सादगी में भी स्टाइल:  फ्रांस में पीएम मोदी ने पहनी ऐसी शॉल कि होने लगे चर्चे,  इसे बनाने में लगते हैं कई साल

punjabkesari.in Thursday, Feb 13, 2025 - 12:36 PM (IST)

नारी डेस्क:प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों फ्रांस का दौरा किया। इस दौरान वह पारंपरिक पोशाक पहने हुए देखे गए, जो भारतीय इतिहास की सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करती है। उन्ह कश्मीरी कानी शॉल पहने देखा गया जो अपनी बारीक बुनाई, समृद्ध डिज़ाइन और खूबसूरत कढ़ाई के लिए प्रसिद्ध है। इसे बनाने में महीनों से लेकर सालों तक का समय लग सकता है। 

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इस लाल शॉल ने खींचा सभी का ध्यान

 प्रधानमंत्री की लाल शॉल सबका ध्यान अपनी तरफ खींच रही थी। दरअसल  प्रधानमंत्री हमेशा इंटरनेशनल प्लैटफॉर्म पर इंडियन क्राफ्ट को बढ़ावा देते हैं, वह कई मौकों पर शॉल पहने नजर आए हैं। इस  शॉल की बात करें तो इसमें बुनाई के दौरान ही डिज़ाइन किया जाता है, इसमें कोई अतिरिक्त कढ़ाई नहीं होती।  इसे लकड़ी की "कानी" (छोटी तीलियां)की मदद से बुनकर तैयार किया जाता है। यह बेहद महीन और जटिल डिज़ाइन के कारण पश्मीना शॉल से भी अधिक बेशकीमतीहोती है।  

 

इसे बनाने में महीनों से लेकर वर्षों तक का समय लगता है

एक कानी शॉल को पूरा करने में 6 महीने से 2 साल तक का समय लग सकता है।  यह पूरी तरह से हाथ से बुनी जाती है, इसलिए हर शॉल यूनिक और खास होती है।  कानी शॉल में कश्मीर की पारंपरिक बूटेदार (पैसली) डिज़ाइन, बेल-बूटे, फूलों की नक्काशी और जटिल जालीदार पैटर्न होते हैं।  इसका डिज़ाइन मुगलकाल से प्रेरित होता है और इसे राजसी और शाही लुक मिलता है। कानी शॉल को अक्सर पश्मीना ऊन से तैयार किया जाता है, जो दुनिया की सबसे नरम और गर्म ऊन मानी जाती है।  इस ऊन को लद्दाख के चांगथांगी बकरियों से प्राप्त किया जाता है, जिससे यह शॉल हल्की, मुलायम और अत्यधिक गर्म होती है।  

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ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व

कानी शॉल को मुगल शासकों, महाराजाओं और ब्रिटिश शाही परिवारों ने भी पहना था।  कनी शॉल बुनने की परंपरा 15वीं शताब्दी की शुरुआत में सुल्तान ज़ैन-उल-अबिदीन के शासनकाल से शुरू हुई थी। मुगल काल के दौरान, विशेष रूप से सम्राट अकबर के शासनकाल में इस शिल्प को प्रमुखता मिली, जिन्हें शॉल और पारंपरिक कलाकृति के लिए गहरी सराहना थी।।  2014 में कानी शॉल को "GI टैग" (Geographical Indication) मिला, जिससे यह प्रमाणित हुआ कि यह सिर्फ कश्मीर में ही बनाई जा सकती है।  कानी शॉल की बुनाई में लगने वाले समय, मेहनत और कारीगरी के कारण इसकी कीमत बहुत अधिक होती है।  एक असली कानी शॉल की कीमत हजारों से लेकर लाखों रुपयेतक हो सकती है।  

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हस्तकला और परंपरा की पहचान है ये  शॉल 

कश्मीरी कानी शॉल न केवल एक लक्ज़री फैशन स्टेटमेंट है, बल्कि यह कश्मीर की समृद्ध हस्तकला और परंपरा की पहचान भी है। इसकी बारीक कारीगरी, महीन ऊन और ऐतिहासिक महत्व  इसे दुनिया के सबसे अनमोल वस्त्रों में से एक बनाते हैं। अगर आप शॉल के शौकीन हैं, तो एक असली कानी शॉल आपके वार्डरोब का अनमोल हिस्सा हो सकती है। ये  केवल चुनिंदा दुकानों में या विशेष ऑर्डर पर उपलब्ध हैं, जिनका उत्पादन समय डिज़ाइन की जटिलता के आधार पर छह महीने से दो साल तक होता है।


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Content Writer

vasudha

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