तरकुलहा मंदिर में खून चढ़ाकर माता काे किया जाता है प्रसन्न, यहां कई सालों तक दी गई अंग्रेजों की बलि
punjabkesari.in Saturday, Mar 25, 2023 - 12:50 PM (IST)

नवरात्रि के पावन पर्व की बात ही निराली है। पूरे नौ दिन भक्तों में एक अलग ही उत्साह देखने को मिलता है, यही कारण है कि मंदिरों में दिन- रात भीड़ देखने को मिलती है। इस खास मौके पर आज हम आपको ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां रक्त चढ़ाकर माता काे प्रसन्न करने की परम्परा है। यह प्रसिद्ध मंदिर अपने आप में अनोखा है। वैसे तो यहां पूरे साल भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन नवरात्र के अवसर पर श्रद्धालुओं की संख्या कई गुना बढ़ जाती है।
बाबू बंधू सिंह के साथ यहां आई थी मां
गोरखपुर जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर देवीपुर गांव में मां तरकुलहा देवी के प्रसिद्ध मंदिर को महान क्रांतिकारी बाबू बंधू सिंह के पूर्वजों ने स्थापित किया था। यहां के इतिहास में दर्ज है कि बाबू बंधू सिंह बिहार के मदनपुर से माता को पैदल अपने साथ लाए थे। माता उनके साथ आईं और इसी स्थान पर तरकुल के पेड़ के नीचे रुक गईं। माता ने यहीं पिंडी रूप धारण कर लिया। तभी से माता तरकुलहा और तरकुलही देवी के नाम से विख्यात हैं।”
इस मंदिर में अंग्रेजों का चढ़ता था रक्त
कहा जाता है कि बंधू सिंह अंग्रेजों की बलि देने के बाद इसी पिंडी पर उनका रक्त चढ़ाते थे। ऐसा करने से उन्हें अलौकित शक्ति का एहसास भी होता था। बंधु सिंह कम से कम 2 अंग्रेजों का खून पिंडी पर हर रोज चढ़ाया करते थे। ऐसे में अंग्रेजों ने बंधू सिंह को खत्म करने के लिए उन्हें फांसी पर लटका दिया, लेकिन माता के प्रभाव से रस्सी टूट गई। 7 बार बंधू सिंह को फांसी लगाने की कोशिश की गई, हर बार वह असफल रहे।
पेड़ में निकलने लगा था खून
बताया जाता है कि 8वीं फांसी के वक्त बाबू बंधु सिंह ने माता से खुद आग्रह किया कि मां अब मुझे अपने पास बुला लीजिए। 12 अगस्त, 1857 को अंग्रेजों ने फांसी लगाई और इस बार बाबू बंधु सिंह शहीद हो गए।"उनके शहीद होते ही दूसरी तरफ स्थित ताड़ का पेड़ टूट गया और उसमें से खून निकलने लगा। यह देखकर बाद में लोगों ने उसी जगह पर तरकुलहा देवी मंदिर का निर्माण कराया।

यहां घंटी बांधने का भी है रिवाज़
बाबू बंधु सिंह ने माता को अंग्रेजों की बलि दे कर यहां नर बलि की शुरुआत की थी। उनकी शहादत के बाद नर बलि की जगह पशु बलि ने ले ली। अपनी मनोकामना पूरी होने के बाद लोग यहां बकरे की बलि देने आते हैं।बकरे के मीट को मिट्टी के बर्तन में पका कर उसे प्रसाद के तौर पर खाते हैं। हालांकि अब प्रशासन ने पशु बलि की परंपरा को भी बंद कर दिया है। इस मंदिर में मन्नत पूरी होने पर घंटी बांधने का भी रिवाज़ हैं, यहां आपको पूरे मंदिर परिसर में जगह जगह घंटिया बंधी दिख जायेगी।
सबसे ज्यादा पढ़े गए
Related News
Recommended News
Recommended News

Lucknow News: आज से शुरू होगा सपा का दूसरा प्रशिक्षण शिविर, अखिलेश समेत शिवपाल यादव संभालेंगे मोर्चा

ओडिशा ट्रेन हादसे के 39 और शव एम्स भुवनेश्वर लाए गए, मरने वालों का आंकड़ा पहुंचा 288

प्रतिशोध की भावना से न हो एफ.आई.आर.

Upay To Get Maa Lakshmi Blessing: अपनी दिनचर्या में करें थोड़ा बदलाव, महालक्ष्मी खुद चलकर आएंगी आपके द्वार