राखी स्पेशल: 558 साल बाद बन रहा है खास संयोग, जानिए शुभ मुहूर्त और महत्व
punjabkesari.in Sunday, Aug 02, 2020 - 03:41 PM (IST)
रक्षा बंधन का पावन का त्योहार इस साल 3 अगस्त को सावन महीने की आखिरी सोमवार और पूर्णिमा को मनाया जाएगा। इस शुभ दिन पर सभी बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र की कामना करती हुई उनकी कलाई पर रक्षासूत्र बांधती है। भाई- बहन के प्यार के प्रतीक का यह शुभ त्योहार इस साल बहुत ही दुर्लभ दिन को आ रहा है, जो बेहद ही शुभ माना जाएगा। यहां आपको बता दें, ऐसा संयोग आज से 558 साल पहले यानि 1462 को आया था। उस साल राखी का पवित्र त्योहार 22 जुलाई को मनाया गया था। इस साल भद्रा नहीं रहेगी। तो चलिए जानते है रक्षाबंधन मनाने का शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजा विधि...
राखी बांधने का शुभ मुहूर्त
भद्रा का समय: सुबह 7: 00 बजे से 09:29 बजे तक
राखी का बांधने का समय: सुबह 09:30 मिनट से 09: 17 मिनट तक
राखी बांधने का शुभ मुहूर्त: दोपहर 1: 35 मिनट से लेकर शाम 4: 35
इसके बाद शाम को 7: 30 मिनट से लेकर रात 9.30 के बीच भी अच्छा मुहूर्त है।
राशियों पर भी पड़ेगा कुछ ऐसा असर
- मेष, वृष, कन्या, वृश्चिक, धनु, मकर, मीन राशि के सभी लोगों के लिए यह त्योहार सुख और खुशियों भरा रहेगा। इन सभी राशियों के लोगों को अपनी मेहनत का शुभ फल मिलेगा है। धन, अन्न और स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियां खत्म होंगी। साथ ही कारोबार व नौकरी में तरक्की मिलेगी।
- कर्क राशि के लोगों के लिए यह समय सामान्य रहेगा।
- बात अगर मिथुन, सिंह, तुला, कुंभ राशि के लोगों की करें तो इसके थोड़ा संभलकर रहने की जरूरत हैं। इन लोगों को समय का अच्छा से लाभ न मिलने के कारण के कार्यों को पूरा करने में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
पूजा करके लिए बांधे रक्षा सूत्र
. सबसे पहले सुबह स्नान कर साफ कपड़े पहने।
. उसके बाद पूजा की थाली में अक्षत, रोली, चंदन, फूल, मिठाई, धूप, घी का दीपक और राखी को रख कर सजाएं।
. विधिवत तरीके से भगवान की पूजा- अर्चना कर उनसे आशीर्वाद लें।
. उसके बाद भाई के दाहिने हाथ की कलाई पर राखी बांध कर मिठाई खिलाएं। साथ ही उसकी लंबी उम्र की प्रार्थना करें।
रक्षा बंधन मनाने का महत्व से कई पौराणिक कथाओं जुड़ी हैं तो इस प्रकार है...
1. पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय असुरों ने देवताओं को युद्ध में हराकर स्वर्ग पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया था। ऐसे में सभी देवता देवगुरु बृहस्पति के पास मदद मांगने गए। तब देवगुरू ने मंत्रोच्चारण करके सभी को रक्षा संकल्प विधान करने को कहा। फिर सभी देवताओं नें रक्षा विधान के लिए श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को शुभ माना। रक्षा विधान में सभी देवताओं ने मिलकर एक रक्षा कवच को बनाकर इंद्र की पत्नी इंद्राणी को दे दिया। उसके बाद इंद्राणी ने वह रक्षासूत्र देवराज इंद्र के दाहिने हाथ में बांध दिया। इससे इंद्र की ताकर बढ़ी और वह असुरों से युद्ध जीत गए। साथ ही उन्होंने अपना राज- पाठ वापिस पा लिया। तभी से इस त्योहार को मनाने का विधान शुरू हो गया है।
2. रानी कर्णावती चितौड़ के महाराजा राणा सांगा की विधवा थी। कहा जाता है कि जब बहादुरशाह ने चितौड़ पर हमला किया था। जब रानी उनके युद्ध करने में असमर्थ थी। ऐसे में उसने अपनी रक्षा करने के लिए रानी कर्णावती ने हुमायूं को राखी भेजकर उनकी रक्षा के लिए एक पत्र लिखा था। ऐसे में उनका पत्र और राखी देकर कर हुमायूं ने उनकी बात का मान रखा और बहादुरशाह से युद्ध कर उनकी रक्षा की थी।