3 दिन में पथरी 1 दिन में गांठ गलाती है ये सब्जी, गठिया और बालों के लिए किसी वरदान से कम नहीं

punjabkesari.in Sunday, Oct 12, 2025 - 11:49 AM (IST)

नारी डेस्क : तोरई (रई) भारत में पाई जाने वाली एक आम लेकिन अत्यंत उपयोगी सब्जी है। इसकी खेती लगभग सभी राज्यों में की जाती है। पोषक तत्वों की दृष्टि से इसकी तुलना नेनुआ या घीया तोरई से की जा सकती है। वर्षा ऋतु के मौसम में इसका सेवन अधिक किया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार तोरई शरीर को शीतलता और रोगों से सुरक्षा प्रदान करती है।

तोरई के गुण (Properties)

प्रकृति: ठंडी और तर (शीतल व स्निग्ध)

स्वाद: हल्का कड़वा

प्रभाव: पित्त और रक्त विकारों को शांत करने वाली

पाचन: हल्की लेकिन अधिक मात्रा में खाने पर भारी पड़ सकती है।

मुख्य तत्व: फाइबर, कैल्शियम, आयरन, विटामिन A, C और जल तत्व से भरपूर।

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विभिन्न रोगों में तोरई के औषधीय उपयोग

पथरी में लाभ: तोरई की बेल को गाय के दूध या ठंडे पानी में घिसकर सुबह खाली पेट तीन दिन तक पीने से पथरी गलने लगती है और मूत्रमार्ग साफ होता है।

फोड़े और गांठ: तोरई की जड़ को ठंडे पानी में घिसकर फोड़े या गांठ पर लगाने से सूजन और दर्द कम होता है। एक दिन में ही राहत महसूस होती है।

चकत्ते और त्वचा रोग: तोरई की बेल को गाय के मक्खन में घिसकर दिन में 2–3 बार चकत्तों पर लगाने से जलन, खुजली और रैशेज खत्म हो जाते हैं। यह प्राकृतिक स्किन ट्रीटमेंट है।

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बवासीर (अर्श): तोरई की सब्जी नियमित खाने से कब्ज में राहत मिलती है, जिससे बवासीर में आराम मिलता है।

एक घरेलू नुस्खा: कड़वी तोरई को उबालकर उसके पानी में बैंगन पकाएं, बैंगन को घी में भूनकर गुड़ के साथ खाएं। इससे मस्से झड़ जाते हैं और दर्द कम होता है।

पेशाब की जलन: तोरई मूत्रवर्धक है। इसका रस पेशाब की जलन और संक्रमण को दूर करता है। गर्मी के मौसम में इसका सेवन शरीर को ठंडक भी देता है।

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आंखों के रोग: आंखों में रोहे (पोथकी) या फूले होने पर तोरई के ताजे पत्तों का रस निकालें और 2–3 बूंद दिन में 3–4 बार डालें। इससे आंखों की सूजन और संक्रमण में आराम मिलता है।

बालों को काला करने का उपाय: तोरई के टुकड़ों को छाया में सुखाकर कूट लें। इसे नारियल तेल में 4 दिन तक रखकर उबालें और छान लें। इस तेल से सिर की मालिश करने पर बाल प्राकृतिक रूप से काले और मजबूत होते हैं।

योनिकंद (महिला रोग): कड़वी तोरई के रस में दही का खट्टा पानी मिलाकर पीने से योनिकंद (जननांग के संक्रमण) में लाभ होता है। यह प्राकृतिक रूप से संक्रमण को दूर करता है।

गठिया या घुटनों का दर्द: पालक, मेथी, तोरई, टिंडा और परवल जैसी हरी सब्जियों का नियमित सेवन गठिया और जोड़ों के दर्द में राहत देता है। यह शरीर में सूजन को कम करता है।

पीलिया: कड़वी तोरई के रस की 2–3 बूंद नाक में डालने से नाक से पीला पानी निकलता है और एक ही दिन में पीलिया के लक्षण खत्म होने लगते हैं।

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कुष्ठ (कोढ़): तोरई के पत्तों या बीजों को पीसकर कुष्ठ प्रभावित त्वचा पर लगाने से धीरे-धीरे रोग में सुधार होता है। यह एक प्राचीन आयुर्वेदिक नुस्खा है।

गले के रोग: कड़वी तोरई को चिलम में तंबाकू की तरह भरकर उसका धुआं गले में लेने से गले की सूजन और खराश दूर होती है।

उल्टी कराने के लिए: तोरई (झिमनी) के बीजों को पीसकर रोगी को देने से उल्टी और दस्त होते हैं, जिससे पेट की सफाई हो जाती है। यह नुस्खा उन स्थितियों में उपयोगी है जब पेट में हानिकारक पदार्थ जमा हो जाएं।

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सावधानी और हानिकारक प्रभाव (Harmful Effects)

तोरई कफ और वात बढ़ाने वाली होती है, इसलिए अत्यधिक सेवन से बचें।

यह भारी और आमकारक है, इसलिए पाचन कमजोर लोगों को इसे सीमित मात्रा में खाना चाहिए।

वर्षा ऋतु में रोगी व्यक्तियों को तोरई का साग नहीं खाना चाहिए, क्योंकि इससे सर्दी-जुकाम या गैस की समस्या हो सकती है।

तोरई एक साधारण सब्जी जरूर है, लेकिन इसके औषधीय गुण इसे असाधारण बनाते हैं। यह पाचन, त्वचा, बाल, आंखों और यौन स्वास्थ्य तक में लाभ देती है। आयुर्वेद के अनुसार यदि इसका सेवन संयमित मात्रा में और उचित तरीके से किया जाए, तो यह शरीर को कई रोगों से बचाने में मदद करती है। तोरई का उपयोग करने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें।


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Content Editor

Monika

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