रहा है। ऐसे में भारत हमेशा के लिए केमिकल का डंपिंग ग्राउंड बनता जा रहा है।
Decoding PFAS Crisis: India is being turned into a forever chemical dumping ground & nobody is even aware of this!
— Praffulgarg (@praffulgarg97) December 22, 2025
PFAS are the chemicals that enters the human body, water, or food and never leaves. Linked to cancer, infertility, kidney failure, hormonal disruption, and lifelong… pic.twitter.com/RjTjR5WCks
बाकी देशों ने मुनाफे के बजाय इंसानों को चुना
स्टडीज़ में PFAS ग्राउंडवॉटर, ब्रेस्ट मिल्क कुओं और यहां तक कि नदी की मछलियों में भी पाए गए हैं। यूरोप में, एक PFAS फैक्ट्री ने 350,000 से ज़्यादा लोगों को दूषित कर दिया था। एक मज़दूर के शरीर में अब तक का सबसे ज़्यादा PFAS लेवल पाया गया था। इटली ने उस फैक्ट्री को बंद कर दिया। यूरोप ने कॉर्पोरेट मुनाफे के बजाय इंसानों की सेहत को चुना। लेकिन वही टेक्नोलॉजी, पेटेंट और सिस्टम चुपचाप भारत में शिफ्ट कर दिए गए। जहां दूसरे देश अपने नागरिकों की रक्षा कर रहे हैं, और हम विकास के नाम पर लंबे समय तक सेहत को होने वाले नुकसान को नॉर्मल बना रहे हैं।
यूरोप से भारत शिफ्ट हो रहा PFAS प्रोडक्शन
एक्सपर्ट्स का कहना है कि PFAS प्रोडक्शन यूरोप से भारत शिफ्ट हो गया है। भारत में PFAS के लिए कोई अलग रेगुलेटरी फ्रेमवर्क नहीं है। सामान्य फ्लोरोकैमिकल अप्रूवल पॉलिसी के तहत ही इजाजत मिल जाती है। द गार्डियन की रिपोर्ट के मुताबिक, इंडस्ट्रीज सख्त नियमों वाले देशों से कमजोर मॉनिटरिंग वाले देशों में शिफ्ट हो रहे हैं। यपर्यावरणीय से जुड़ा खतरा अब भारत के सामने खड़ा है।
PFAS क्या होते हैं?
PFAS रासायनिक पदार्थों का एक बड़ा समूह है, जिनका इस्तेमाल किया जाता है नॉन-स्टिक कुकवेयर, वाटरप्रूफ कपड़े, फूड पैकेजिंग, फायरफाइटिंग फोम, कॉस्मेटिक्स और क्लीनिंग प्रोडक्ट्स में। चिंता तो इस बात की है कि एक बार जब PFAS फैल जाता है, तो इसे रोका नहीं जा सकता। पानी को रातों-रात साफ नहीं किया जा सकता। शरीर को डिटॉक्स नहीं किया जा सकता, ज़िंदगी को बदला नहीं जा सकता। विकास को लोगों की रक्षा करनी चाहिए, न कि धीरे-धीरे उन्हें जहर देना चाहिए।
PFAS से मानव स्वास्थ्य को होने वाले खतरे
कैंसर का बढ़ा हुआ जोखिम: कुछ PFAS के संपर्क को किडनी कैंसर, टेस्टिकुलर कैंसर से जोड़ा गया है।
हार्मोनल असंतुलन: PFAS एंडोक्राइन डिसरप्टर की तरह काम करते हैं, जिससे थायरॉइड की समस्या, फर्टिलिटी में कमी, पीरियड्स और प्रेग्नेंसी से जुड़ी दिक्कतें हो सकती हैं।
इम्यून सिस्टम कमजोर होना: वैक्सीनेशन का असर कम हो सकता है। बार-बार संक्रमण होने का खतरा भी बढ़ता है।
बच्चों के विकास पर असर: इससे जन्म के समय कम वजन, दिमागी विकास में रुकावट, व्यवहार संबंधी समस्याएं भी बढ़ती है।
PFAS से पर्यावरण को होने वाले खतरे
- PFAS भूजल और नदियों में घुलकर पीने के पानी को जहरीला बना सकते हैं।
-यह मछलियों, पक्षियों और जानवरों में जमा होकर प्रजनन क्षमता घटाते हैं, इकोसिस्टम को नुकसान पहुंचाते हैं
- यह खेती की जमीन में पहुंचकर फसलों के जरिए इंसानों तक वापस आ सकते हैं।
PFAS से बचाव कैसे करें?
- नॉन-स्टिक बर्तनों का सीमित इस्तेमाल
-पैक्ड और फास्ट फूड कम खाएं
- PFAS-फ्री लेबल वाले प्रोडक्ट चुनें
-पानी के लिए RO/एक्टिवेटेड कार्बन फिल्टर
-पुराने फायरफोम और इंडस्ट्रियल केमिकल्स से दूरी बनाएं

