चंद्र ग्रहण के दीन सभी मंदिर रहेंगे बंद सिर्फ 4 मंदिरों में होती है हर ग्रहण पर पूजा, जाने क्यों?
punjabkesari.in Sunday, Sep 07, 2025 - 04:16 PM (IST)

नारी डेस्क : आज साल का पहला और आखिरी चंद्र ग्रहण लगेगा। भारत के कुछ हिस्सों में यह ग्रहण दिखेगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ग्रहण का समय अशुभ माना जाता है। इस दौरान घरों में पूजा-पाठ नहीं किया जाता और अधिकतर मंदिरों के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। धार्मिक नियमों के अनुसार, ग्रहण से लगभग 9 घंटे पहले सूतक काल शुरू हो जाता है। सूतक काल में पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठान बंद हो जाते हैं। लेकिन देश में कुछ ऐसे विशेष मंदिर हैं जो ग्रहण के समय भी खुले रहते हैं और यहां पूजा-पाठ लगातार जारी रहता है। आइए उन चार मंदिरों के बारे में जानते हैं।
विष्णुपद मंदिर गया (बिहार)
ग्रहण के समय अधिकतर मंदिर बंद हो जाते हैं, लेकिन विष्णुपद मंदिर हमेशा खुला रहता है। यह मंदिर पिंडदान के लिए बहुत प्रसिद्ध है और यहां पितरों की तर्पण और श्राद्ध कर्म करने वाले श्रद्धालु बड़ी संख्या में आते हैं। मान्यता है कि ग्रहण के समय पिंडदान करना अत्यंत शुभ होता है और इसके विशेष पुण्य का लाभ मिलता है। श्रद्धालु यहां सीधे भगवान विष्णु के चरणों में पिंडदान अर्पित करते हैं और अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। मंदिर का यह नियम सदियों से चलता आ रहा है कि ग्रहण काल में भी पूजा-पाठ जारी रहता है और मंदिर के कपाट बंद नहीं किए जाते। ऐसे में यह मंदिर भक्तों के लिए ग्रहण के समय भी एक विशेष आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है।
महाकाल मंदिर, उज्जैन (Madhya Pradesh)
महाकाल मंदिर उज्जैन का प्रसिद्ध शिव मंदिर है, जो अपनी भव्यता और आध्यात्मिक माहौल के लिए जाना जाता है। ग्रहण के समय भी मंदिर खुले रहते हैं और भक्त यहां बिना किसी रोक-टोक के दर्शन कर सकते हैं। पूजा और आरती के समय में थोड़े बदलाव किए जाते हैं, लेकिन पूजा-पाठ लगातार जारी रहता है। मान्यता है कि महाकाल स्वयं ग्रहण काल में भी भक्तों की रक्षा करते हैं और इस समय यहां दर्शन करने से विशेष पुण्य मिलता है। यह मंदिर हर समय भक्तों के लिए खुला और सुरक्षित स्थान बनाता है, खासकर ग्रहण जैसे विशेष समय में।
लक्ष्मीनाथ मंदिर, बीकानेर (Rajasthan)
लक्ष्मीनाथ मंदिर बीकानेर में स्थित एक ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व वाला मंदिर है। कहा जाता है कि एक बार सूतक काल में पुजारी ने मंदिर के कपाट बंद कर दिए थे। उस रात भगवान लक्ष्मीनाथ बाल रूप में प्रकट हुए और हलवाई से प्रसाद लिया। अगले दिन मंदिर से भगवान के पदचिह्न गायब हो गए। तब से यह नियम बन गया कि ग्रहण के समय भी मंदिर के कपाट बंद नहीं होते और पूजा-पाठ जारी रहता है। श्रद्धालु यहां ग्रहण के दौरान भी भक्तिभाव से पूजा करते हैं और अपने मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।
तिरुवरप्पु कृष्ण मंदिर, केरल (Kottayam, Kerala)
तिरुवरप्पु कृष्ण मंदिर केरल के कोट्टायम जिले में स्थित है और यह भगवान कृष्ण को समर्पित है। यहां की मान्यता है कि यदि ग्रहण के समय मंदिर बंद किया जाए, तो भगवान कृष्ण की मूर्ति पतली हो जाती है और उसकी कमर की पट्टी नीचे खिसक जाती है। इसलिए मंदिर के कपाट कभी बंद नहीं किए जाते और पूजा-पाठ लगातार जारी रहता है। भक्त यहां ग्रहण के समय भी दर्शन और अनुष्ठान कर सकते हैं। यह मंदिर अपने अनोखे नियम और आध्यात्मिक महत्व के कारण खास माना जाता है और भक्तों को ग्रहण काल में भी भगवान के निकट होने का अवसर देता है।
अधिकतर मंदिरों में ग्रहण के समय पूजा बंद रहती है, लेकिन ये चार मंदिर विशेष मान्यताओं और पुरानी कथाओं के कारण हमेशा खुला रहते हैं। यहां भक्त बिना किसी रोक-टोक के दर्शन और पूजा कर सकते हैं।