Sunita Williams का स्पेस में रहना शरीर के लिए खतरनाक ! आंख, दिमाग और हड्डियां हो जाएंगी कमजोर
punjabkesari.in Thursday, Aug 29, 2024 - 12:10 PM (IST)
नारी डेस्क: भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स दो महीने से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी अंतरिक्ष में हैं और अभी भी उनके पृथ्वी पर वापस लौटने की उम्मीदें कम हैं। नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) का कहना है कि बुच विल्मोर और सुनीता विलियम्स को वर्तमान में पृथ्वी पर वापस लाना "बहुत जोखिम भरा" है। यानी कि एक सप्ताह की परीक्षण उड़ान अब लगभग 8 महीने तक चलेगी।
फरवरी 2025 में सुनीता के लौटने की उम्मीद
विलमोर और विलियम्स फरवरी 2025 तक अभियान 71/72 चालक दल के हिस्से के रूप में औपचारिक रूप से अपना काम जारी रखेंगे। वे एजेंसी के स्पेसएक्स क्रू-9 मिशन को सौंपे गए दो अन्य चालक दल के सदस्यों के साथ ड्रैगन अंतरिक्ष यान पर सवार होकर घर लौटेंगे। ऐसे में एक्सपर्ट से समझते हैं कि इतने दिन अंतरिक्ष में रहने के बाद सुनीता के शरीर में क्या बदलाव हो सकते हैं
सुनीता में देखने को मिलेंगे कई बदलाव
कई अध्ययनों से यह साबित हुआ है कि लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने पर शरीर पर विपरीत असर पड़ता है। लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने की वजह से सुनीता के शरीर, आंख और डीएनए में कई तरह के बदलाव देखने को मिलेंगे। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो के पूर्व साइंटिस्ट डॉ. विनोद कुमार श्रीवास्तव का कहना है कि अंतरिक्ष में रहने के दौरान एस्ट्रोनॉट्स के शरीर की 50 फीसदी लाल रक्त कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं और मिशन के चलने तक ऐसा होता रहता है। यानी शरीर में खून की कमी हो जाती है। इसे स्पेस एनीमिया कहा जाता है। ये लाल कोशिकाएं पूरे शरीर को ऑक्सीजन पहुंचाती हैं। इसी वजह से चांद, मंगल या उससे दूर की अंतरिक्ष यात्राएं करना एक बड़ी चुनौती हैं।
मांसपेशियां और हड्डियां हो जाएंगी कमजोर
इसके अलावा अंतरिक्ष में रहने के दौरान यात्रियों की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं और हड्डियों में कैल्शियम की कमी हो जाती है। धरती पर लौटने के बाद अंतरिक्ष यात्री कमजोर और थका हुआ महसूस करते हैं। मतलब है कि सुनीता की मांसपेशियां और हड्डियां अंतरिक्ष में उतनी मेहनत नहीं कर रही हैं, जितनी वे पृथ्वी पर कर सकती थीं। अपनी वापसी पर सुनीता को अपनी ताकत और हड्डियों के घनत्व को पुन: प्राप्त करने में मदद करने के लिए एक कठोर पुनर्वास कार्यक्रम से गुजरना पड़ सकता है।
नजर भी हो सकती है कमजोर
लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने पर सुनीता को स्पेसफ्लाइट एसोसिएटेड न्यूरो ऑक्यूलर सिंड्रोम का सामना करना पड़ सकता है। इस समस्या में आंखों की नसों पर दबाव पड़ता है और नजर कमजोर हो जाती है। एक्सपर्ट का यह भी कहना है कि भविष्य में अंतरिक्ष यात्रियों में कैंसर व अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ सकता है। शरीर की कोशिकाओं, डीएनए में भी परिवर्तन हो सकता है।वास्तव में अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में समय बिताने के लिए खुद को तैयार करने के लिए महत्वपूर्ण मानसिक प्रशिक्षण दिया जाता है।
अंतरिक्ष यात्री ने सांझा किया था अपना अनुभव
अमेरिका के अंतरिक्ष यात्री स्कॉट केली ने 340 दिन तक अंतरिक्ष में रहने के बाद बताया था कि ISS पर बहुत काम होता है। हमें हर दिन सुबह छह बजे उठना होता है। वहां तीन तरह के काम होते हैं-जैसे कोई प्रयोग करना होता है, या फिर स्पेस स्टेशन के खराब हार्डवेयर की रिपेयरिंग करनी होती है या फिर स्पेस स्टेशन के जेनरल मेंटेनेंस पर ध्यान देना होता है ताकि स्टेशन सही तरीके से काम कर सके।
वापस लौटने पर कई परेशानियों का करना पड़ेगा सामना
कठिन अंतरिक्ष यात्रा के दौरान इंसानी शरीर कुछ आश्चर्यजनक बदलावों से होकर गुजरता है। वापस आने वाले अंतरिक्षयात्रियों को उनके कैप्सूल से उठाया जाता है क्योंकि अंतरिक्ष में रहते हुए उनकी मांसपेशियों का वज़न कम हो जाता है। स्वाभाविक है कि इन दोनों यात्रियों के लिए आठ महीने तक अंतरिक्ष में रहने के कारण कई जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है।