88 वर्षीय Usha Gupta की कहानी: पति के जाने के बाद अकेली पड़ी तो काम आया ''अचार का हुनर''
punjabkesari.in Tuesday, Mar 08, 2022 - 03:33 PM (IST)
कोरोना महामारी के कारण कई परिवारों की जिंदगी उथल-पथल हो गई। कई लोगों की नौकरी चली गई, तो किसी का बिजनेस ठप्प हो गया। वहीं, अनगिनत परिवारों ने इस जानलेवा बीमारी के कारण अपनों को खो दिया तो बहुत से लोग अपनों को खोने के बाद अकेले भी हो गए। फिर भी कुछ ऐसी कहानियां है जो अपनों को खोने व अकेले होने के बाद भी गम में नहीं डूबी बल्कि हर किसी के लिए मिसाल व हौंसला बनकर सामने आई। ऐसी ही एक कहानी है 88 वर्षीय नानी, उषा गुप्ता की, जिन्होंने कोरोना के कारण अपने पति को खो दिया लेकिन आज वह अपने अचार के बिजनेस से हर किसी को इंस्पिरेशन दे रही हैं। चलिए आपको बताते हैं उनकी इंस्पायरिंग स्टोरी...
कोरोना के कारण हुई पति की मौत
कोरोना की दूसरी लहर में उषा जी और उनके पति दोनों कोविड-19 की चपेट में आए। दोनों को 2 बार ऑक्सीजन की कमी हुई लेकिन तब उनके पति की तबीयत ज्यादा बिगड़ गई। ऑक्सीजन की कमी के चलते उषा के पति की मौत हो गई।
'एक साथ हुआ कोरोना लेकिन वो मुझे अकेला छोड़ गए'
एक इंटरव्यू के दौरान उषा ने बताया, 'अप्रैल, 2021 में मैं और मेरे पति कोविड पॉजिटिव पाए गए। हमें अस्पताल में ऑक्सीजन स्पोर्ट पर रखा गया। उस दौरान मैंने अपनी आंखों के सामने कई युवाओं को तड़पते देखा लेकिन मैं अपने पति से कहती था कि मैं उनके साथ हूं। अस्पताल में भर्ती होने के 3 हफ्ते बाद मैंने उन्हें खो दिया। वो 93 साल के थे और मैं 88 साल की हूं। 6 दशक एक-साथ सुख-दुख बिताने के बाद वो मुझे अकेला छोड़ गए। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उनके बिना मैं बाकी जिंदगी किस तरह बिताऊंगी।'
'मैंने कोविड-19 को कई लोगों को बुरी तरह प्रभावित करते देखा'
उषा जी ने बताया कि अस्पताल में रहते हुए उन्होंने लोगों को बेबस और लाचार देखा। ऐसा लग रहा था मानों वो किसी युद्ध में हो। हर एक शख्स के चेहरे पर घबराहट थी। पति की मौत के बाद उनके मन में खालीपन का डर घर करने लगा। उषा ने बताया, 'मैंने देखा परिवारों को कोविड-19 कितनी बुरी तरह प्रभावित कर रहा है, खासतौर पर वो जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी।'
नातिन डॉ. राधिका बत्रा ने मिली प्रेरणा
कोविड-19 रिलीज वर्क के लिए उषा को उनकी नातिन डॉ. राधिका बत्रा ने प्रेरणा मिली। डॉ. राधिका के शब्दों में, 'हम नानी के हाथ का स्वादिष्ट खाना खाते हुए बड़े हुए थे। मुझे पता था कि ऐसा करने से न सिर्फ वो व्यस्त रहेंगी बल्कि दूसरों की मदद भी कर पाएंगी।'
फिर हुई Pickled With Love की शुरुआत
