व्हीलचेयर भी नहीं रोक पाई पढ़ाई, सुन-बोल भी नहीं सकती, फिर भी 10वीं में लिए 90% मार्क्स
punjabkesari.in Wednesday, Mar 03, 2021 - 03:41 PM (IST)
दुनिया में ऐसें बहुत से लोग हैं जो शारीरिक रूप से कमजोर है। कुछ लोग तो अपनी कमजोरी को जिंदगी और भगवान की मर्जी समझकर हार मान लेते हैं। मगर, आज हम आपको मूक-बधिर ताबिया इकबाल के बारे में बताने जा रहे हैं, जो हर किसी के लिए मिसाल है। तमाम मुसीबतों ताबिया ने साबित कर दिखाया कि इंसान जो भी चाहता है उसे हासिल कर सकता है।
बिना स्कूल जाए 10वीं में प्राप्त किए 90.4%
जम्मू-कश्मीर, अनंतनाग की रहने वाले 17 वर्षीय ताबिया गठिया बीमारी के कारण व्हीलचेयर पर रहती हैं। यहां तक कि उन्हें सुनने और बोलने में भी दिक्कत है लेकिन बावजूद इसके उन्होंने 10वीं में 90.4% अंक प्राप्त किए। वह 7 सालों से स्कूल नहीं गई और फिर भी 500 में से 452 मार्क्स प्राप्त कर लिए।
बचपन से व्हीलचेयर पर हैं ताबिया
उनके पिता मोहम्मद इकबाल पेशे से किसान हैं। उन्होंने बताया कि ताबिया को बचपन से ही काफी दिक्कतें थी। 3 साल की उम्र में उन्हें ऑर्थोपेडिक बीमारी हो गई थी, जिसके कारण वो व्हीलचेयर पर चलने लगी। वह ना तो बोल सकती है और न ही सुन सकती है लेकिन समझती सब कुछ है। वह इशारों और लिप मूवमेंट के जरिए अपनी बात समझाती है लेकिन इसके कारण वह नॉर्मल स्कूल में नहीं जा पाई।
प्राइवेट स्कूल में पढ़ाई की
हालांकि इसके बाद उनके पिता ने ताबिया का एडमिशन श्रीनगर के रामबाग में मूक-बधिर प्राइवेट स्कूल में करवा दिया, जहां प्रिंसपिल ने उनकी रुचियों पर बारिकी से ध्यान दिया। वह ताबिया को घर जाकर भी ट्यूशन देती थी। उसे याद करवाने के लिए एक ही टॉपिक को बार-बार पढ़ाया जाता था और आज ना सिर्फ बच्ची बल्कि उनका साथ देने वालों की भी मेहनत रंग लाई।
बनना चाहती है डॉक्टर
ताबिया की मां मुनीरा अख्तर ने कहा कि उनकी बेटी दिन में व्हीलचेयर तो रात-रातभर बिस्तर पर बैठकर पढ़ती रहती थी। सुबह जब उन्होंने वेबसाइट पर रिजल्ट देखा तो वह खुशी से फूली नहीं समाई। उनकी बेटी ने उनका सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है। उन्होंने बताया कि ताबिया आगे चलकर डॉक्टर बनना चाहती है।
नहीं मिली नॉर्मल स्कूल में एडमिशन
ताबिया के पिता ने कहा कि सरकार ऐसे बच्चों के लिए कोई छूट नहीं देती है लेकिन उन्हें भी सामान्य बच्चों की तरह पढ़ने का हक होना चाहिए। वह व्हीलचेयर पर ताबिया को परीक्षा केंद्र ले जाते थे और फिर दोनों सेंटर के बाहर ही ताबिया का इंतजार करते थे। उन्होंने परीक्षा केंद्र में तैनात शिक्षकों से मदद के लिए अनुरोध भी किया लेकिन उन्हें इसकी इजाजत नहीं मिली।