गणेश का रूप मानकर लोग झुकाते रहे सिर, लेकिन KGMU के डॉक्टरों ने दी बच्चे को नई ज़िंदगी

punjabkesari.in Monday, Nov 10, 2025 - 12:58 PM (IST)

नारी डेस्क:  अंधविश्वास और विज्ञान की लड़ाई में एक 14 साल के बच्चे की कहानी ने इंसानियत को झकझोर दिया। कुशीनगर के गणेश नाम के इस बच्चे को गांव वाले भगवान गणेश का अवतार मानकर पूजा करते थे, क्योंकि उसकी नाक पर एक बड़ा उभार था। लेकिन यह उभार किसी चमत्कार का नहीं, बल्कि एक दुर्लभ जन्मजात बीमारी का परिणाम था। जब तक परिवार को यह सच्चाई समझ आई, तब तक 12 साल बीत चुके थे। अंततः लखनऊ के KGMU के डॉक्टरों ने इस बच्चे की सफल सर्जरी कर उसे नई जिंदगी दी।

  अंधविश्वास की छाया में बचपन

कुशीनगर जिले के एक छोटे से गांव में गणेश नाम के इस बच्चे का जन्म हुआ तो उसकी नाक पर एक बड़ा उभार था। गांव वालों ने इसे भगवान गणेश का आशीर्वाद माना और पूजा शुरू कर दी। परिवार वालों ने भी इलाज करवाने की जगह बच्चे को “दैविक रूप” मान लिया। धीरे-धीरे समय के साथ यह उभार बढ़ता गया और गणेश का चेहरा विकृत होने लगा। स्कूल में बच्चे उसका मजाक उड़ाते, जिससे वह मानसिक रूप से भी परेशान रहने लगा। लेकिन परिवार ने इलाज करवाने की हिम्मत नहीं दिखाई, क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं वे “भगवान” का अपमान न कर दें।

 डॉक्टरों ने बताया  यह है ‘नासोएथमॉइडल एन्सेफेलोसील’

आख़िरकार एक परिचित की सलाह पर गणेश के पिता उसे किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU), लखनऊ लेकर आए। यहां जांच और सीटी स्कैन के बाद डॉक्टरों ने बताया कि बच्चे को नासोएथमॉइडल एन्सेफेलोसील नामक एक दुर्लभ जन्मजात विकार है। इसमें मस्तिष्क का कुछ हिस्सा खोपड़ी की हड्डी में बने छेद से बाहर आ जाता है, जिससे नाक और माथे के बीच की हड्डियां चौड़ी हो जाती हैं। इस स्थिति को हाइपरटेलोरिज्म कहा जाता है।

डॉक्टरों ने किया आठ घंटे लंबा जटिल ऑपरेशन

 प्लास्टिक सर्जरी और न्यूरोसर्जरी विभाग की संयुक्त टीम ने गणेश का ऑपरेशन किया। यह सर्जरी लगभग आठ घंटे तक चली।

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ऑपरेशन के दौरान 

न्यूरोसर्जरी टीम ने खोपड़ी के अंदर की संरचनाओं को सुरक्षित रखते हुए दोष की मरम्मत की। फिर प्लास्टिक सर्जरी टीम ने माथे की हड्डी का एक हिस्सा निकालकर नाक के उभरे हिस्से को हटाया। चेहरे की हड्डियों को नया आकार देकर नाक को सामान्य रूप दिया गया। डॉक्टरों के अनुसार, दीपावली से ठीक पहले गणेश का चेहरा सामान्य हो गया और अब वह नई जिंदगी जी रहा है।

आयुष्मान योजना के तहत निःशुल्क हुआ इलाज

डॉ. ने बताया कि गणेश का पूरा इलाज आयुष्मान भारत योजना के तहत बिल्कुल निःशुल्क किया गया। उन्होंने बताया, “ऐसी सर्जरी छोटे अस्पतालों में संभव नहीं होती। बड़े अस्पतालों में इसका खर्च लगभग 8 लाख रुपये तक होता है।” गणेश के इलाज का एक चरण अभी बाकी है  करीब 5-6 महीने बाद उसकी नाक को अंतिम आकार देने के लिए एक और सर्जरी की जाएगी।

परिवार बोला  “हमारे लिए असली भगवान तो डॉक्टर हैं”

ऑपरेशन के बाद गणेश के परिवार ने भावुक होकर कहा, “हमने अपने बेटे को भगवान माना था, लेकिन असली भगवान तो ये डॉक्टर हैं जिन्होंने हमारे बेटे को नई जिंदगी दी।”डॉ.  ने कहा कि यह सर्जरी सिर्फ चिकित्सा सफलता नहीं, बल्कि अंधविश्वास से ऊपर उठने का संदेश भी है। उन्होंने कहा,

“अगर परिवार समय पर इलाज करवा लेता, तो बच्चे को वर्षों तक मानसिक और शारीरिक तकलीफ नहीं झेलनी पड़ती।”

यह कहानी सिर्फ एक बच्चे के इलाज की नहीं, बल्कि एक जागरूकता का प्रतीक है। जहां अंधविश्वास और विज्ञान आमने-सामने खड़े होते हैं, वहां KGMU के डॉक्टरों ने साबित कर दिया कि आस्था से बड़ा होता है ज्ञान और समय पर इलाज।  


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Content Editor

Priya Yadav

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