Mahalakshmi Vrat: कुंती ने की थी देवी लक्ष्मी की अराधना, स्वर्ग से बुलाया था ऐरावत हाथी
punjabkesari.in Tuesday, Sep 14, 2021 - 01:46 PM (IST)
हर साल भाद्रपद शुक्ल अष्टमी तिथि को महालक्ष्मी के व्रत रखने का महत्व है। इस पर्व को कुल 16 दिनों तक मनाया जाता है। इस दौरान महिलाएं व्रत रखती है। मान्यता है कि ये व्रत सुख-संपत्ति, पुत्र प्राप्ति के लिए रखे जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार किसी भी व्रत की कथा सुने बिना वह पूरा नहीं माना जाता है। इसलिए आज हम आपको महालक्ष्मी व्रत की आरंभ तिथि पर इससे जुड़ी कथा बताते हैं...
माता कुंती तथा गांधारी ने श्री वेदव्यासजी कथा सुनाने का आग्रह किया
महाभारत काल के समय महर्षि श्री वेदव्यास जी एक दिन हस्तिनापुर गए तो महाराज धृतराष्ट्र ने आदर सहित राजमहल में उनका स्वागत किया। उन्होंने ने वेदव्यास जी को स्वर्ण सिंहासन पर बैठाकर चरणोदक ले उनका पूजन किया। उस समय माता कुंती और गांधारी ने श्री वेदव्यासजी जी से हाथ जोड़कर कहा कि, आप त्रिकालदर्शी हैं और आपसे हमारी प्रार्थना है कि आप हमें कोई सरल व्रत तथा पूजन बताएं जिससे हमारा राज्यलक्ष्मी, सुख-संपत्ति, पुत्र-पोत्रादि व परिवार सभी खुशहाल रहे। तब वेद व्यासजी ने घर में सदा देवी लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए उन्हें महालक्ष्मी व्रत के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि यह व्रत हर साल आश्विन कृष्ण अष्टमी को विधिवत किया जाता है।
प्रतिदिन 16 दूब व 16 गेहूं डोरे को चढ़ाएं
वेदव्यास जी ने बताया कि ये पावन व्रत भाद्रपद शुक्ल अष्टमी से आरंभ होते हैं। इस दिन सुबह नहाकर साफ कपड़े पहनें। फिर 16 सूत के धागों का डोरा बनाकर उसमें 16 गांठे लगाकर हल्दी से पीला कर दें। रोजाना 16 दूब घास और 16 गेंहू डोरे को अर्पित करें। आश्विन कृष्ण अष्टमी के दिन व्रत रखें और मिट्टी के हाथी पर श्री महालक्ष्मीजी की प्रतिमा स्थापित करके विधि-विधान से पूजा करें। इससे घर-परिवार पर देवी लक्ष्मी की असीम कृपा मिलती है। इस कथा को बताकर वेदव्यास जी अपने आश्रम को लौट गए।
गांधारी तथा कुंती नगर की स्त्रियों सहित व्रत रखना किया आरंभ
फिर मुनि द्वारा बताएं अनुसार, भाद्रपद शुक्ल अष्टमी से गांधारी तथा कुंती ने अपने-अपने महलों में नगर की स्त्रियों के साथ देवी लक्ष्मी के व्रत का प्रारंभ कर दिया। पूरे 15 दिन बीत जाने के बाद 16 वें दिन यानि आश्विन कृष्ण अष्टमी पर गांधारी ने सभी महिलाओं को पूजन के लिए अपने महल में आने का न्योता दिया। ऐसे में माता कुंती के महल में एक भी महिला नहीं गई। साथ ही गांधारी ने भी माता कुंती को महल में आने को नहीं कहा था। इससे कुंती माता ने अपना अपमान समझा और वे उदास हो गई। उन्होंने पूजन की कोई तैयार भी नहीं की थी। कुंती के पुत्रों यानि पांचों पांडवों को तब अपनी मां से उदासी व व्रत पूजन ना करने का कारण पूछने लगे। तब माता ने अपने पुत्रों को बताया कि महालक्ष्मी व्रत के पूजन का उत्सव गांधारी के महल में हो रहा है। गांधारी के 100 पुत्रों ने मिट्टी का एक बहुत ही विशाल हाथी बनाया जाता है। ऐसे में नगर की सभी महिलाएं उसके महल में पूजन करने गई और मेरे यहां पर कोई नहीं आया। यह बात सुनकर अर्जुन ने अपनी माता को पूजा की तैयार करने का आग्रह किया। साथ ही कहा कि, पूरे नगर में बुलावा दे दो कि हमारे यहां पर स्वर्ग के ऐरावत हाथी की पूजा होगी।
