कोर्ट का फैसला- बुढ़ापे में मां-बाप को सताने पर छीन ली जाएगी जायदाद में मिली प्रॉपर्टी
punjabkesari.in Thursday, Mar 20, 2025 - 03:46 PM (IST)

नारी डेस्क: यह बहुत आम हो गया है कि बच्चे बुजुर्ग माता-पिता से प्रॉपर्टी अपने नाम करवाकर उन्हें बेसहारा छोड़ देते हैं। अपने मतलब के लिए माता-पिता का इस्तेमाल करने वाले ऐसे बच्चों के खिलाफ अब कानून सख्त हो रहे हैं। हाल ही में मद्रास हाई कोर्ट ने वरिष्ठ नागरिकों के अधिकार को लेकर एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि अगर वरिष्ठ नागरिकों के बच्चों या करीबी रिश्तेदार उनकी देखभाल नहीं कर पाते तो वो उनके पक्ष में दिए उपहार या समझौते (deed) को रद्द कर सकते हैं।
माता-पिता से संपत्ति या फिर गिफ्ट लेने के बाद उन्हें ठुकराने वालों को अब बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। बेंच ने दिवंगत एस नागलक्ष्मी की पुत्रवधू एस माला द्वारा दायर अपील को खारिज करते हुए ये फैसला सुनाया। दरअसल बुजुर्ग महिला ने इस उम्मीद से अपने बेटे और बहू को सब दे दिया कि वह जीवन भर उसकी देखभाल करेंगे, लेकिन बेटे की मृत्यु के बाद उनकी बहू ने उसके साथ बुरा व्यवहार किया। महिला ने अपने बयान में बताया कि उन्होंने प्यार और स्नेह के कारण और अपने बेटे के भविष्य के लिए उनके नाम प्रॉपर्टी की थी। RDO ने उनके और बहू माला के बयानों के आधार पर समीक्षा करने के बाद समझौता रद्द कर दिया था।
जब माला ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की तो कोर्ट ने साफ कर दिया कि माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 की धारा 23(1) वरिष्ठ नागरिकों को ऐसी परिस्थितियों में सुरक्षा प्रदान करने के लिए बनाई गई है। इसके तहत वे अपनी संपत्ति को उपहार रूप में या समझौते के माध्यम से इस उम्मीद के साथ किसी से साझा करते हैं कि वो व्यक्ति उन्हें बुनियादी सुविधाएं प्रदान करेगा। कोर्ट ने कहा कि यदि वो व्यक्ति इन दायित्वों को पूरा करने में विफल रहता है, तो वरिष्ठ नागरिक के पास इस समझौते को रद्द करने का विकल्प होता है।
अदालत ने आगे कहा कि वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के तहत RDO के समक्ष वर्तमान मामले में स्थापित तथ्यों से पता चलता है कि समझौते के समय बुजुर्ग महिला की उम्र 87 वर्ष थी और उनकी पुत्रवधू उनकी सही से देखभाल नहीं कर रही थीं। रिपोर्ट के मुताबिक वरिष्ठ महिला की तीन बेटियां हैं, लेकिन उन्होंने अपने इकलौते बेटे के पक्ष में ये समझौता किया था, इससे उनकी बेटियों को समान संपत्ति के अधिकार से वंचित कर दिया गया। महिला ने इस उम्मीद से बेटा और बहू के नाम संपत्ति की थी वह जीवन भर उनकी देखभाल करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।