World Autism Day: डांट से नहीं प्यार से करें ऑटिस्टिक बच्चे की देखभाल
punjabkesari.in Friday, Apr 02, 2021 - 04:22 PM (IST)
ऑटिज़्म बच्चों में होने वाली एक मानसिक बीमारी है। इसके लक्षण आमतौर पर 1 से 3 साल के बीच नजर आने लगते हैं। इस अवस्था में बच्चे जल्दी से दूसरों से कॉन्टेक्ट नहीं कर पाते। साथ ही उन्हें बोलने व समझने में मुश्किल आती है। इन बच्चों को संभालने में खास देखरेख की जरूरत होती है। तो चलिए आज 'World Autism Day' पर हम आपको ऐसे बच्चों का ख्याल रखने के कुछ टिप्स बताते हैं...
धीरे-धीरे व प्यार सिखाएं
ऑटिज़्म से पीड़ित बच्चे ऑटिस्टिक कहलाते हैं। इनकी समझनी की शक्ति कम होती है। ऐसे में इन बच्चों को हमेशा धीरे-धीरे व प्यार से बात समझानी चाहिए। उनके सामने आसान शब्दों को बार-बार दोहराना चाहिए। ताकि वे इसे समझने के साथ बोल सके।
इशारों में करें बात
इन बच्चों को बोलने में दिक्कतें आती है। ऐसे में इन्हें इशारों के एक-एक शब्द सिखाना चाहिए। इसके साथ इन्हें फोटो के जरिए भी चीजों समझाई जा सकती है। इसके अलावा आजकल बहुत से स्पैशल स्कूल है। वहां पर इन्हें स्पीच थेरेपी द्वारा सिखाया जाता है।
सब्र से लें काम
ऐसे बच्चों को समझने व चीजें सिखाना काफी मुश्किल होता है। ऐसे में इस दौरान पेरेंट्स को उसे डांटने की जगह शांत मन से काम लेना चाहिए। असल में, ऊंची आवाज सुनने से बच्चे के दिमाग पर गलत प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए ऐसे बच्चों से हमेशा प्यार व शांति से ही बात करें।
रखें तनावमुक्त
ऑटिस्टिक बच्चे को हमेशा खुश रखने की कोशिश करें। तनाव में आने से बच्चे के दिमाग पर गहरा व बुरा असर हो सकता है। ऐसे में जरूरी है कि पेरेंट्स अपने स्पेशल बच्चों को समय-समय पर बाहर घूमाने ले जाएं। साथ ही इनकी तुलना कभी भी सामान्य बच्चों से ना करें।
आउटडोर गेम्स
गेम्स खेलने से बच्चे का शारीरिक व मानसिक विकास बेहतर तरीके से होता है। ऐसे में इन बच्चों को भी बाहर खेलने के लिए ले जाएं। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ने के साथ चीजों को समझनी की शक्ति मिलेगी।
हर वक्त रखें नजर
ऐसे बच्चों को समझ कम होती है। ऐसे में ये कब क्या कर ले इसका कोई पता नहीं लगा सकता है। इसके लिए जिन घरों में भी ऐसा बच्चा है उन्हें उनका हर समय ध्यान रखना चाहिए। वे किसी बात से गुस्सा होकर चिल्ला भी सकते हैं। ऐसे में उन्हें प्यार व शांत मन से समझाएं।
समय-समय पर दें दवाइयां
अगर आपके बच्चे की दवाई चल रही है तो उन्हें समय-समय पर इसकी डोज दें। साथ ही जरूरत पड़ने पर बाल मनोचिकित्सक से संपर्क करें।