माता कुंती ने पूजा की तैयारी शुरु कर दी
अर्जुन की बात से खुश होकर माता कुंती ने पूरे नगर में बड़ी पूजा होने का ढिंढोरा पिटवा दिया। तब अर्जुन ने अपने बाण द्वारा इंद्र देव का ऐरावत हाथी धरती पर बुला लिया। साथ ही कुंती के महल में ऐरावती हाथी आने का शोर मच गया। यह घोषणा सुनकर नगर के सभी नर-नारी, बालक एवं वृद्धों हां इकट्ठे हो गए। उधर गांधारी के महल में भी मौजूद सभी महिलाएं अपनी-अपनी थालियां लेकर कुंती के महल पहुंच गई। कुछ ही पल में कुंती का सारा महल एकदम भर गया। तब माता कुंती ने ऐरावत को खड़ा करने के लिए कई रंगों के नवीन रेशमी वस्त्र चौक पर बिछवा दिए। साथ ही नगर के वासी भी ऐरावती का स्वागत करने के लिए फूलमाला, अबीर, गुलाल, केसर लेकर पक्ति में खड़े हो गए। स्वर्ग से ऐरावत हाथी पृथ्वी पर उतरने समय उसके आभूषणों की ध्वनि चारों ओर गूंजने लगी। नगरवासियों ने ऐरावत के दर्शन पाते ही जय-जयकार के नारे लगाने शुरु कर दिए।
वेद मंत्रोच्चारण द्वारा महालक्ष्मी का हुआ पूजन
शाम के समय इन्द्र का भेजा हाथी माता कुंती के भवन के चौक में पहुंचा। लोगों ने उसका स्वागत फूलों की माला, अबीर, गुलाल, केशर आदि सुगंधित पदार्थ आदि अर्पित करके किया। फिर राज्य के पूरोहित ने ऐरावत पर महालक्ष्मीजी की मूर्ति स्थापित की फिर वेद मंत्रोच्चारण द्वारा देवी मां की पूजा की गई। माता कुंती के साथ नगरवासियों ने भी महालक्ष्मी की पूजा की। अनेक प्रकार के पकवान बनाकर ऐरावत को खिलाए गए। साथ ही उन्हें यमुना नदी का जल पिलाया गया। फिर राज्य पुरोहित द्वारा स्वस्ति वाचन करके महिलाओं द्वारा महालक्ष्मी का विधि-विधान से पूजन किया गया।
सभी महिलाओं ने हाथों पर बांधे धागे
16 गांठों से तैयार डोरा महालक्ष्मी जी को अर्पित किया गया। फिर इन धागों को महिलाओं द्वारा अपने-अपने हाथों में बांध लिया गया। विधि-विधान से ब्राह्मणों को भोजन खिलाया, दक्षिणा स्वरूप स्वर्ण आभूषण, वस्त्र आदि दि गए। उसके बाद नगर की महिलाओं ने मिलकर मधुर संगीत लहरियों के साथ भजन कीर्तन करके पूरी रात महालक्ष्मी व्रत का जागरण किया। अगली सुबह राज्य पुरोहित द्वारा वेद मंत्रोच्चार करते हुए जलाशय में महालक्ष्मी की मूर्ति का विसर्जन किया गया। उसके बाद स्वर्ग से आए ऐरावत को भी बिदाकर वापस भेज दिया गया।
मान्यता है कि सच्चे मन व विधि-विधान से इस व्रत को करने से घर धन-धान्य से भर रहता है। घर में देवी लक्ष्मी का वास होता है। इस दौरान महालक्ष्मीजी की यह स्तुति अवश्य बोलें- 'महालक्ष्मी नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं सुरेश्वरि। हरि प्रिये नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं दया निधे।।'