दाहिनी टांग में पैरालाइज और 3 साल का डिप्रैशन मगर नहीं छोड़ा हौसला

punjabkesari.in Monday, Mar 16, 2020 - 06:04 PM (IST)

दाहिनी टांग के पूरी तरह से पैरालाइज हो जाने के बाद करीब 3 साल डिप्रैशन में रहने पर हर खिलाड़ी खेल छोडऩे की सोच ही लेता है। ऐसा ही कुछ डिस्कस थ्रोअर किरपाल सिंह बाठ ने भी सोचा लिया था। ऐसे समय में प्रोत्साहन मिलना और बीमारी से लड़ कर खुद को फिर से अपने पैरों पर खड़े करना और देश के लिए मैडल जीतने की कहानी है किरपाल की। पिछले साल नेपाल के काठमांडू में हुई साऊथ एशियन गेम्स में देश के लिए सोना जीतने वाले बाठ से अब ओलंपिक गेम्स में भी उम्मीदें बढ़ गई हैं। उन्होंने साऊथ एशियन गेम्स में 27 साल पुराना रिकॉर्ड भी तोड़ा है।

एन.आई.एस. में कर रहे ट्रेनिंग 
15 बार के नैशनल चैंपियन रह चुके किरपाल सिंह फिलहाल एन.आई.एस. में ही ट्रेनिंग कर रहे हैं और उनका अगला लक्ष्य ओलंपिक गेम्स में मैडल जीतना है। विदेशी कोच यूरी मोनेको से तकनीकी ट्रेङ्क्षनग ले रहे किरपाल ज्यादा समय खुद ही प्रैक्टिस करते हैं। इतनी बड़ी बीमारी को हराने वाले 6 फुट 4 इंच के थ्रोअर अपना सपना पूरा करने के लिए मेहनत तो कर रहे हैं और इस मेहनत का क्या फल मिलेगा, यह आने वाला समय ही बताएगा। किरपाल ने बताया कि उनकी एक छोटी-सी बेटी है, जिससे वह आगे बढऩा सीखते हैं और माता सुखबीर कौर से प्रेरणा लेकर सपने को पूरा करने में जुटे हैं।

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2006 में बड़े भाई से प्रेरित होकर गेम शुरू की
डिस्कस थ्रो में देश के लिए मैडल होप किरपाल सिंह बाठ ने 2006 में गेम अपने बड़े भाई को देखते हुए शुरू की। 6 साल तक उनकी गेम काफी अच्छी रही और वह जूनियर, फिर सीनियर लेवल पर नैशनल मैडल जीतते रहे, लेकिन 2012 में ओलंपिक गेम्स के लिए ट्रायल देने के दौरान उनके लोअर बैक में इंजरी हो गई, पर अपनी इंजरी को उन्होंने गंभीरता से नहीं लिया और खेलते रहे। हालात बिगड़ गए और उन्हें दाहिनी टांग पक्षाघात हो गया और पूरी तरह से बैड रैस्ट पर आ गए। 

पिता की मौत ने फिर से तोड़ दिया किरपाल सिंह बाठ को
अपनी बीमारी से निकल कर 2015 में किरपाल सिंह बाठ ने खेलना शुरू किया और मुकाबले में भाग भी लेना शुरू कर दिया। कुछ समय ही गुजरा था कि इसी दौरान कैंसर की वजह से पिता नरिन्द्र बीर सिंह की मृत्यु हो गई। बीमारी और फिर पिता के देहांत की वजह से मुश्किल समय रहा, लेकिन उन्होंने हौसला नहीं छोड़ा और 2016 में गेम पूरी गंभीरता के साथ शुरू की। हालांकि दिमागी परेशानी से पार पाने में कठिनाई जरूर आ रही थी। ऐसे में पिता के दोस्त जगीर सिंह ने अपनी बेटी के साथ किरपाल का विवाह कर दिया। इसके बाद फिर से नैशनल मैडल और इंटरनैशनल मैडल आने शुरू हुए और इस वजह से हौसले बुलंद हुए। अब वह एन.आई.एस. में ट्रेनिंग ले रहे हैं। 

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किरपाल सिंह बाठ की उपलब्धियां
-2006, 2007 और 2008 में नैशनल स्कूल चैंपियन (रिकॉर्ड के साथ), अंडर-14, 17 और 19 तीनों वर्ग के चैंपियन रहे।
-2009, 2010 और 2011 में इंटर यूनिवर्सिटी चैंपियन।
-जूनियर एशिया चैंपियनशिप 2010 में ब्रांज मैडल जीता।
-जूनियर वल्र्ड चैंपियनशिप 2010 में भाग लिया था।
-वल्र्ड यूनिवर्सिटी गेम्स 2011 में भाग लिया।
-फैडरेशन कप 2016 में गोल्ड मैडल।
-साऊथ एशियन गेम्स 2016 में सिल्वर मैडल।
-फैडरेशन कप 2017 में ब्रांज मैडल।
-साऊथ एशियन गेम्स नेपाल 2019 में गोल्ड।

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पिता के दोस्त ने टूटी हिम्मत को जोड़ा
3 साल तक अपनी बीमारी की वजह से हौसला छोड़ चुके बाठ की उनके पिता के दोस्त (अब उनके ससुर) जगीर सिंह ने जब यह हालत देखी तो उन्होंने प्रोत्साहित किया और फिर से मैदान में लौटने को कहा। जगीर सिंह की बात का उन पर काफी असर हुआ और धीरे-धीरे ट्रेनिंग शुरू की जिससे उनका पक्षाघात भी ठीक हुआ।


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Content Writer

shipra rana

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