अग्निदेव को सबसे पहले भोग देने का धार्मिक महत्व, जानें पिंडदान की शुद्ध विधि
punjabkesari.in Wednesday, Sep 25, 2024 - 02:13 PM (IST)
नारी डेस्क: पितृपक्ष, जिसे श्राद्ध पक्ष या महालया भी कहा जाता है, सनातन धर्म में पूर्वजों के प्रति सम्मान और श्रद्धा व्यक्त करने का विशेष अवसर है। यह भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन कृष्ण अमावस्या तक चलता है। इस दौरान, हम अपने पितरों से क्षमा मांगने और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर प्राप्त करते हैं। इस अवधि में पूर्वजों को याद करके उनकी आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और तर्पण किया जाता है।
पितृपक्ष की शुरुआत का पौराणिक आधार
पितृपक्ष की शुरुआत के बारे में कई किंवदंतिया हैं। कहा जाता है कि त्रेता युग में सीता माता ने श्राद्ध किया था, जबकि द्वापर युग में भी इस परंपरा का उल्लेख मिलता है। महाभारत काल में, भीष्म पितामह और युधिष्ठिर के बीच श्राद्ध की चर्चा हुई थी। किंवदंती के अनुसार, दानवीर कर्ण जब स्वर्ग गए, तो उन्हें भोजन के बजाय सोना-चांदी दिया गया, क्योंकि उन्होंने अपने पितरों के लिए कभी कुछ नहीं किया था। इसके बाद कर्ण को पृथ्वी पर लौटने का अवसर मिला, जहां उन्होंने 15 दिनों तक अपने पितरों के लिए दान और तर्पण किया। इस घटना को पितृपक्ष की शुरुआत माना जाता है।
अग्नि देव का श्राद्ध में महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार, पितरों को लंबे समय तक श्राद्ध का भोजन करने से अपच की समस्या हो गई थी। जब पितृ देवता ब्रह्मा जी के पास गए, तो ब्रह्मा जी ने उन्हें अग्नि देव के पास भेजा। अग्नि देव ने कहा, "अब मैं स्वयं आपके साथ भोजन करूंगा," और तभी से श्राद्ध में सबसे पहले अग्नि देव को भोजन अर्पित किया जाता है। ऐसा करने से पितरों को दूषित भोजन नहीं मिलता और उनके भोजन का अंश पवित्र रहता है।
पिंडदान की सही विधि
पिंडदान के दौरान, सबसे पहले पिता के लिए, फिर दादा और परदादा के लिए पिंडदान किया जाता है। पूरे श्राद्ध पक्ष में हर दिन किसी न किसी पूर्वज के लिए मृत्यु तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है। इस विधि में विशेष ध्यान रखना होता है कि पिंडदान को सच्चे मन और श्रद्धा से किया जाए। साथ ही, श्राद्ध के दौरान गरीबों और जरूरतमंदों को दान करना, जीव-जंतुओं को भोजन कराना, और उनके कल्याण के लिए प्रार्थना करना अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।
पितृपक्ष का आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश
पितृपक्ष का मुख्य उद्देश्य अपने पूर्वजों की आत्मा को शांति प्रदान करना और उन्हें तृप्त करना है। इन 15 दिनों में दान, तर्पण, और पिंडदान के माध्यम से हम यह सुनिश्चित करते हैं कि हमारे पितरों की आत्मा शांति प्राप्त करे और वे हमें आशीर्वाद दें। यह समय हमें परिवार और समाज के प्रति हमारी जिम्मेदारियों की याद भी दिलाता है।
समर्पण और सेवा का पर्व
पितृपक्ष केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज में परंपराओं और संस्कृति के प्रति समर्पण का प्रतीक है। पूर्वजों के प्रति सम्मान और उनकी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध करना हमारी संस्कृति का एक अहम हिस्सा है। पितृपक्ष के दौरान किए गए दान और सेवाएं न केवल हमें आशीर्वाद दिलाती हैं, बल्कि हमारे जीवन को भी सार्थक बनाती हैं।