वेश्याओं के घर से निकलती है मां दुर्गा की पहली मिट्टी, जानिए कहां बनती हैं सबसे बड़ी प्रतिमाएं
punjabkesari.in Sunday, Sep 21, 2025 - 03:33 PM (IST)

नारी डेस्क: Maa Durga Murti: नवरात्रि का पर्व न सिर्फ आस्था और भक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं की गहराई को भी दर्शाता है। मां दुर्गा की प्रतिमाओं को बनाने में कई तरह की धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं जुड़ी होती हैं। इन्हीं में से एक है वह परंपरा, जिसमें प्रतिमा बनाने के लिए पहली मिट्टी वेश्याओं के घर से लाई जाती है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और आज भी उसी श्रद्धा और आस्था के साथ निभाई जाती है।
कोलकाता का कुमारतुली – मूर्तिकला का घर
कोलकाता के उत्तरी हिस्से में स्थित कुमारतुली दुनिया भर में मूर्तिकला के लिए प्रसिद्ध है। हुगली नदी के किनारे बसे इस इलाके में करीब 150 परिवार पीढ़ियों से प्रतिमा बनाने के काम से जुड़े हैं। यहां साल भर मूर्तियों का निर्माण होता है, लेकिन दुर्गा पूजा से पहले का समय सबसे खास होता है। नवरात्रि के शुरू होने से कई महीने पहले ही मां दुर्गा की भव्य प्रतिमाएं गढ़नी शुरू हो जाती हैं।
वेश्याओं के घर से लाई जाती है पहली मिट्टी
कुमारतुली में मां दुर्गा की प्रतिमाओं के लिए इस्तेमाल की जाने वाली पहली मिट्टी वेश्याओं के घर से लाई जाती है। इसे ‘पुण्या माटी’ या ‘पवित्र मिट्टी’ कहा जाता है। परंपरा के अनुसार, मूर्तिकार खुद इन घरों में जाते हैं और आदरपूर्वक विनती करके यह मिट्टी लाते हैं।
क्यों मानी जाती है ये मिट्टी पवित्र?
मान्यता है कि जब कोई वेश्या अपना घर छोड़ती है, तो उसकी अच्छाई उस स्थान की मिट्टी में समा जाती है। यही वजह है कि उस मिट्टी को अत्यंत पवित्र माना जाता है। इस प्रथा के पीछे एक सामाजिक संदेश भी छिपा है – यह परंपरा वेश्याओं को सम्मान और समाज में एक स्थान देने का प्रतीक है। इससे यह संदेश मिलता है कि हर इंसान, चाहे उसका सामाजिक दर्जा कुछ भी हो, आस्था और भक्ति का हिस्सा बन सकता है।
महालया और चौखूदान की रस्म
प्रतिमाओं का निर्माण नवरात्रि से महीनों पहले शुरू हो जाता है, लेकिन उनकी आंखें नहीं बनाई जातीं। मां दुर्गा की प्रतिमाओं में आंखें बनाने की रस्म महालया के दिन की जाती है, जिसे चौखूदान कहा जाता है। इस अनुष्ठान को बेहद पवित्र माना जाता है क्योंकि यह माता रानी को धरती पर आने का निमंत्रण देने जैसा है। इस क्षण के बाद मूर्तियां केवल मिट्टी की प्रतिमाएं नहीं रहतीं, बल्कि उनमें शक्ति और भाव जागृत हो जाते हैं।
कोलकाता का कुमारतुली केवल एक कुम्हारों की बस्ती नहीं, बल्कि यह आस्था, संस्कृति और परंपरा का जीवंत प्रतीक है। मां दुर्गा की मूर्तियों के लिए वेश्याओं के घर से मिट्टी लाने की परंपरा हमें यह सिखाती है कि समाज का कोई भी वर्ग पूजा और भक्ति से अछूता नहीं है। यही भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी खूबसूरती है, जहां हर परंपरा के पीछे भक्ति के साथ-साथ मानवीय संवेदना भी जुड़ी होती है।