अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस:  दुनिया का टाइगर देश है भारत, 50 साल में  268 से 3167 पहुंच गई बाघों की संख्या

punjabkesari.in Saturday, Jul 29, 2023 - 10:17 AM (IST)

भारत में बाघों की संख्या बढ़ने के चलते उत्साह और चिंताएं दोनों बढ़ रही हैं। एक तरफ जहां बाघों की संख्या में गिरावट के बाद वृद्धि होना भारत के लिए राहत लेकर आया है, तो दूसरी ओर विकास बनाम पारिस्थितिकी को लेकर छिड़ी बहस और तेज हो गई है। साल 2022 की गणना के अनुसार भारत में बाघों की संख्या 3,167 है। दुनियाभर में जितने बाघ हैं, उनमें से 75 प्रतिशत भारत में हैं। एक समय इनके जल्द विलुप्त होने का खतरा पैदा हो गया था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। 

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‘प्रोजेक्ट टाइगर' के बाद बाघाें की बढ़ी संख्या

ऐसा 50 साल पहले 1973 में शुरू हुए ‘प्रोजेक्ट टाइगर' की वजह से संभव हो पाया है। जिस समय यह परियोजना शुरू हुई, उस वक्त बाघों की संख्या महज 268 थी। शनिवार को मनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस से पहले विशेषज्ञों ने कहा कि हालांकि यह बदलाव वन्यजीव स्थलों में बढ़ते मानवीय हस्तक्षेप, वन्यजीवों के सिकुड़ते ठिकाने, भारत के वनक्षेत्र की खराब होती गुणवत्ता और नीतियों में परिवर्तन के बीच आया है। वन्यजीव संरक्षणवादी प्रेरणा बिंद्रा ने  कहा- “हमारे जनसंख्या घनत्व और अन्य दबावों के बावजूद, बाघों के संरक्षण की यह उपलब्धि आसान नहीं है और प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत के बाद से यह एक क्रमिक प्रक्रिया रही है। हमें इस बात का गर्व हो सकता है कि भारत में बाघों की संख्या बढ़ रही है, जबकि कुछ देशों में ये विलुप्त हो चुके हैं। 


बाघों की जगह हो रही है कम

इस सफलता का श्रेय हमारे लोगों की सहनशीलता, राजनीतिक इच्छाशक्ति और एक मजबूत कानूनी व नीतिगत ढांचे को दिया जा सकता है।”  हालांकि   बाघ जैसे शिकारी अपने शिकार की तलाश में उन क्षेत्रों से बाहर जा सकते हैं, जहां वे पैदा हुए हैं। अपने मूल क्षेत्र से बाहर जाने की यह स्वाभाविक प्रवृत्ति तब प्रभावित होती है जब वन्यजीवों के ठिकानों के आसपास राजमार्ग, रेलवे, खदानें, बाड़ वाले रिसॉर्ट और बगीचे बनाए जाते हैं। मानव-बाघ संघर्ष आम तौर पर तब होता है जब बाघ का शिकार ख़त्म हो जाता है और बाघों के रहने के लिए कोई जगह नहीं होती (गलियारे खत्म हो जाते हैं)। इसके अलावा, संघर्ष तब होता है जब मनुष्य उन जंगलों में जाते हैं जहां बाघों का घनत्व अधिक है।'

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क्यों मनाया जाता है अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस

साल 2010 में रूस के पीटर्सबर्ग में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में प्रत्येक वर्ष की 29 जुलाई को विश्व बाघ दिवस मनाने का फैसला लिया गया। इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में बाघों की आबादी वाले 13 देशों ने हिस्सा लिया। बाघों की विलुप्त होती प्रजातियों पर चिंता जताते हुए बाघों की संख्या 2022 तक दोगुनी करने का लक्ष्य बनाया गया था। इस दिन ज्यादा से ज्यादा लोगों को बाघों के बारे में जानकारी दी जाती है और उनके संरक्षण के लिए जागरूक किया जाता है। 

यह है इस साल की थीम

अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस 2023 की थीम है “बाघों के साथ एक भविष्य: पारिस्थितिकी तंत्र के लिए काम करना”यह थीम बाघों के लिए एक बेहतर भविष्य सुनिश्चित करने  के लिए उनके इलाकों को संरक्षित करने और पुनर्स्थापित करने के महत्व पर प्रकाश डालती है।

परंपरागत रूप से बाघों की आठ उप-प्रजातियों को मान्यता दी गई है, जिनमें से तीन विलुप्त हो चुकी हैं।

बंगाल टाइगर्स: भारतीय उपमहाद्वीप
कैस्पियन बाघ: मध्य और पश्चिम एशिया के माध्यम से तुर्की (वलुप्त)
अमूर बाघ: रूस और चीन के अमूर नदी क्षेत्र और उत्तर कोरिया
जावन बाघ: जावा, इंडोनेशिया (विलुप्त)
दक्षिण चीन बाघ: दक्षिण मध्य चीन
बाली बाघ: बाली, इंडोनेशिया (विलुप्त)
सुमात्रन बाघ: सुमात्रा, इंडोनेशिया
भारत-चीनी बाघ: महाद्वीपीय दक्षिण-पूर्व एशिया।

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4 साल में बाघों की होती है जनगणना 

भारत में हर 4 साल में बाघों की जनगणना की जाती है, अब तो इसके लिए 14000 कैमरा ट्रैप का इस्तेमाल किया जाता है। देश में सबसे ज्यादा बाघ कर्नाटक में हैं. इसके बाद मध्य प्रदेश और फिर उत्तराखंड में हैं। इसके बाद तमिलनाडु, महाराष्ट्र असम, केरल, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, ओडिशा, बिहार और अरुणाचल प्रदेश में बाघ हैं। 


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vasudha

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