डर पर भारी पड़ी आस्था: पहलगाम हमले के बाद भी खीर भवानी मेले में पहुंचे कश्मीरी पंडित
punjabkesari.in Tuesday, Jun 03, 2025 - 06:35 PM (IST)

नारी डेस्क: तुलमुल में आयोजित वार्षिक खीर भावनी मेले में काफी संख्या में कश्मीरी पंडितों ने जुटकर इस बात को साबित कर दिया कि आस्था हमेशा डर पर भारी पड़ती है। पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकवादी हमले और सीमा पर बढ़े तनाव के बाद यह आयोजन हो रहा है। मध्य कश्मीर के गांदरबल जिले में विशाल चिनार के पेड़ों की छाया में बसा रागन्या देवी का मंदिर मेले के लिए सजाया गया है, देशभर से हजारों श्रद्धालु ज्येष्ठ अष्टमी के अवसर पर पूजा-अर्चना कर रहे हैं।
श्रीनगर से लगभग 25 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में स्थित मंदिर और घाटी में मेले के मार्गों के चारों ओर बहु-स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था की गई है। कश्मीरी पंडित नन्ना जी ने कहा- ‘‘पहलगाम हमले का कुछ असर जरूर है।'' उन्होंने कहा कि यह हमला हिंदू-मुस्लिम भाईचारे को खत्म करने के लिए पाकिस्तान की एक चाल है। लेकिन मैं यह कहना चाहता हूं कि कश्मीरी पंडित, कश्मीरी मुसलमान के बिना अधूरा है और कश्मीरी मुसलमान, कश्मीरी पंडित के बिना अधूरा है।'' उन्होंने कहा कि ऐसी साजिशों को कभी सफल नहीं होने दिया जाएगा।
तीर्थयात्रियों में कई ऐसे हैं जिनके परिवारों को तनाव फैलने के बाद कश्मीर घाटी को छोड़ना पड़ा था। कई लोगों का कहना था कि उन्होंने घाटी में शांति और अपने ‘वनवास' को समाप्त करके सम्मानजनक वापसी के लिए प्रार्थना की। जम्मू में रहने वाले कश्मीरी पंडित भारत भूषण ने कहा कि मेले में श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या पहलगाम हमलावरों को करारा जवाब है। '' उन्होंने पर्यटकों से कश्मीर घाटी में आने की भी अपील की।
अनंतनाग जिले के मट्टन इलाके से पलायन करने वाले एक युवा कश्मीरी पंडित मुक्तेश योगी ने कहा कि मेले में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की मौजूदगी एक अच्छा संदेश देगी। पुरुषों ने मंदिर के पास के कुंड में डुबकी लगाई। भक्तों ने परिसर के भीतर पवित्र झरने पर दूध और खीर चढ़ाते हुए भगवान को नमन किया। ऐसा माना जाता है कि मंदिर के नीचे बहने वाले झरने के पानी का रंग घाटी की स्थिति को दर्शाता है। अधिकांश रंगों का यहां कोई विशेष महत्व नहीं है, लेकिन पानी का काला या गहरा रंग कश्मीर के लिए अशुभ समय का संकेत माना जाता है। इस साल झरने का पानी साफ और दूधिया सफेद है।