Surrogacy से जुड़े 5 Myths जिनपर कभी ना करें भरोसा

punjabkesari.in Thursday, Aug 05, 2021 - 12:49 PM (IST)

कपल्स सरोगेट मदर या जेस्टेशनल कैरियर का विकल्प क्यों चुनते हैं? सिर्फ बांझपन इसका एकमात्र कारण नहीं है। सरोगेसी सिर्फ बांझ ही नहीं बल्कि उन सभी कपल्स के लिए वरदान है जो किसी बीमारी के चलते पेरेंट्स नहीं बन पाते। मगर, सरोगेसी को लेकर कई मिथ हैं, जिन्हें लोग सच मान लेते हैं जबकि वो बातें बिल्कुल झूठ होती हैं।

मिथः सरोगेसी बच्चे में मा-बाप के अंश नहीं होते

सच:  सरोगेसी दो तरह की होती है- जेस्टेशनल सरोगेसी और ट्रेडिशनल सरोगेसी। जेस्टेशनल सरोगेसी में पिता के स्पर्म व माता के शुक्राणुओं को सरोगेट महिला के यूट्रस में प्रत्यारोपित किया जाता है, जिससे शिशु में उन दोनों का DNA आता है। नहीं, ट्रेडिशनल सरोगेसी में सिर्फ पिता के स्पर्म को प्रत्यारोपित किया जाता है,  बच्चे का जैनेटिक संबंध सिर्फ पिता से होता है।

PunjabKesari

मिथः सरोगेसी के लिए फिजिकल रिलेशन बनाना जरूरी है

सच: सरोगेसी का मतलब होता है , किसी दूसरे के बच्चे को अपनी कोख में पालना। इसमें IVF तकनीक द्वारा पिता के स्पर्म व मां के शुक्राणुओं को सरोगेट महिला के यूट्रस में डाला जाता है। ऐसे में इसके लिए सरोगेट महिला से संबंध बनाना जरूरी नहीं है।

मिथः कपल्स सिर्फ फैशन के लिए यह विकल्प चुनते हैं

सचः ऐसा नहीं है। दुनिया में लाखों ऐसे कपल्स हैं जो बांझ या किसी बीमारी के चलते माता-पिता बनने का सुख नहीं पा सकते। ऐसे में वो सरोगेट मदर का सहारा लेकर इस सुख का आनंद ले सकते हैं।

PunjabKesari

मिथः कोई भी महिला बन सकती है सरोगेट मदर

सचः यह बात बिल्कुल झूठ है। सरोगेट मदर के लिए यह देखा जाता है कि महिला के उम्र 35 से नीचे हो और वो प्रेगनेंसी के लिए बिल्कुल स्वस्थ हो। साथ ही  सरोगेट मां का भी विवाहित होना जरूरी है और उसका कम से कम अपना 1 बच्चा होना चाहिए।

मिथः सरोगेसी 100% कारगार होती हैं

सचः सरोगेसी यूटराइन प्रॉब्लम्स को हल करता है लेकिन यह पुरुष के स्पर्म या महिलाओं के शुक्राणुओं की गारंटी नहीं देता। हालांकि वैज्ञानिकों की मानें तो तो आईवीएफ तकनीक 95% तक कारगार साबित होती हैं।

PunjabKesari


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Anjali Rajput

Related News

static