क्या काशी में नंदी को है भोलेनाथ का इंतजार? जानिए भगवान शिव की इस सवारी की पूरी सच्चाई

punjabkesari.in Thursday, May 19, 2022 - 11:14 AM (IST)

काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद मुद्दे पर जारी विवाद के बीच सोशल मीडिया पर भी चर्चाओं का बाजार गर्म है। इसी बीच एक तस्वीर तेजी से वायरल हो रही है, जिस पर लोगाें की नजरें टिक गई है। इस तस्वीर में एक तरफ भगवान शिव के वाहन नंदी की एक प्रतिमा है, वहीं दूसरी ओर ज्ञानवापी मस्जिद दिखाई जा रही है। दावा किया जा रहा है कि नंदी की यह प्रतिमा उस काशी विश्वनाथ मंदिर का हिस्सा है, जहां अब मस्जिद खड़ी है।

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नंदी की मूर्ति  को लेकर किए जा रहे दावे

काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़े लोगों ने तो नंदी की मूर्ति को ही सबसे बड़ा गवाह भी बना दिया है। इस तस्वीर को शेयर कर लिखा जा रहा है कि- "काशी विश्वनाथ मंदिर के लिए नंदी का लंबा इंतजार, नंदी का चेहरा हमेशा शिवलिंग की ओर होता है। ठीक उसी तरह नंदी की ये प्रतिमा का चेहरा भी उस तरफ है, जहां अभी ज्ञानवापी मस्जिद है, तो यही मूल विश्वनाथ मंदिर है। इस्लामिक-राज में उस मूल मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई दी गई थी, और तब से मुसलमान मस्जिद में नमाज अदा करते हैं, जबकि सदियों से नंदी दरवाजे की तरफ देख रहे हैं, जो अपने मालिक के आने का इंतजार करते हैं"।

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काशी विश्वनाथ मंदिर की नहीं है ये  मूर्ति

हालांकि इस तस्वीर की सच्चाई कुछ और ही है। इस तस्वीर में दिखाई गई नंदी की मूर्ति वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर की नहीं, बल्कि यह महाराष्ट्र के काशी विश्वेश्वर मंदिर की है। इस तस्वीर को इंटरनेट पर जब खोजा गया, तब इस पोस्ट की असलियत सामने आई। इस सब के बीच यह जानना बेहद जरूरी है कि शिव की मूर्ति के सामने या मंदिर के बाहर शिव के वाहन नंदी की मूर्ति सदैव स्थापित क्यों होती है चलिए जानते हैं पूरी कहानी

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कैसे प्रकट हुए नंदी?

शिवपुराण की कथा के अनुसार शिलाद मुनि के ब्रह्मचारी हो जाने के कारण वंश समाप्त न होता देख चिंता व्यक्त की। शिलाद मुनि ने संतान की कामना इंद्र देव से की और मृत्यु से हीन पुत्र का वरदान मांगा। लेकिन इंद्र ने यह वरदान देने में असर्मथता जताई और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कहा। भगवान शंकर शिलाद मुनि के कठोर तपस्या से प्रसन्न हुए स्वयं शिलाद के पुत्र रूप में प्रकट होने का वरदान दिया और नंदी के रूप में प्रकट हुए।

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भगवान शिव ने दिया था नंदी को वरदान

कथा के अनुसार  जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन हुआ था उस वक्त भगवान शिव ने हलाहल विष पीकर इस संसार को बचाया था, विष की कुछ बूंदे जमीन पर गिर गई थीं, जिसे नंदी ने जीभ से चाट लिया था। नंदी का ये समर्पण देखकर भगवान शिव ने उन्हें अपने सबसे बड़े भक्त की उपाधि दी और ये आशीर्वाद दिया कि उनके दर्शन से पहले लोग नंदी के दर्शन करेंगे।

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हर शिव मंदिर में नंदी की होती है स्थापना

नंदी को भक्ति और शक्ति के प्रतीक भी माना गया है। कहा जाता है कि जो भी भगवान भोले से मिलना चाहता है नंदी  पहले उसकी भक्ति की परीक्षा लेते हैं और उसके बाद ही शिव कृपा के मार्ग खुलते हैं। भोलेनाथ के दर्शन करने से पहले नंदी के कान में अपनी मनोकामना कहने की परंपरा है। हर शिव मंदिर में शिवजी के सामने नंदी की स्थापना की जाती है। हालांकि नासिक शहर के प्रसिद्ध पंचवटी स्थल में गोदावरी तट के पास एक ऐसा शिवमंदिर है जिसमें नंदी नहीं है। अपनी तरह का यह एक अकेला शिवमंदिर है।

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क्या है ज्ञानवापी विवाद

हिन्दू पक्ष का दावा है कि ज्ञानवापी मस्जिद के वजू खाने में शिवलिंग मिला है। हालांकि मुस्लिम पक्ष शिवलिंग मिलने के दावे को गलत ठहरा रहा है। उसका कहना है कि मुगल काल की मस्जिदों में वजू खाने के अंदर फव्वारा लगाए जाने की परंपरा रही है। उसी का एक पत्थर आज सर्वे में मिला है, जिसे शिवलिंग बताया जा रहा है।

 


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Content Writer

vasudha

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