जगन्नाथ पुरी में आज भी क्यों एकादशी उल्टी लटकी है, जानिए पूरा कारण

punjabkesari.in Friday, Sep 12, 2025 - 12:47 PM (IST)

नारी डेस्क : उड़ीसा के पुरी में स्थित जगन्नाथ धाम न केवल अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसके रहस्य और चमत्कारिक घटनाओं के लिए भी दुनिया भर में जाना जाता है। कहा जाता है कि इस मंदिर में दर्शन मात्र से ही कुंडली में स्थित ग्रहों की दशा सुधर जाती है। पुरी के इस मंदिर से जुड़ी कई रोचक कथाएं हैं, जिनमें से एक है “उल्टी एकादशी” की परंपरा। आइए जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कथा।

उल्टी एकादशी की खास परंपरा

जगन्नाथ पुरी में हर साल एकादशी के दिन एक अद्भुत परंपरा देखी जाती है। भारत के अन्य हिस्सों में एकादशी के दिन लोग अन्न या चावल ग्रहण नहीं करते, लेकिन पुरी में उस दिन जगन्नाथ स्वामी को चावल का भोग लगाया जाता है और यही भोग भक्तों को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। इसे उल्टी एकादशी कहा जाता है क्योंकि परंपरा और नियम सामान्य एकादशी के विपरीत हैं।

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पौराणिक कथा जो इस परंपरा के पीछे है

कहा जाता है कि यह परंपरा ब्रह्मा जी से जुड़ी एक कथा पर आधारित है। एक बार ब्रह्मा जी पुरी आए ताकि वे जगन्नाथ स्वामी का प्रसाद ग्रहण कर सकें। लेकिन जब वे वहां पहुंचे, तो मंदिर का मुख्य प्रसाद पहले ही समाप्त हो चुका था। केवल एक पत्ते पर बचे हुए बासी चावल के दाने थे, जिन्हें एक कुत्ता चाट रहा था। भक्ति और श्रद्धा में डूबे ब्रह्मा जी ने उस कुत्ते के साथ बैठकर पत्ते में से चावल खाना शुरू कर दिया। तभी एकादशी प्रकट हुई और उन्होंने कहा, आप आज एकादशी के दिन चावल क्यों खा रहे हैं?

इस पर जगन्नाथ स्वामी प्रकट हुए और उन्होंने कहा,
"जहां सच्ची भक्ति हो, वहां नियम लागू नहीं होते।"

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तब भगवान जगन्नाथ ने यह आदेश दिया कि मेरे महाप्रसाद पर एकादशी या व्रत का बंधन नहीं रहेगा। और उसी समय उन्होंने मंदिर के पीछे एकादशी को उल्टा लटका दिया, ताकि यह संकेत रहे कि पुरी में इस दिन चावल खाना पाप नहीं है।

क्या सिखाती है यह परंपरा?

इस कथा और परंपरा से यह शिक्षा मिलती है कि सच्ची भक्ति में नियम और बंधन बाधा नहीं बन सकते। पुरी की उल्टी एकादशी यह दर्शाती है कि भगवान के प्रति सच्चे प्रेम और श्रद्धा में कोई रोक-टोक नहीं हो सकती। आज भी पुरी के मंदिर में इस परंपरा का पालन किया जाता है और भक्त गर्व के साथ महाप्रसाद ग्रहण करते हैं।


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Monika

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