सफलता के रास्ते नहीं आई दिव्यांगता! लोगों ने बनाया मजाक लेकिन आज 2 गांवों की सरपंच हैं कविता
punjabkesari.in Wednesday, Nov 25, 2020 - 02:21 PM (IST)
आज बहुत से ऐसे युवा हैं जो खुद के सपने तो पूरे करना चाहते हैं लेकिन उनके सपनों के बीच लोगों की बातें आ जाती हैं। लोग क्या कहेंगे और लोग मेरा मजाक बनाएंगे इन्हीं बातों से बहुत से युवा खुद को साबित नहीं कर पाते हैं लेकिन आज हम आपको एक ऐसी महिला की कहानी के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने न सिर्फ खुद को साबित कर के दिखाया बल्कि उन सभी लोगों के मुंह भी बंद किए जो एक समय उसकी दिव्यांगता का मजाक बनाते थे।
विकलांगता को नहीं बनाया कमज़ोरी
34 साल की कविता चाहे बाकियों की तरह चलने में पूरी तरह से सक्षम न हो लेकिन कविता ने सपने देखने और उनपर काम करना नहीं छोड़ा और यही वजह है कि आज वह समाज में खुद का नाम इतना रोशन कर रही है। लोगों के कईं तरह के सवाल उठाने पर भी कविता ने कभी भी अपने सपनों और काम की बीच में दिव्यांगता को नहीं आने दिया।
25 साल की उम्र में बनीं सरपंच
कविता भोंडवे 25 साल की उम्र में सरपंच बनीं हालांकि उन्हें इस दौरान काफी मुश्किलें का सामना भी करना पड़ा। वह पिछले 9 साल से नासिक के दो गांव डहेगांव और वागलुड़ के काम को संभाल रही हैं और एक सरपंच के रूप में काम कर रही हैं।
लोगों ने उड़ाया मजाक
कविता का लोगों ने काफी मजाक भी बनाया। लोग उन्हें देखकर कहते थे कि जो खुद को नहीं संभाल पाती है वो दो गांवों की जिम्मेदारी कहां से उठाएगी लेकिन कविता ने इन लोगों की बातों को अनदेखा किया और लगातार खुद पर काम किया और आज अपनी सफलता से उन्हे जवाब दिया।
गांव में हुए कईं काम
Maharashtra: A 34-year-old specially-abled woman is serving the society as Sarpanch of 2 villages in Dindori Taluka, Nashik district.
— ANI (@ANI) November 24, 2020
Currently in her 2nd term, Kavita Bhondwe made changes in Gram Panchayats' affairs & stood up against illegal practices in Dahegaon & Waglud. pic.twitter.com/OlwZD6kGWU
कविता जिन गांवों को संभाल रही हैं वहां उनके प्रयास से पक्की सड़कें बनीं, पानी की व्यवस्था हुई और गरीबों के लिए मकान बनाए गए। साथ ही कविता ने अपने दोनों गांवों में स्व सहायता समुह बनाए हैं। वह लड़कियों को शिक्षित करने के लिए भी लगातार प्रयास कर रही हैं।
मैनें लोगों की बातों पर ध्यान नहीं दिया: कविता
कविता की मानें तो ,' लोग उनके दिव्यांग होने पर खूब मजाक उड़ाते हैं। लेकिन उन्होंने कभी उन बातों पर ध्यान नहीं दिया। कविता कहती हैं कि मेरे परिवार ने मुझे हमेशा सपोर्ट दिया है। मेरे भाई और पापा मुझे ऑफिस तक छोड़ते हैं और वहां से काम पूरा होने के बाद घर लेकर भी आते हैं। गांव के कई लोगों को ये भी अच्छा नहीं लगा कि मैं 25 साल की उम्र में सरपंच बन गई।'
पिता ने किया चुनाव लड़ने के लिए प्रोत्साहित
कविता को चाहे समाज के ताने सुनने को मिले लेकिन उन्हें परिवार की तरफ से पूरा स्पॉट मिला इतना ही नहीं चुनाव लड़ने के लिए भी उनके पिता ने उन्हें प्रोत्साहित किया। खबरों की मानें तो कविता के पिता पिछले 15 सालों से ग्राम पंचायत के सदस्य हैं। लेकिन वह अशिक्षित हैं जिसकी वजह से उन्हें पंचायत का काम संभालने के लिए काफी मुश्किलें होती थी । इसी वजह से उन्होंने 2011 में बेटी कविता को चुनाव लड़ने के लिए कहा।
हम कविता के इस जज्बे को सलाम करते हैं।