कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए निकले भारतीय फंसे नेपाल में, खाने-पीने को भी नहीं मिल रहा कुछ
punjabkesari.in Thursday, Sep 11, 2025 - 10:26 AM (IST)

नारी डेस्क: कैलाश मानसरोवर यात्रा पर गए अयोध्या के कम से कम नौ तीर्थयात्री कथित भ्रष्टाचार के खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शन के कारण नेपाल में फंस गए हैं। अयोध्या के जिला मजिस्ट्रेट निखिल टीकाराम फुंडे ने यह जानकारी दी, उन्होंने उन्होंने केंद्र से वापसी की उड़ानों की व्यवस्था करने का अनुरोध किया, क्योंकि उनका प्रवास सीमा से बहुत दूर है, जिससे अशांति के बीच सड़क मार्ग से यात्रा करना मुश्किल हो रहा है।
भारतीय नागरिकों के लिए एक एडवाइजरी जारी
जिला मजिस्ट्रेट ने कहा- "कुछ व्यापारी आज मुझसे मिलने आए और उन्होंने बताया कि कुछ तीर्थयात्री चीन गए थे। चूंकि उनका प्रवास सीमा से बहुत दूर है, इसलिए उनकी वापसी का एकमात्र विकल्प हवाई जहाज़ से ही है। मैं सरकार से व्यवस्था करने का अनुरोध करूंगा।" श्रद्धालुओं को हिलसा से चॉपर द्वारा सेमीकोट जाना था। वहां से नेपालगंज होते हुए बहराइच और अयोध्या पहुंचना था। चॉपर सेवा बंद होने से यात्री वहीं रुके हुए हैं। यहां खाने-पीने और रहने की उचित व्यवस्था नहीं है। यात्री दल में महिलाएं और बुजुर्ग भी शामिल हैं।
विधायक भी फंसी नेपाल में
नेपाल में राजस्थान की विधायक ऋतू बनावत भी वहीं फंस गई है। उन्होंने वीडियो जारी कर कहा- ''आज हमारी यात्रा पूरी हो गई है और यहां से हमको नेपाल बॉर्डर में प्रवेश करना था और वहां से नेपालगंज पहुंचकर लखनऊ पहुंचना था। लेकिन नेपाल के हालात को देखते हुए हमको यहां रोका गया है। मेरे अलावा मेरे सभी साथी लोगों को लग रहा है कि हम कैसे अपने घर पहुंचे। मेरी लगातार भारत सरकार और राजस्थान के मुख्यमंत्री से बात हो रही है। सरकार ने कहा है कि हम आपकी सकुशल वापसी के प्रयास कर रहे हैं''।
नेपाल में बिगड़े हालात
यह संकट 8 सितंबर को नेपाल में जेन-जेड नामक एक युवा समूह के नेतृत्व में हुए हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बाद आया है, जिसमें पारदर्शिता और सोशल मीडिया प्रतिबंध हटाने की मांग की गई थी। नेपाल के स्वास्थ्य एवं जनसंख्या मंत्रालय के अनुसार, मृतकों की संख्या बढ़कर 30 हो गई है और 1,033 लोग घायल हुए हैं। 713 लोगों को पहले ही छुट्टी दे दी गई है, 55 को अन्य सुविधाओं के लिए रेफर कर दिया गया है और 253 अभी भी भर्ती हैं। प्रदर्शनकारियों द्वारा संसद में घुसने की कोशिश के बाद विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गया, जिसके बाद सुरक्षा बलों ने गोलियां चलाईं और बाद में आंसू गैस का इस्तेमाल किया। केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाली सरकार ने सोशल मीडिया पर प्रतिबंध को फर्जी खबरों पर अंकुश लगाने के कदम के रूप में बचाव किया था, लेकिन अधिकार समूहों ने इसे सेंसरशिप करार देते हुए इसकी निंदा की।