क्या सुबह-शाम की पूजा के बाद हर पेड़ के पास दीया जलाना चाहिए? जानें यहां
punjabkesari.in Friday, Dec 26, 2025 - 01:19 PM (IST)
नारी डेस्क : हिंदू धर्म में प्रकृति की पूजा को विशेष महत्व दिया गया है। पेड़-पौधों को देवताओं का स्वरूप माना जाता है और इसी कारण पूजा के बाद दीया जलाने की परंपरा भी प्रचलित है। लेकिन शास्त्रों के अनुसार हर पेड़ के नीचे दीया जलाना शुभ नहीं माना जाता। कुछ पेड़ ऐसे हैं, जिनके नीचे दीपक जलाना वर्जित बताया गया है। आइए जानते हैं इसके पीछे की धार्मिक मान्यताएं।
नीम का पेड़
शास्त्रों के अनुसार नीम के पेड़ का संबंध शनि, केतु और मंगल ग्रह से माना जाता है। इसी वजह से इसके पास दीया जलाने से बचने की सलाह दी जाती है। मान्यता है कि यहां दीपक जलाने से ग्रहों का नकारात्मक प्रभाव घर पर पड़ सकता है।

पीपल का पेड़
पीपल के वृक्ष को अत्यंत पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि इसमें भगवान विष्णु और भगवान शिव का वास होता है। दो महान देवताओं की उपस्थिति के कारण पीपल के नीचे दीया जलाना अपशकुन माना गया है। हालांकि पीपल की पूजा की जाती है, लेकिन दीपक जलाने से परहेज करने की सलाह दी जाती है।
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गूलर का पेड़
गूलर के पेड़ को कुबेर से जुड़ा माना जाता है और इसके कुछ उपाय धन लाभ से संबंधित होते हैं। बावजूद इसके, शास्त्रों में गूलर की पूजा को वर्जित बताया गया है। इसे अशुद्ध माना जाता है, इसलिए इसके पास दीया जलाने से नकारात्मक ऊर्जा बढ़ने की मान्यता है।

बरगद का पेड़
बरगद को कल्पवृक्ष कहा जाता है और इसकी पूजा को लाभकारी माना जाता है। लेकिन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसके आसपास भूत-प्रेत या नकारात्मक शक्तियों का वास होता है। खासकर रात के समय बरगद के पास दीया जलाना अशुभ माना जाता है।
दूध वाले पेड़
जिन पेड़ों से दूध जैसा रस निकलता है, उन्हें घर में या आसपास लगाने की मनाही बताई गई है। मान्यता है कि ऐसे पेड़ों के आसपास नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव रहता है। इनके पास दीपक जलाना मृतकों से जुड़ा संकेत माना जाता है, इसलिए इससे बचना चाहिए।

क्या करें, क्या न करें
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन पेड़-पौधों को जीवंत और दिव्य माना जाता है, इसलिए उनके नीचे दीया जलाना उचित नहीं समझा जाता। पूजा के बाद दीपक घर के मंदिर, तुलसी के पास या आंगन में जलाना अधिक शुभ माना जाता है।
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नोट: यह जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। किसी भी परंपरा को अपनाने से पहले समझदारी और श्रद्धा दोनों जरूरी हैं।

