सिर्फ लंकापति रावण नहीं बल्कि कई पौराणिक कथाओं से जुड़ा है दशहरा का त्योहार
punjabkesari.in Wednesday, Oct 05, 2022 - 01:36 PM (IST)
मां दुर्गा को शक्ति की देवी कहा जाता है। देवी शक्ति की पूजा-अर्चना का 9 दिनों तक विशेष महत्व है। वैसे तो भक्त मां की पूजा अर्चना प्रतिदिन करते हैं लेकिन नवरात्रि के नौ दिनों में मां की विशेष रुप से पूजा अर्चना की जाती है। नौ दिनों तक उपवास करते मां को प्रसन्न करते हैं और दशहरे के एक दिन पहले नौवी के दिन व्रत का उद्यापन करते हैं। संस्कृत भाषा में दशहरे का महत्व अलग रुप में बताया गया है। संस्कृत भाषा में दशहरा का अर्थ है दश यानी की ''दस हरा का अर्थ है 'शीष'। भगवान राम ने रावण के दश शीषों अंत किया था इसलिए इस दिन को दशहरा के नाम से जाना जाता है। तो चलिए आपको बताते हैं दशानन के जीवन से जुड़ी कुछ कथाएं..
सत्य का प्रतीक माना जाता है दशहरा
देश के साहित्य को कई भाषाओं में रचा गया है। महाकाव्य और ग्रंथों से त्योहारों की जानकारी भी मिलती है। उन्हीं त्योहारों में से एक दशहरे का उत्सव का भी वर्णन किया गया है। त्योहार में महापुरुष और महायोद्धा के रुप में भगवान राम का वर्णन किया है। इस त्योहार को सत्य का प्रतीक माना जाता है। इन्हीं कथाओं के अनुसार, भगवान राम ने लंकापति रावण का घमंड चूर किया था।
हिंदू महाकाव्य में भगवान राम को बताया है आदर्श पुरुष
हिंदू महाकाव्य के अनुसार, अयोध्या के राजा राम ने लंका पति राजा रावण को मार दिया था। लंका पति राजा रावण ने देवी सीता का अपहरण किया था। इस ग्रंथ में भगवान श्रीराम को आदर्श पुरुष के रुप में बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि अयोध्या पति राम सर्वगुण संपन्न थे। भगवान राम की कोई भी विशेषता एक साधारण मनुष्य के अंदर नहीं होती। इस शास्त्र में लक्ष्मण, हनुमान और वानर सेना का भी मुख्य रुप से जिक्र किया है। उन्होंने भी मां सीता को बचाने के लिए राक्षसों से युद्ध किया था, उन्हें जीत दिलवाई। यह कहानी सिर्फ युद्ध की नहीं है बल्कि समाज को कई तरह की प्रेरणा भी देती है।
युद्ध के दौरान रावण की शक्ति दिखाई गई ज्यादा प्रभावशाली
ऐसा माना जाता है कि करीबन 10 दिनों तक भगवान राम और रावण के बीच लगातार युद्ध चलता रहा था और दशहरे के दिन भगवान राम को विजय हासिल हुई थी। इस कहानी में एक बार ऐसा भी हुआ कि रावण की शक्ति ज्यादा प्रभावशाली दिखाई दी थी। जब रावण ज्यादा शक्तिशाली थे तो श्रीराम ने आदि शक्ति की पूजा की जिसके बाद भगवान राम के साथ बाकी देवी-देवता भी युद्ध में शामिल हुए थे। राम भगवान की इसी जीत के रुप में दशहरा मनाया जाता है। इसलिए इस दिन देशभर में रावण कुंभकरण और मेघनाद के पुतले जलाए जाते हैं।
भगवती देवी की विजय के रुप में मनाया जाता है दशहरा
एक अन्य पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान ब्रह्माजी ने राक्षस महिषासुर को यह वरदान दिया था कि कोई भी हथियार उसका बाल भी बांका नहीं कर सकता। इसी चीज का फायदा उठाते हुए महिषासुर ने देवताओं और देवलोक पर अत्याचार करने शुरु कर दिए जिसके बाद भगवान विष्णु ने देवताओं को देवी शक्ति दुर्गा का आह्वान करने के लिए कहा। देवताओं के प्रार्थना करने पर त्रिनेत्रधारी शिव जी के हृदय से एक दिव्य प्रकाश उत्पन्न हुआ और मां देवी दुर्गा ने अवतार लिया। सिंह पर सवार होकर मां दुर्गा ने राक्षसों का संहार किया और अंत में मां को विजय प्राप्त हुई। इसलिए नौ दिनों तक मां की पूजा की जाती है और दसवें दिन मां दुर्गा की विजय के रुप में विजयदशमी यानी की दशहरा मनाया जाता है।
ब्राह्मण कौत्सा से जुड़ी है दशहरा की कहानी
एक युवा ब्राह्माण कौत्सा अपने गुरु ऋषि वारातंतु से गुरुदक्षिणा ने लगातार आग्रह करते हैं। गुरु वारातंतु ने कौत्सा से 1400 लाख सोने के सिक्के मांगे। कौत्सा ने राजा रघु से इस बात की मदद मांगी थी, लेकिन राजा रघु उनका सारा कोष दान में खत्म कर चुके थे। उस समय राजा लघु ने देवता कुबेर से मद मांगी । देवता कुबेर में राजा लघु की मदद करने के लिए आस-पास सोने की सिक्कों की वर्षा करवा दी। जिसके बाद सारे पैसे राजा लघु ने ब्राह्माण कौत्सा को दे दिए। कौत्सा ने सारे पैसे ऋषि वारातंतु के चरणों में अर्पित कर दिए। गुरु ने मांगी हुई दक्षिणा अपने पास रखी और बाकी बचे पैसे ब्राह्माण कौत्सा को दे दिए। बचे हुए धन को ब्राह्मण कौत्सा ने अयोध्या की प्रजा में बांट दिए। इसलिए दशहरे पर आपाति वृक्ष के पत्ते भी बांटे जाते हैं।