पढ़ाई के बोझ में दबे छात्र हो रहे हैं मानसिक तनाव के शिकार, इन टिप्स से करें पहचान कहीं बच्चा डिप्रेशन में तो नहीं

punjabkesari.in Saturday, May 31, 2025 - 01:44 PM (IST)

नारी डेस्क: बच्चे हमारे जीवन का सबसे कोमल और संवेदनशील हिस्सा होते हैं। वे अपनी भावनाओं और अनुभवों को आसानी से व्यक्त नहीं कर पाते। खासकर जब वे दुख, डर या असहज महसूस करते हैं तो वे इसे साफ शब्दों में नहीं बता पाते। इसका कारण यह है कि उनके पास अपनी भावनाओं को समझाने के लिए पर्याप्त भाषा और शब्दावली नहीं होती। इसलिए, कई बार बच्चे मानसिक तनाव या डिप्रेशन की स्थिति में पहुंच सकते हैं।

बच्चों के मानसिक तनाव के लक्षण

मानसिक तनाव के कारण बच्चों के व्यवहार में कई तरह के बदलाव दिखाई देते हैं। जब बच्चे परेशान होते हैं तो वे गुस्सा दिखा सकते हैं, चुप्पी साध सकते हैं या चिड़चिड़े हो सकते हैं। यह बदलाव अचानक आ सकता है। उदाहरण के लिए, एक बच्चा जो हमेशा समय पर खाना खाता था, अचानक खाना खाने से मना कर सकता है। या वह खेल जिसमें वह रुचि रखता था, उसमें अब उसका मन नहीं लगेगा। ऐसे व्यवहार को केवल नखरे समझना सही नहीं है। यह मानसिक तनाव का संकेत हो सकता है।

बच्चों के स्वभाव में बदलाव

अगर कोई बच्चा पहले बहुत मिलनसार था और हर किसी से बात करता था, लेकिन अचानक वह चुप हो जाए या किसी से बात करना बंद कर दे, तो यह चिंता का विषय हो सकता है। इसके विपरीत, यदि कोई बच्चा जो पहले शांत रहता था, अचानक बहुत ज़्यादा बोलने लगे, तो यह भी मानसिक दबाव का संकेत हो सकता है।

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बच्चों की मदद कैसे करें?

माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों की भावनाओं और मानसिक स्थिति पर ध्यान दें। बच्चों के दोस्तों को जानना जरूरी है। न तो बच्चों के दोस्तों को लेकर ज़्यादा टोकाटाकी करें और न ही हर बात में हस्तक्षेप। बस यह जानने की कोशिश करें कि आपके बच्चे किन दोस्तों के साथ समय बिताते हैं। समय-समय पर बच्चों के दोस्तों को घर बुलाएं। इससे आपको पता चलेगा कि वे किस प्रकार के प्रभाव में हैं और क्या उनके दोस्त उनके लिए सकारात्मक हैं।

बच्चों से बात करें

घर पर खाली समय में, खासकर डिनर के दौरान बच्चों से बात करें। यह समय बहुत उपयोगी होता है जब माता-पिता अपने दिन की बातें बच्चों से साझा करते हैं। इससे बच्चे सीखते हैं कि अपनी बातें कैसे बताई जाती हैं और भावनाओं को कैसे व्यक्त किया जाता है।

बच्चों की बात ध्यान से सुनें

जब बच्चा अपनी कोई बात बताने आए, तो उसे पूरा ध्यान देकर सुनें। तुरंत प्रतिक्रिया न दें। यदि उसने कोई गलती की है, तो उस पर चिल्लाने की बजाय शांत और समझदार भाषा में बात करें। आवाज़ का स्वर नरम और सहयोगी होना चाहिए। इससे बच्चे को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का मौका मिलता है, जिससे वह मानसिक रूप से मजबूत बनता है।

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बच्चों की मेंटल हेल्थ के लिए जरूरी

बच्चों को खुलकर बात करने का मौका देना, उनकी भावनाओं को समझना और उनका सहयोग करना उनकी मानसिक सेहत के लिए बहुत जरूरी है। इससे वे जीवन की मुश्किल परिस्थितियों का सामना बेहतर तरीके से कर पाते हैं और डिप्रेशन जैसी समस्याओं से बचते हैं।

माता-पिता और परिवार को चाहिए कि वे बच्चों की छोटी-छोटी भावनात्मक जरूरतों को समझें और उन्हें सही मार्गदर्शन दें।



 


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Content Editor

PRARTHNA SHARMA

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