Dhirubhai Ambani और Ratan Tata ने यूं रिस्क लेकर तय किया शून्य से शिखर का सफर

punjabkesari.in Wednesday, Dec 28, 2022 - 12:43 PM (IST)

दिल में जज्बा हो तो इंसान कुछ भी हासिल कर सकता है.....ये कहावत धीरुभाई अंबानी और रतन टाटा पर बिल्कुल सटीक बैठती है। देश के उद्योग जगत के सबसे मजबूत स्तंभों में धीरुभाई अंबानी और रतन टाटा का नाम हमेशा सबसे ऊपर आता है। दोनों ने अपनी मेहनत से शून्य से शिखर तक का सफर तय किया। ये महज इत्तेफाक है कि दोनों का जन्मदिन 28 दिसंबर को हुआ। सॉल्ट से सॉफ्टवेयर तक टाटा का दबदबा है, तो वहीं रिलायंस ने दूरसंचार से लेकर पेट्रोलियम तक अपनी जड़ें जमा ली है। धीरुभाई अंबानी एक जमाने में 300 रुपये की नौकरी करते थे, लेकिन जब उनका देहांत हुआ तो उनके पास 62 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा की संपत्ति थी। रतना टाटा का जन्म भले ही एक राजकुमार के रुप में हुआ हो, लेकिन उनकी परवरिश एक आम इंसान के रुप में ही हुई। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उन्होंने रेस्तरां में बर्तन भी धोएं हैं। 

गरीबी में गुजरा बचपन

28 दिसंबर 1937 में पैदा हुए रतन टाटा की निजी जिंदगी काफी उथल-पुथल भरी रही। बचपन में ही उनके पैरेंट्स का तलाक हो गया था। इस घटना ने उनको बुरी तरह से थोड़ दिया था। वो लोगों से मिलने में भी डरने लगे थे। इस  मोड़ पर उनके दादा ने इनको संभाला था। उधर धीरुभाई अंबानी का जन्म 28 दिसम्बर 1932 को हुआ था। उनके पापा एक शिक्षक थे। चार भाई-बहन के चलते उन्हें काफी कम उम्र से ही नौकरी कप अपने परिवार और भाई-बहनों की जिम्मेदारी उठानी पड़ी, जिस चलते उनकी पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई।

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5 स्टार होटल में चाय पीते थे धीरुभाई 

काफी छोटी उम्र में धीरूभाई अंबानी फुटपाथ पर फल बेंचने लगे थे। जवानी में पेट्रोल पंप पर 300 रुपये महीने की नौकरी मिल गई। उनकी मेहनत और लगन को देखते हुए 2 साल बाद मालिक ने उन्हें मैनेजर बना दिया। यहां से उन्हें भी बिजनेस करने का आइडिया मिला। इतनी कम सैलरी में भी वह चाय पीने के लिए 5 स्टार होटल जाते थे। जब उनसे कारण पूछा गया तो बताया कि वहां पर बड़े-बड़े लोगों से बिजनेस का आइडिया मिलता है।

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ऐसे हुई रिलायंस की शुरुआत

1950 के दशक के शुरुआत में उन्होंने अपने चचेरे भाई चम्पकलाल दमानी के साथ मिलकर रिलायंस कमर्शियल कारपोरेशन कंपनी के तहत पॉलिएस्टर धागे और मसालों के आयात-निर्यात का व्यापार प्रारंभ किया। यहीं से जन्म हुआ रिलायंस कंपनी का,  1965 में चम्पकलाल ने साझेदारी खत्म कर दी, लेकिन धीरुभाई अंबानी ने पीछे मूड़कर नहीं देखा।  उन्होंने कपड़ा/टेक्सटाइल के बाद दूरसंचार, ऊर्जा और कई सेक्टर में हाथ आजमाए और रिलायंस का दायरा बढ़ता चला गया। 

मार्केट में है टाटा का दबदबा

उधर रतन टाटा 1962 में टाटा समूह से जुड़े। उन्हें पहली नौकरी टेल्को (अब टाटा मोटर्स) के शॉप फ्लोर पर मिली। धीरे-धीरे अपनी योग्यता के दम पर वह टाटा समूह में एक-एक पायदान ऊपर चढ़ते गए। वह 1981 में टाटा इंडस्ट्रीज के चेयरमैन बनाए गए और उन्हें जेआरडी का उत्तराधिकारी चुन लिया गया। उनकी अगुवाई में टाटा समूह का रेवेन्यू 100 बिलियन डॉलर के पार निकल गया, नमक और चाय के घरेलू उत्पादों से लेकर एयर इंडिया तक उन्होंने अपनी जड़ें जमा दीं।

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Content Editor

Charanjeet Kaur

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