विश्व के सबसे ऊंचे मंदिर के कपाट हुए बंद, यहां होती है भगवान शिव के भुजाओं की पूजा
punjabkesari.in Thursday, Nov 06, 2025 - 05:10 PM (IST)
नारी डेस्क: उत्तराखंड में उच्च हिमालयी पर्वत श्रृंखलाओं पर अवस्थित तृतीय केदार भगवान श्री तुंगनाथ जी के कपाट गुरुवार पूर्वाह्न 11:30 बजे विधि-विधान एवं वैदिक मंत्रोच्चार के बीच शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए। कपाट बंद होने के पश्चात भगवान श्री तुंगनाथ जी की चल विग्रह डोली प्रथम पड़ाव चोपता के लिए भक्तों एवं श्रद्धालुओं के जयघोषों के बीच प्रस्थान कर गई। कपाट बंद होने के अवसर पर मंदिर परिसर को फूलों से भव्य रूप से सजाया गया था। इस पावन अवसर पर पांच सौ से अधिक श्रद्धालु उपस्थित रहे और कपाट बंद होने की प्रक्रिया के साक्षी बने।

प्रात:काल मंदिर श्रद्धालुओं के लिए खोला गया, जहां नित्य पूजा-अर्चना एवं भोग यज्ञ संपन्न होने के पश्चात तीर्थ-यात्रियों ने भगवान श्री तुंगनाथ जी के दर्शन का पुण्य अर्जित किया। प्रात: 10:30 बजे कपाट बंद करने की प्रक्रिया प्रारंभ हुई। वैदिक रीति से पूजा-अर्चना, हवन, भोग यज्ञ के पश्चात भगवान श्री तुंगनाथ जी के स्वयंभू शिवलिंग को समाधि रूप दिया गया। इसके उपरांत शुभ मुहूर्त में 11:30 बजे कपाट शीतकाल के लिए विधिवत रूप से बंद कर दिए गए। इस अवसर पर भगवान श्री तुंगनाथ जी की चल विग्रह डोली मंदिर प्रांगण में विराजमान हुई, जहां से मंदिर की परिक्रमा कर भक्तों को आशीर्वाद देते हुए ढोल-नगाड़ों, शंखध्वनि और जयघोषों के साथ प्रथम पड़ाव चोपता के लिए रवाना हुई। पूरे वातावरण में 'जय बाबा तुंगनाथ' के उद्घोष गूंजते रहे।

मंदिर समिति के सूत्रों के अनुसार, इस यात्रा वर्ष लगभग डेढ़ लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने भगवान श्री तुंगनाथ जी के दर्शन किए। कपाट बंद होने के उपरांत चल विग्रह डोली कल शुक्रवार, 07 नवंबर को दूसरे पड़ाव भनकुन में प्रवास करेगी तथा शनिवार, 08 नवंबर को शीतकालीन गद्दी स्थल श्री मकर्टेश्वर मंदिर, मक्कूमठ पहुंचेगी। मक्कूमठ पहुंचने के बाद भगवान श्री तुंगनाथ जी की शीतकालीन पूजा-अर्चना प्रारंभ हो जाएगी।

यह दुनिया का सबसे ऊँचा शिव मंदिर है, जो चोपता, उत्तराखंड में स्थित है। माना जाता है कि जब महाभारत युद्ध के बाद पांडव अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव की तलाश कर रहे थे, तब शिवजी नंदी के रूप में छिप गए थे। पांडवों ने जब उनका पीछा किया तो भगवान पृथ्वी में समा गए। उनके शरीर के विभिन्न अंग अलग-अलग स्थानों पर प्रकट हुए - इन्हीं को कहा गया पंच केदार। तुंगनाथ में भगवान की भुजाएं प्रकट हुईं, इसलिए यहां उन भुजाओं की पूजा होती है। यहां की पूजा गुजरी जाति के पुजारी करते हैं, न कि उत्तराखंड के ब्राह्मण। माना जाता है कि यहां पूजा करने से पापों का क्षय होता है और मोक्ष का मार्ग खुलता है।

