पब्लिक में स्तनपान करवाना मुश्किल, दीया मिर्जा बोलीं- नकारात्मक भाव से देखते हैं लोग

punjabkesari.in Thursday, Aug 05, 2021 - 02:12 PM (IST)

विश्व स्तनपान सप्ताह (1 अगस्त से 7) अगस्त के दौरान पूरी दुनिया में इस बात पर गौर किया जाता है कि किस तरह स्तनपान एक स्वस्थ जीवन की बुनियाद होता है। इस पर अभिनेत्री, निर्माता और पर्यावरण मित्र दिया मिर्ज़ा कहती हैं, "हमें किसी खास दिन की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए इस बात को समझने, जानने और मानने के लिए कि स्तनपान की क्रिया कितनी आवश्यक और नैसर्गिक है। मां बनने के बाद स्तनपान के प्रति मेरी जागरूकता और बढ़ी है। मुझे इस बात का एहसास और अधिक गंभीरता से हो रहा है कि सार्वजनिक जगहों पर स्तनपान करने की सुरक्षा और सुविधा सबके लिए उपलब्ध नहीं है। अगर एक मां सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ी है, किसी खेत पर काम या मजदूरी करती है, ठेला चलाती है या सड़क के किनारे बैठ कर सामान या सब्जी बेचती है तो वो अपने बच्चे का पोषण करने कहां जाए"? ऐसे में विश्व स्तनपान सप्ताह के दौरान दीया मिर्जा ने उन चुनौतियों की चर्चा की जिनसे हर मां गुजरती है।

बच्चे को दूध पिलाना प्राकृतिक, सहज और पवित्र है

दिया अचंभित हैं कि एक तरफ हम मां के गुणगान करते नहीं थकते और दूसरी तरफ किसी सार्वजनिक स्थान पर एक महिला को दूध पिलाते देख उसे प्रताड़ना की नज़र से देखते और उसे लज्जित करते हैं। वे कहती हैं, "बेल्जियम जैसे देशों में सार्वजनिक स्थानों पर स्तनपान एक कानूनी अधिकार है पर अपने देश में पहले हमें वो सोच बदलनी पड़ेगी जो स्तनपान को एक लज्जाजनक कृत्य मानती है। अगर वो सार्वजनिक रूप से किया जाए। बच्चे को दूध पिलाना प्राकृतिक, सहज और पवित्र है पर फिर भी हम इसके साथ ग्लानि, लज्जा जैसी नकारात्मक भावनाएं जोड़ देते हैं।"

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ग्रामीण इलाकों में महिलाएं को होती अधिक परेशानी

उनका मानना है कि ग्रामीण इलाकों में महिलाएं और भी अधिक परेशानी से गुज़रती हैं क्योंकि वहां मातृत्व और प्रजनन से जुड़ी सही जानकारी का अभाव  होता है। इसके साथ ही इस महामारी ने उनके आर्थिक, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर और भी अधिक बुरा प्रभाव डाला है। वे कहती हैं, "ग्रामीण इलाकों में जन्म के बाद पहले घंटे में स्तनपान के आंकड़ों में गिरावट आयी है हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार स्तनपान जितना शीघ्र किया जाए, बच्चे के स्वास्थ्य के लिए उतना ही अच्छा होता है। WHO ये भी कहता है कि जीवन के पहले छह महीनों में जो बच्चे स्तनपान से वंचित रहते हैं उनके स्वास्थ्य और रोग प्रतिरोधक शक्ति पर गहरा असर होता है। मगर इन सब बातों के बारे में शायद बहुत सी ग्रामीण महिलाएं जानती भी नहीं है। हमें इस बात को लेकर चिंता करनी चाहिए की भारत में कुपोषण और शिशु मृत्यु दर बहुत ज्यादा है और इसे कम करने के लिए हमें और अधिक प्रयास करना चाहिए।"  

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स्तनपान के लिए महिलाओं को मिलना चाहिए पूरा सहयोग

दिया मानती हैं कि स्तनपान के लिए महिलाओं को समुदायों, समाज और परिवार में पूरा सहयोग मिलना चाहिए। उन्हें हर तरह की मदद और सही जानकारी भी दी जानी चाहिए। सुविधाओं और जानकारी से वंचित महिलाओं को स्तनपान के सही तरीके समझाने के साथ-साथ पर्याप्त पोषण, मानसिक सामर्थ्य और सुरक्षित जगहें भी मिलनी चाहिए।


अंततः दिया कहती हैं, "समय आ गया है कि हम स्तनपान को एक सामान्य क्रिया समझें क्योंकि दुनिया में अपने शिशु को दूध पिलाने के अधिकार से एक मां को वंचित रखने का किसी को हक नहीं है। "

 


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neetu

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