Malika Handa की विकलांगता नहीं रोक पाई उसकी सपनों की उड़ान, चेस चैंपियन बनकर रचा इतिहास
punjabkesari.in Wednesday, Mar 29, 2023 - 12:20 PM (IST)
एक ऐसा देश जहां पर विकलांगता को एक शाप की तरह देखा जाता है, वहीं पर मलिका हांडा ने समाज की दकियानूसी सोच को परवाह किए बगैर महिला अंतरराष्ट्रीय बधिर शतरंज चैंपियनशिप (International Deaf Chess championship) जीतकर देश का सीना गर्व पर चौड़ कर दिया है। मलिका का ये सफर हमेशा से जिद, धैर्य वाला रहा है। आज जांलधर की ये लड़की देश की करोड़ों महिलाओं के लिए आदर्श बन गई है।
मुश्किलों से भरा था मलिका का बचपन
मलिका का बचपन इतना आसान नहीं था। वो जन्म से ही मूक और बधिर थीं। मलिका की मां रीना का कहना है कि 'वो बोली और सुन नहीं सकती है। हालांकि हमने कभी हिम्मत नहीं हारी और तय किया कि हम अपनी स्पेशल बेटी को सबसे अच्छी एजुकेशन के साथ-साथ वो सारी सहूलियतें देंगे जिससे वो कभी अपने आप को किसी से कमतर ना समझे'। मलिका को बचपन में कई सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। मल्लकिा की मां ने अपनी बेटी को समझने के लिए स्पीच थेरेपी भी सीखी। इन्हीं सब के बीच साल 2010 में मलिका को चेस गेम से प्यार हो गया। उसे खाली समय में चेस खेलना बहुत पसंद वाता और सिर्फ 15 साल की उम्र में उसने खुद चेस टूर्नामेंट में हिस्सा लेनी लगी। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने आज तक कई सारे आवर्ड्स जीते हैं और वो इकलौती ऐसी महिला है जिन्होंने 9 बार पंजाब की तरफ से नेशनल चैंपियनशिप में भाग लिया है। 2018 में उन्होंने विश्व बधिर ब्लिट्ज चेस चैंपियनशिप (Deaf Blitz Chess Championship) में सिल्वर मेडल जीता और देश को गौरविंत किया। ये नहीं, मलिका को मॉडलिंग का भी शौक है। वो रैंप पर भी कई बार अपने जलवा दिखा चुकी हैं।
अपनी बेटी की उपलब्धियों पर बात करते हुए रीना कहती हैं, 'अभी हाल ही मैं मलिका को 'कमला पॉवर वूमन अवार्ड' से नवाजा गया है। इससे पहले जनवरी 16, 2023 को नेशनल यूथ अवार्ड भी मिला था। 2022 में देश के लिए वो स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली महिला बन गई थीं। लेकिन इस सफलता और देश का नाम रोशन करने के बाद भी मलिका की मुश्किलें आसान होने का नाम नहीं ले रहीं। रीना बताती हैं कि उनकी बेटी को राज्य की सरकार से किसी भी तरह कोई मदद नहीं मिल रही। मेरी बेटी को सरकार जॉब तक नहीं दे रही। मल्लकिा का कहना है , 'हम दया या भीख नहीं मांग रहे। मैं बस एक इंडिपेंडेंटऔर नॉर्मल जिंदगी जीना चाहती हूं'। हालांकि वो ऐसी सिचुएशन से हार नहीं मान रहे और ना ही सरकार के झूठ वादों ने उन्हें तोड़ा है, मलिका ने कभी खुद को किसी से कमतर नही समझा और ना ही विकलांगता को अपने सफर में रोड़ा बनने दिया और ना ही आगे बनने देंगी।