नागा साधु और अघोरी साधु में अंतर: कौन हैं असली तंत्र साधक?
punjabkesari.in Tuesday, Feb 04, 2025 - 05:44 PM (IST)
नारी डेस्क: महाकुंभ का आयोजन एक ऐसा अवसर होता है, जब देशभर से लाखों साधु-संत एकत्र होते हैं। इनमें विशेष रूप से नागा साधु और अघोरी साधु अपनी रहस्यमयी जीवनशैली के कारण लोगों के आकर्षण का केंद्र होते हैं। कई लोग इन्हें एक जैसा मानते हैं, लेकिन वास्तव में दोनों के बीच कई प्रमुख अंतर होते हैं। आइए विस्तार से जानते हैं कि नागा साधु और अघोरी साधु में क्या अंतर है।
नागा साधु और अघोरी साधु में मूलभूत अंतर
नागा साधु वैदिक परंपरा का पालन करते हैं और शिव या विष्णु के उपासक होते हैं, जबकि अघोरी साधु तांत्रिक परंपरा का अनुसरण करते हैं और शिव के भैरव रूप की उपासना करते हैं। नागा साधुओं का मुख्य उद्देश्य आत्मज्ञान प्राप्त करना, धर्म की रक्षा करना और मोक्ष की प्राप्ति है, जबकि अघोरी साधु सांसारिक और आध्यात्मिक सीमाओं को पार कर परम सत्य की अनुभूति करना चाहते हैं।
नागा साधु हिंदू धर्म और परंपराओं की रक्षा के लिए जाने जाते हैं। ऐतिहासिक रूप से, वे योद्धा संन्यासी भी माने जाते हैं, जो धर्म की रक्षा के लिए हथियार उठाने में भी संकोच नहीं करते। वहीं, अघोरी साधु सामाजिक मान्यताओं से परे रहकर अघोर साधना करते हैं और मृत्यु को जीवन का अंतिम सत्य मानते हैं।
अखाड़ों और सामाजिक भूमिका में अंतर
नागा साधु विभिन्न अखाड़ों से जुड़े होते हैं और धार्मिक आयोजनों, विशेष रूप से कुंभ मेले में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। वे समाज में धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए कार्य करते हैं। इसके विपरीत, अघोरी साधु समाज से कटे हुए होते हैं और श्मशान घाटों पर रहकर साधना करते हैं। समाज में उन्हें रहस्यमय दृष्टि से देखा जाता है और उनकी साधना को रहस्यमय और डरावना माना जाता है।
रहने और पहनावे में अंतर
नागा साधु आमतौर पर नग्न रहते हैं या केवल एक लंगोट पहनते हैं, जो उनके वैराग्य और भौतिक सुखों से दूर रहने का प्रतीक है। वे अपने शरीर पर भस्म (राख) लगाते हैं और युद्धकला, योग तथा ध्यान में निपुण होते हैं।
अघोरी साधु श्मशान में रहते हैं और अपने शरीर पर शवों की राख लगाते हैं। वे कभी-कभी मानव खोपड़ी (कपाल) का उपयोग पात्र के रूप में करते हैं। अघोरी साधु आमतौर पर काले वस्त्र पहनते हैं या पूरी तरह नग्न रहते हैं। वे समाज की पारंपरिक धारणाओं को तोड़कर अघोर साधना करते हैं।
साधना और भोजन में अंतर
नागा साधु योग, ध्यान और तपस्या के माध्यम से आत्मज्ञान प्राप्त करने की साधना करते हैं। वे दिन में केवल एक बार भोजन करते हैं और सात घरों से भिक्षा मांग सकते हैं। यदि उन्हें भिक्षा नहीं मिलती, तो वे भूखे रहते हैं। नागा साधु आमतौर पर शाकाहारी होते हैं, लेकिन कुछ नागा साधु परिस्थितियों के अनुसार मांसाहार भी कर सकते हैं।
अघोरी साधु तंत्र-मंत्र, शव साधना, शिव साधना और श्मशान साधना करते हैं। उनकी साधना में मृत्यु और जीवन के बीच की सीमाओं को पार करने की प्रवृत्ति होती है। वे श्मशान में रहने और शवों के साथ साधना करने के लिए जाने जाते हैं। भोजन के रूप में अघोरी साधु मांसाहारी होते हैं, और मान्यताओं के अनुसार, वे कभी-कभी मानव मांस का भी भक्षण करते हैं, जिसे वे अघोर साधना का एक भाग मानते हैं।
गुरु-शिष्य परंपरा में अंतर
नागा साधु बनने के लिए किसी अखाड़े से जुड़ना अनिवार्य होता है और गुरु की दीक्षा के बिना कोई नागा साधु नहीं बन सकता। नागा संन्यासी बनने के लिए कठोर तपस्या और वर्षों की साधना की आवश्यकता होती है।
वहीं, अघोरी साधु बनने के लिए किसी विशेष गुरु की आवश्यकता नहीं होती। वे शिव को ही अपना गुरु मानते हैं और अपनी साधना स्वयं करते हैं।
नागा साधु और अघोरी साधु दोनों ही भारत की आध्यात्मिक और रहस्यमयी परंपराओं का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, लेकिन उनकी साधना, उद्देश्य और जीवनशैली में गहरा अंतर है। नागा साधु धर्म और समाज की रक्षा के लिए कार्य करते हैं, जबकि अघोरी साधु सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर मृत्यु के सत्य को समझने का प्रयास करते हैं। कुंभ मेले जैसे आयोजनों में जहां नागा साधु बड़ी संख्या में दिखते हैं, वहीं अघोरी साधु अपने एकांत और रहस्यमयी जीवन के लिए जाने जाते हैं।