नातिन की प्रेरणा और खुद के अंदर कुछ कर दिखाने का जज्बा लिए उषा ने अचार और चटनी बनाना शुरू किया और इस तरह Pickled With Love की शुरुआत हुई। डॉ. राधिका ने अचार और चटनी बिजनेस का जानकारी से लेकर बोतल के लेबल का सारा काम संभाला और सिर्फ 2 दिन में इस सोच को सच्चाई में बदल दिया। नानी यानि उषा जी ने शेफ की टोपी पहनी और अपने काम में लग गई।
धीरे-धीरे बड़ा बिजनेस
शुरुआत में उन्हें सिर्फ दोस्तों और रिश्तेदारों से ऑर्डर आते थे लेकिन धीरे-धीरे उनका बिजनेस बड़ा। अब अचार के लिए आम काटने से लेकर सफाई में कई वर्कर्स उनकी मदद करते हैं लेकिन अचार खुद उषा जी ही बनाती हैं। एक बार में वह करीब 10 कि.ग्रा. आम का अचार बना लेती हैं और उसके बाद ही दूसरा बैच शुरू करती हैं।
अचार के साथ भेजती हैं एक खास नोट
200 ग्राम के बोतल की कीमत 150 रु हैं, जिसके साथ उषा के हाथ का एक खास नोट लगा होता है। बता दें कि उषा अचार के बिजनेस से सिर्फ अपना अकेलापन ही दूर नहीं कर रहीं बल्कि कई बच्चों की मदद भी कर रही हैं। बिजनेस में कमाए गए मुनाफे का हिस्सा वह NGO को देती है, जो बच्चों के लिए काम करती है।
NGO में जाता है बिजनेस का सारा मुनाफा
एक महीने के अंदर ही उषा के 200 से ज्यादा बोतल बिक गए, जिससे उन्होंने 20 हजार रुपए जमा किए। कई बार उन्होंने जमा किए पैसों से अब तक 60 हजार गरीबों को खाना भी खिलाया है। पिछले एक साल से लोगों की मदद कर रहे इस परिवार ने इसके अलावा उन्होंने मणीपुर बॉर्डर पर एक कोविड सेंटर बनाने में भी मदद की, जहां को पीपीआई किट, मास्क और दवाइयां आदि भेजते रहते हैं।
बनाती हैं 3 तरह की अचार व चटनी
उनकी नातिन ने बताया कि पीठ दर्द जैसी शिकायत के चलते इस उम्र में बिल्कुल नया बिजनेस शुरु करना आसान नहीं था लेकिन जब उन्हें पता चला कि उनकी मेहनत से किसी की मदद हो रही है तो उनमें और भी हौंसला आ गया। कई बार तो उन्हें दवाइयां खाकर भी काम करना पड़ता है। उषा बताती हैं, 'मैं 3 तरह की अचार व चटनी बनाती हूं, जिसमें खट्टा आम का अचार, किसे आम की चटनी और गुलाबी मीठा अचार शामिल होता है। जब लोगों को इसका टेस्ट बेहद पसंद आया तो उनकी फरमाइशें आने लगीं। अब मिक्स्ड वेज अचार और इमली चटनी की सबसे ज्यादा मांग है।'
कई भूखे-गरीब लोगों को करवाया भोजन
एक महीने के अंदर ही उषा के 200 से ज्यादा बोतल बिक गए हैं, जिससे उन्होंने 20 हजार रुपए जमा कर लिए हैं। कई बार उन्होंने जमा किए पैसों से अब तक 60 हजार गरीबों को खाना भी खिलाया है। पिछले एक साल से लोगों की मदद कर रहे इस परिवार ने इसके अलावा उन्होंने मणीपुर बॉर्डर पर एक कोविड सेंटर बनाने में भी मदद की, जहां को पीपीआई किट, मास्क और दवाइयां आदि भेजते रहते हैं।
उषा जी ने इस बिजनेस से ना सिर्फ अपना अकेलापन दूर किया बल्कि वो कई लोगों के लिए मदद और रोशनी बनकर भी आईं। उनकी इस स्टोरी से हम सभी को सीख मिलती है - 'हिम्मत ना हारें, जिंदगी कोई न कोई रास्ता जरूर दिखाएगी'।