नवरात्रि में भक्तों की मुरादें पूरी करने वाला अनोखा मंदिर, राजा की चिता पर बना काली मंदिर
punjabkesari.in Sunday, Oct 06, 2024 - 03:17 PM (IST)
नारी डेस्क: हिन्दू धर्म में श्मशान भूमि को शुभ कार्यों के लिए अनुपयुक्त माना गया है। शास्त्रों के अनुसार, केवल भगवान शिव ही श्मशान में निवास करते हैं। लेकिन बिहार के दरभंगा जिले में एक ऐसा मंदिर स्थित है, जो इस मान्यता को चुनौती देता है। यह मंदिर न केवल राजा की चिता पर बना हुआ है, बल्कि यहां विवाह, मुंडन और अन्य शुभ कार्य भी किए जाते हैं। यह अनोखा मंदिर मां काली को समर्पित है, जिसे स्थानीय लोग रामेश्वरी श्यामा माई मंदिर के नाम से जानते हैं।
मंदिर का निर्माण और इतिहास
इस मंदिर का निर्माण महाराज रामेश्वर सिंह की मृत्यु के बाद हुआ था। वे मां काली के प्रबल भक्त थे। जब उनकी मृत्यु हुई, तब उनका अंतिम संस्कार दरभंगा के श्मशान घाट में किया गया था। बाद में, उसी चिता पर उनकी श्रद्धा और भक्ति को समर्पित एक मंदिर का निर्माण किया गया। मंदिर के निर्माण से जुड़ी यह कहानी जितनी अनोखी है, उतनी ही अद्भुत यहां की आस्था भी है।
श्यामा माई मंदिर की मान्यता
दरभंगा के यूनिवर्सिटी कैंपस में स्थित इस मंदिर को लेकर कई धार्मिक मान्यताएं प्रचलित हैं। भक्तों का मानना है कि नवरात्रि के दौरान यहां की गई पूजा विशेष रूप से फलदायी होती है। जो भी भक्त मां काली के सामने अपनी मुराद रखता है, उसकी हर इच्छा पूरी हो जाती है। मंदिर में रोजाना हजारों श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं, लेकिन नवरात्रि के समय यह संख्या और भी बढ़ जाती है।
इस मंदिर की एक विशेष प्रथा भी है, जो सदियों से चली आ रही है—यहां पशु बलि दी जाती है। यह मान्यता है कि माता काली पशुबलि से प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूर करती हैं। हालांकि, यह प्रथा समय के साथ कम हो गई है, लेकिन आज भी कुछ जगहों पर इस परंपरा का पालन किया जाता है।
तंत्र साधना और मंदिर की खासियत
कहा जाता है कि इस मंदिर में पहले तंत्र साधना भी की जाती थी। तंत्र साधकों का यह विश्वास था कि मां काली उन्हें अपनी शक्तियों से आशीर्वाद देती हैं। हालांकि, समय के साथ इस प्रकार की साधनाएं वर्जित कर दी गईं और अब यहां केवल वैदिक पद्धतियों के अनुसार पूजा-अर्चना होती है।
इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि शास्त्रों के अनुसार, श्मशान भूमि में कोई शुभ कार्य नहीं किया जा सकता। इसके बावजूद, इस मंदिर में सालों भर विवाह, मुंडन और उपनयन जैसे शुभ कार्य होते हैं। यह एक चमत्कारिक तथ्य है कि यहां की गई पूजा-अर्चना शुभ मानी जाती है, भले ही मंदिर श्मशान भूमि पर बना हो।
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श्यामा माई मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा
मिथिला रामायण में इस मंदिर और इसके महत्व का उल्लेख मिलता है। एक प्राचीन कथा के अनुसार, सहस्रानन नामक एक राक्षस था, जो रावण का बड़ा भाई था। रावण के वध के बाद माता सीता ने भगवान श्रीराम से कहा कि जब तक सहस्रानन का अंत नहीं होता, तब तक युद्ध समाप्त नहीं हो सकता।
श्रीराम सहस्रानन से युद्ध करने निकल पड़े, लेकिन युद्ध के दौरान सहस्रानन के बाण से श्रीराम घायल हो गए। यह देखकर माता सीता अत्यधिक क्रोधित हो गईं और उन्होंने स्वयं सहस्रानन का वध कर दिया। लेकिन सहस्रानन के वध के बाद भी माता सीता का क्रोध शांत नहीं हुआ, और उनके क्रोध के कारण उनका रंग काला हो गया।
माता सीता का काली रूप
माता सीता के क्रोधित रूप को शांत करने के लिए भगवान शिव वहां आए और उनसे निवेदन किया कि वे शांत हो जाएं। लेकिन माता सीता ने अपने काली रूप में भगवान शिव के सीने पर पैर रख दिया। इसके बाद ही उनका क्रोध शांत हुआ और वे अपने मूल रूप में लौट आईं।
दरभंगा के श्यामा माई मंदिर में माता सीता के इसी काली रूप की पूजा की जाती है। यह मंदिर इसलिए भी विशेष है क्योंकि यहां मां काली को शांत करने के लिए भगवान शिव के साथ उनकी इस लीला को स्मरण किया जाता है।
दरभंगा का श्यामा माई मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह मानव जीवन के संघर्ष और भक्तों की अटूट श्रद्धा की भी मिसाल है। महाराज रामेश्वर सिंह की चिता पर बने इस मंदिर में, जहां तांत्रिक साधनाओं से लेकर वैदिक पूजा-अर्चना तक का सफर देखा जा सकता है, यह मंदिर भक्तों के लिए एक आस्था का केंद्र बन गया है। यहां की हर कथा, हर परंपरा, और हर मान्यता अद्वितीय है, जो इस मंदिर को खास बनाती है।