क्या मांसाहार करना सही है? गरुड़ पुराण और श्रीकृष्ण की कथा से जानें उत्तर

punjabkesari.in Saturday, Oct 05, 2024 - 03:48 PM (IST)

नारी डेस्क: मांसाहार का सेवन हमेशा से एक विवादित विषय रहा है। कुछ लोग इसे अपने भोजन का अनिवार्य हिस्सा मानते हैं, जबकि धर्म और शास्त्र इसे अनुचित ठहराते हैं। हिन्दू धर्म के शास्त्रों में मांसाहार को तामसिक भोजन माना गया है, जो न केवल शरीर को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति में भी बाधा उत्पन्न करता है। श्रीकृष्ण द्वारा बताई गई एक पौराणिक कथा के माध्यम से हम समझ सकते हैं कि मांसाहार को किस दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए और कैसे यह जीवन के हर पहलू में प्रभाव डालता है।

मांसाहार और श्रीकृष्ण की शिक्षा

कथा की शुरुआत

श्रीकृष्ण का जीवन और उनके उपदेश सदैव मानवता के लिए मार्गदर्शक रहे हैं। एक दिन श्रीकृष्ण यमुना के किनारे बैठे बांसुरी बजा रहे थे, तभी एक हिरण उनके पास आकर छिप गया। वह हिरण किसी शिकारी से बचने के लिए भाग रहा था। शिकारी ने आकर श्रीकृष्ण से अपने हिरण को वापस करने की मांग की, क्योंकि वह उसका शिकार था। तब श्रीकृष्ण ने शिकारी से पूछा, "यह हिरण तुम्हारा कैसे हो सकता है? किसी भी जीव का पहला अधिकार उसी पर होता है।" शिकारी ने श्रीकृष्ण से कहा, "मैं इस हिरण को मारकर खाऊंगा, इसमें कोई पाप नहीं है। राजा लोग भी तो शिकार करते हैं, क्या उन्हें पाप लगता है?" इस पर श्रीकृष्ण ने एक कथा सुनाई, जिससे शिकारी को समझ आ सके कि मांसाहार का सेवन क्यों अनुचित है।

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मगध की पौराणिक कथा मांसाहार सस्ता या महंगा?

कथा का प्रसंग

मगध राज्य में एक बार भीषण अकाल पड़ गया। फसलों का उत्पादन नहीं हो पाया, जिससे राज्य में खाद्य संकट उत्पन्न हो गया। राजा ने सभी मंत्रियों से समाधान मांगा। एक मंत्री ने सुझाव दिया कि मांस सबसे सस्ता और उत्तम भोजन हो सकता है क्योंकि इसे आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। हालांकि प्रधानमंत्री ने इस बात से असहमति जताई और समय मांगा। उन्होंने उसी रात सभी मंत्रियों के घर जाकर उनसे राजा को बचाने के लिए दो तोले मांस की मांग की। सभी मंत्रियों ने मांस देने से इनकार कर दिया और इसके बदले लाखों स्वर्ण मुद्राएं दीं।

सच्चाई का उजागर होना

अगले दिन प्रधानमंत्री ने राजा के सामने वह एकत्रित स्वर्ण मुद्राएं प्रस्तुत कीं और बताया कि ये धनराशि दो तोले मांस के बदले ली गई है। इससे साबित हुआ कि मांस वास्तव में सस्ता नहीं है, बल्कि यह अमूल्य है। किसी भी जीव का मांस उसकी जान से ज्यादा कीमती है। इस घटना के बाद राजा ने प्रजा से मांसाहार का त्याग करने और कड़ी मेहनत करने की अपील की। कुछ समय बाद मगध राज्य में फिर से अन्न की फसलें उगने लगीं और खाद्य संकट दूर हो गया।

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मांसाहार धर्म, नैतिकता और स्वास्थ्य

मांसाहार से बुद्धि का नाश

धर्मशास्त्रों में मांसाहार को तामसिक माना गया है, जो न केवल शरीर को बल्कि मन और बुद्धि को भी दूषित करता है। यह शारीरिक ऊर्जा को कम करता है और मानसिक शांति में बाधा उत्पन्न करता है। मांसाहार से न केवल आक्रामकता बढ़ती है, बल्कि आत्मसंयम और आत्मानुशासन में भी कमी आती है।

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आधुनिक संदर्भ में मांसाहार

आज की आधुनिक जीवनशैली में मांसाहार को पौष्टिक भोजन के रूप में देखा जाता है। हालांकि, अनेक अध्ययन यह साबित कर चुके हैं कि मांसाहार कई बीमारियों जैसे हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, और कैंसर का कारण भी बन सकता है। मांस का अत्यधिक सेवन शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों के लिए हानिकारक हो सकता है। इसके विपरीत, शाकाहार को जीवनशैली का एक स्वस्थ और नैतिक विकल्प माना गया है।

श्रीकृष्ण की कथा का नैतिक संदेश

इस कथा से हमें यह सीख मिलती है कि मांसाहार केवल शारीरिक स्वास्थ्य के लिए ही नहीं, बल्कि आत्मिक उन्नति के लिए भी हानिकारक है। किसी जीव की जान लेना और उसका मांस खाना न केवल उसके अधिकार का हनन है, बल्कि यह एक पाप भी है। श्रीकृष्ण के उपदेश हमें यह बताते हैं कि मानव जीवन में सभी जीवों का सम्मान किया जाना चाहिए और हमें अपने भोजन को ऐसी आदतों तक सीमित रखना चाहिए जो प्रकृति और धर्म दोनों के अनुरूप हों।

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मांसाहार चाहे किसी भी रूप में किया जाए, वह न तो सस्ता है और न ही नैतिक। यह न केवल हमारे स्वास्थ्य पर, बल्कि हमारे समाज और पर्यावरण पर भी गहरा प्रभाव डालता है। श्रीकृष्ण की कथा हमें सिखाती है कि जीवन के हर जीव का सम्मान करना और शाकाहारी जीवनशैली अपनाना न केवल धर्म सम्मत है, बल्कि यह एक स्वस्थ और संतुलित जीवन के लिए भी अनिवार्य है।

 

 


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Content Editor

Priya Yadav

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